...

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स्वाद
एक होटल में एक बार मैं खाने के लिए गया
यह जगदलपुर का होटल था
होटल साफ सुथरा था मगर भीड़ बहूत ज्यादा नहीं रहती थी फिर भी वह होटल कुछ
मशहूरी पा गया था शायद उसकी व्हेराइटी भरे खाने के स्वाद ने जिभ्या पर अपनी पकड़
बना ली थी
मैंने आर्डर दे दिया और इन्तजार करने लगा कुछ ही समय में मेरा आर्डर मेरे
सामने सजने लगा ।
तभी एक आदमी हांफता, पसीने-पसीने हो कर मेरे सामने वाली टेबल पर आकर बैठ गया और परेशान सा बार बार वेटर की तरफ देखता इंतजार करने लगा कि वह आये तो वह आर्डर करे । रह रह कर उसकी नजरें मेरी तरफ उठ जाती थी
मैं थोड़ा असहज हो गया था उसकी बैचेन निगाहों ने मुझे उससे बात करने पर मजबूर
कर दिया । मैंने इशारे से उन्हें पास बुलाया
और उनकी कुशलता पुछ कर उनकी परेशानी पुछ बैठा वह कहने लगा उसके साथ
एक बीमार व्यक्ति के देखभाल की ज़िम्मेदारी थी उस बीमार व्यक्ति को ज्यादा देर तक अकेला छोड़ना अनुचित था एक डेढ़ घंटे बाद उसे दुसरे शहर विशाखा पट्टनम की ट्रेन पकड़नी थी यही उनकी बैचेनी का कारण था आर्डर और भोजन तैयार होने में लगने वाला समय उसे परेशान कर रहा था और वह भुख से व्याकुल हो रहा था ।
मुझे लगा की इस परिस्थिति में फंसे आदमी की मैं क्या मदद करूं पता नहीं यह आदमी मेरे पेशकश को किस नजरिये से देखेगा फिर
मैंने उस आदमी को अपने टेबल पर सजे भोजन को दिखा कर कहा आपको जल्दी है और जिम्मेदारी भी आप बुरा न मानें तो भोजन कर लिजिए मैं कुछ देर रूक सकता हूं
उस आदमी ने मेरी पेशकश स्वीकार कर ली
किन्तु एक शर्त पर की अपने खाने का वहीं पेमेंट करेगा मैंने उसकी बात स्वीकार कर ली
और वह भोजन कर, तृप्त हो
मेरा धन्यवाद कर कहा आजकल के जमाने में भी नेकी कायम है
आपके इस अनुग्रह के लिये बहुत धन्यवाद ।
उसके जाने के बाद वेटर मेरे पास आया मैंने आर्डर देकर कुछ देर इंतजार किया
कुछ देर में आर्डर सर्व हो गया और मैं इत्मीनान के साथ भोजन किया पता नहीं क्या बात थी आज के भोजन में मुझे बहुत स्वाद लग रहा था ।
परिस्थितियों ने मुझको स्वाद की एक नई परिभाषा बतलायी थी...।
© सुशील पवार