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मन की भड़ांस
लेख या कथा कहानी ज्यादा नहीं लिखता , महज एक मन की भड़ांस से होते है !आर्थिक,सामाजिक, राजनैतिक अथवा मानव सम्बन्ध अमूनन हर दूसरी कलम शब्दों को अपने हिसाब से तोड़ती मरोड़ती है !
कमोबेश अख़बारों की दशा और ख़राब है , सरकारी चापलूसी से फुर्सत नहीं बाकि हत्या बलात्कार और लूटमार ! सरकारी दावों से सुरक्षित देश और कड़े कानून में लिपटी अदालत !
सड़क पर चलता आदमी कड़े यातायात में सुरक्षित ! कोई न कोई मामला कानून , सरकार और व्यवस्था की पोल पट्टी खोल देता है ! सरकार के हिमायती असहाय नज़र आते है !
ऑनलाइन सुविधा में ऑफलाइन भ्र्ष्टाचार ! सब जगह कीमत तय है ! आयोग विधि विधान नियम का गठबंधन थका हरा दीखता है जब न्याय की आस दम तोड़ देती है !
आम आदमी बहुत सी चीज़ों से अनभिज्ञ रहता है जब तक वास्ता नहीं पड़ता कानून हो या अस्पताल अथवा स्कूल ! एक आम इंसान टैक्स और वोट तो दे सकता है पर अपने ही चुने प्रतिनिधि से प्रश्न नहीं पूछ सकता और अपनी ही सरकारी व्यवस्था का शिकार हो जाता है !
आम होना खुद में एक समस्या है ! परेशान उलझा सुर्ख़ियों से भरे अखबार में मूंगफली के दाने जैसा ....सड़क का सुरक्षित आदमी और कानून से लिपटी औरत !
© "the dust"