...

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खुद की खैरियत
एक रिश्ता जो कायम खुद से करना था ,या खुद से रिश्ता जोड़ना था ।
मेरा अक्श शीशे में देखकर मुझपे हंस रहा था ,
कहने लगा ....
तू खुद पर एतबार कर , तू खुद का इंतजार कर ,
खैरियत पूछ खुदकी , तू सिर्फ खुद से प्यार कर ,
क्या भरोसा उस शख्स का , जो दावा तेरा होने का करता है , पर तेरा होना नही चाहता है ,
क्यों यकीन है ,क्यों खयाल है तुझे ,क्यों भला तुझे कोई बेपनाह चाहेगा ,
हकीकत को क्यों अनजान कर रही है ।
ये सुन मेरा भी होश उड़ गया ,
भला मेने भी पूछा _ क्यों घमंड है खुद पर तुझे ए मेरे अक्श , बस तू तो एक साया है मेरा ,
तू मुझे आगोश दिला कर छीन रहा है मेरा सबकुछ ,
आखिर उसने भी जवाब दिया _
तू तो खुद से मिलने आई है ,खुद से मिल , भला खुद में क्यों किसी ओर को समा रही है ,
अंधेरे में तो साया भी साथ छोड़ देता है ,फिर भला क्यों तू दूसरो को आजमा रही है ,
मत जी दोहरी जिंदगी ,मत बना किसी और को अपना आदि ,
जिंदगी बस तू खुदके नाम कर ले ,
बेपनाह सी चाहत खुद से करले ,
तू ही है जो खुद का साथ कभी नहीं छोड़ेगी ,
वक्त है वक्त की तलाश है तुझे ,
बस खुद से आस है तुझे ,
मकान है तू ,
खुद आसमान है तू ।
महसूस कर ,
खुद का जहान है तू
to be continued
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