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"काला हार" भाग -३
एक रात पल्लवी ने सारा किस्सा किशन को बताया तो किशन ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ली,तब पल्लवी ने मन ही मन ये सोच लिया कि अब उसे ही अपने तौर पर सब देखना होगा, लेकिन कब? रोज तो वो स्कूल चलीं जाती है? रात को भी जल्दी डिनर लेकर वो सो जातीं है आखिर उसके पास इतना समय ही कहां है कि वो उस खिड़की को खोलें क्योंकि पल्लवी इतना तो समझ ही चुकीं थीं कि ये खिड़की सालों से नहीं खुली तो अब इसे हथौड़े वगैरह से खोलना होगा इसीलिए उसने एक मुश्त समय के लिए इसे भविष्य के हाथों सौंप दिया,और आख़िर एक दिन पल्लवी की मुराद पूरी हो ही गई, हुआ यूं कि किशन और उसके माता-पिता का एक विवाह समारोह में जाना हुआ विवाह मुरादाबाद में था और किशन और उसका परिवार लखनऊ में रहता था तो किसी तरह पल्लवी ने छुट्टी न मिलने की असमर्थता जताई हारकर किशन और उसके माता-पिता विवाह समारोह में चलें गये।
सब लोग तीन दिन के लिए गए थे, इसलिए पल्लवी को जो करना था इन तीन दिनों में ही करना था इसलिए दूसरे दिन स्कूल से आकर उसने जल्दी से खाना खाया और किचन की ओर चल पड़ीं, पहले उसने किचन की अलमारी से सारा सामान निकालकर एक ओर रख दिया फिर उसको धक्का मारने लगी लेकिन जैसा कि उसका अनुमान पहले ही था वो जाम हो चुका था लिहाज़ा वो नहीं खुला। पल्लवी अपने साथ पहले ही हथौड़ी लाई थी इसलिए अब वो हथौड़ी से खिड़की को ठोकने लगीं लेकिन खिड़की इस कदर जाम हो चुकी थी कि वो खुल ही नहीं रही थी लगभग आधे घंटे की मशक्कत के बाद खिड़की चरररररर की आवाज़ के साथ खुल गई जैसा कि पल्लवी का पहले ही अनुमान था खिड़की के पीछे उसे घुप्प अंधेरा दिखाई दे रहा था,तब पल्लवी ने अपने मोबाइल की लाइट उस ओर फेंकी तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उसे दूसरी ओर सीढ़ियां नज़र आने लगी जो नीचे की तरफ़ जा रही थी।
पल्लवी ने मोबाइल की लाइट जलाएं रखीं और खिड़की से अंदर उतर गई और सीढ़ियां उतरने लगीं। भीतर घुप्प अंधेरा था जिससे पल्लवी को डर भी लग रहा था आखिर खौफ और कोतुहल के बीच पल्लवी की सीढ़ियां खत्म हुई और उसने खुद को एक बड़े से हॉलनुमा कमरे में पाया। कमरे में अकूत धन सम्पत्ति की भरमार थी पल्लवी की आंखें फटी की फटी रह गई, तभी उसकी नज़र सामने एक चित्र पर गई जिसमें एक खूबसूरत युवती आकर्षक वेषभूषा में बैठीं थीं उसके शरीर पर कोई ज़ेवर नहीं था सिवाय एक हार के, वो हार काले मोतियों का था न जाने क्यों पल्लवी को ये बात बहुत ही आश्चर्यजनक लगी कि उस युवती ने सिवाय एक हार के और कोई ज़ेवर नहीं पहना था और आख़िर ये इतनी धन-संपत्ति किसकी है? अगर किशन के पुरखाओ की है तो उन्हें ये सब मालूम क्यों नहीं है और कौन है ये युवती? तभी उसकी नज़र एक कोने में रखे एक मोटी सी किताब पर गई।
पल्लवी को लगा कि ये किताब उसके काम आ सकती है और उसने वो किताब अपने पास रख लिया और सीढ़ियां चढ़ कर खिड़की में से वापस चलीं आई।
रात को खाना खाने के बाद पल्लवी जब अपने कमरे में गई तब उसने किताब का प्रथम पृष्ठ खोला। आख़िर क्या था उस किताब में? क्या पल्लवी को अपने सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे? जानने के लिए इस कहानी का अगला और अंतिम भाग अवश्य पढ़ें।
लेखन समय- 10:50
दिनांक - 24.7.24- बुधवार


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