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आदरणीय
क्या किसी को सहज ही आदरणीय संबोधन देना उचित है?
आदरणीय संबोधन उस व्यक्ति से किया जाना चाहिए जिस पर हमारा अटूट प्रेम, श्रद्धा,विश्वास हो और हम सदा उनका आदर करेंगे और कभी भी अपने कृत्य से या उनके कृत्य से उनका अनादर नही करेंगे।
परंतु समय एक जैसा नही रहता जिन्हें हम आज आदरणीय संबोधित कर रहे है हो सकता है किसी कारण से उनके प्रति हमारा आदर कम हो जाये या खत्म हो जाये या वे निंदनीय हो जाये इस परिवर्तित अवस्था मे,क्या हम पहले सही थे या बाद में सही है?
क्या हमने पहले जिसे आदरणीय माना था क्या वह सदा के लिये हमारे आदरणीय नही रह सकते? क्या हम बदली हुई परिस्तिथि में सारी बातें छोड़ कर हम उन्हें आदरणीय संबोधन को ही जारी रख सकते है अगर ऐसा नही है तो किसी भी परिस्तिथि में आदरणीय संबोधन का प्रयोग न करें।
किसी से मधुर सबंध बनाने हेतु आदरणीय शब्दों का प्रयोग करना हमारी चाटुकारिता प्रदर्शित करता है न कि निष्ठा।
अतः संबोधन ऐसा हो कि जिसमे आदर के साथ निंदा का भी स्थान हो, उचित कार्यों की प्रशंसा में आदर भाव व किसी त्रुटि युक्त कार्यो में निंदा का भाव होना आवश्यक है। जिससे संबोधित व्यक्ति और संबोधन कर्ता दोनो ही अपने अपने स्थान पर सहज और स्वतंत्र रह सके।
तो श्रीमान क्या संबोधन करेंगे आप?
संजीव बल्लाल
© BALLAL S