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ज़माना कल आज और कल
बड़ी खबर

*बड़ी खबर... जी हां वो खबर या तो किसी बड़े अपराध, घोटाले, देशद्रोह, बलात्कार या फिर किसी बड़ी दुर्घटन से जुडी होती हैं.. क्योंकि अगर हम जब टीवी पर किसी न्यूज़ चैंनल पर जब हम न्यूज़ देख रहें होते हैं तभी धम्म से स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ गलाफाड आवाज़ में कानों को फोडने लगती हैं.. जो काफी देर तक बस टीवी की स्क्रीन पर तब तक यहीं चलता रहता है जब तक न्यूज़ चैंनल वालों का और कान फोडू एंकर का जी चाहता हैं *

जी हां ज़नाब मैं "जो चाहता हैं" के बारे में बात कर रहा हूं क्योंकि बड़ी खबर की ब्रेकिंग के आगे दर्शकों का कोई बस नहीं चलता और अगर आप इस बात को देख कर अगर ये सोच रहें हैं कि मैं न्यूज़ चैंनल की आड़ में मैं अपनी कोई नई कहानी या किसी नए उपन्यास के बारे में आपका दिमाग़ चाट रहा हूं तो ज़नाब तो आप बिलकुल ही गलत सोच रहें हैं...

क्योंकि मैं बगैर लाग लपेट के साथ आप से यहीं कहना चाहता हूं क्या आपको नहीं लगता कि बड़ी खबर के नाम पर जनता को कितना ठगा जाता हैं..मैं देश के सोने वाले और जिस्म के लिवास में सोई हुई आत्माओ से पूछता हूं देश दुनियां में कितनी ऐसी खबरें होती हैं जिन्हे यहीं मिडिया के लोग दवा दिया करते हैं..

अभी चार दिन पहले की हीं बात हैं सुबह सुबह जब मैंने अखबार में अपनी नज़रे रोज की तरह गड़ाई तो छपी हुई खबर को देख कर मैं दंग रह गया जो अखबार में छपा था उसे पढ़ते हीं मेरी आंखे पत्थर की तरह शख्त हो चुकी थी.. मानो मेरे कान में उसने अभी अभी आ कर कहा हो
"इस दुनियां में अब तो बस मां की कोख और कब्रिस्तान की कब्र ही लड़कियों के लिए सुरक्षित रह गई है"
ये उस बच्ची की रुला देने वाले सुसाइड नोट पर लिखी किसी ज़मीरदार इंसान को भावुक कर देने वाली चंद लाइनें थी..जो उस बच्ची ने अपनी ज़िन्दगी को मौत की नींद में सुलाने से पहले लिखी थी जिसने समाज के दरिंदो की हैवानियत से तंग आ कर उसने अपनी जान दे दी थी..
अख़बार में छपी खबर के मुताबिक ये मामला चेन्नई के बाहरी इलाके का था जहां 11वीं क्लास में पढ़ने वाली लड़की ने कथित रूप से खुदकुशी कर ली थी. जो पिछले कई दिनों से रोज रोज के बलात्कार के दर्द से तड़प रही थी. और अब ये मामला पुलिस के संज्ञान में था और वहीं पुलिस आरोपी की तलाश में जुटी चुकी थी..

क्रमशः
© दीपक बुंदेला आर्यमौलिक