यकीन पर ही दुनिया कायम है...।
सफर के दौरान एक महाशय से मुलाकात हुई। उनकी शक्ल कुछ साधु - महात्माओं जैसी थी पर इस बार मैंने उनके बारे में किसी भी प्रकार की कोई गलत धारणा नहीं बनाई थी क्योंकि अब नजरिया बदल चुका था और सोचने का तरीका भी। मेरी खामोशी का खण्डन करते हुए महाशय जी ने पूंछा की "मैं कहां से आ रही हूं?" कुछ क्षण रुकने के पश्चात मैंने उन्हें बताया कि कल मेरी परीक्षा है। किसकी ये भी उन्हें बताया। जिनकी बात मैंने उनसे की थी उन्हें इसके बारे में काफी कुछ पता था। उन्होंने मेरे साथ जानकारी सांझा की। यों तो...