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गर्वीला व्यक्तिगत
भगत सिंह एक नये बेहतर और गर्वीले भारत के प्रतीक थे उनके जीवन की अद्भुत कहानी और उससे बढ़कर उनकी फांसी की मर्मस्पर्शी कहानी ने
उन्हें भारतीय इतिहास का असाधारण व्यक्तित्व बना दिया।उन लोगों के बीच का सिंह जो न पराजय
से भयभीत थे और न मौत से हमेशा की तरह फांसी के समय भी वह धरती के सामान्य पुत्र सत्ता हीन
संपत्तिहीन पदहीन सामान्य व्यक्ति थे जिनके पास न कोई शैक्षिक योग्यता थी और न ही साहित्यिक
प्रतिभा जिन्हें कोई वैज्ञानिक बौद्धिक और आध्यात्मिक सफलता भी नहीं मिली थी फिर भी संपूर्ण भारत उनके निःस्वार्थ बलिदान के समक्ष झूक गया और उन्हें ऐसी श्रद्धांजलि दी जैसी पहले किसी शहीद को नहीं दी गई थी
यदि हम भारत की प्राचीन परंपरा को देंखे तो वह भारत की शक्ति और एकता के प्रतीक थे
जब उन्होंने अपने साथियों के साथ लाहौर केंद्रीय जेल की भरी अदालत के सामने वन्दे मातरम् गाया तो अपने देश की शारीरिक शक्ति को जगाने का कार्य ही नहीं किया था अपितु कालातीत और अनंत
भगत को उसकी आत्मा को उसकी चेतना को भी
जगाया था जिसकी अनंत मानवता ने पूजा की है।
भगत सिंह के मुख से नयी चेतना फूटी थी जिसमें गर्जन था और उनकी ग़ुलाम मातृभूमि पर हिमखंड की भांति बिखर गई थी