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शरारतें
हर इंसान, अपनी जिंदगी में अनेकों प्रकार के शरारतें करते हैं, परन्तु इंसानो मे भी काफी शरारती होते हैं तो बच्चे । गलतियां हो जाने पर, घर वालो से डाट खाने पीटने की डर सताती है। परन्तु गलतियां होने से पहले कुछ भी नही सुझता । हमेशा ही अपने रामपुर के टोलियों में सबसे शरारती नजर आता था, तो “वह मै ही था” ।उस समय मै कक्षा सात मे पढ़ता था ।

एक दिन की बात है, जुलाई का महीना था, कुछ जल्द मे स्कूल चालू हुआ था। और रामपुर के सभी टोलियों के साथ मै भी स्कूल के लिए घर से रवाना हो गया। गांव से स्कूल जाने मे टीकमपार में एक रेलवे लाइन बिछी हुई थी। जिनके ऊपर रेलगाड़ीयाँ हर दिन चला करती थी। रेलगाड़ी के चले जाने के बाद हम सभी बच्चे उस पर भागते थे। लेकिन हर दिन के तरह उस दिन भी स्कूल से आने का समय हुआ था। तभी हम सभी शीघ्र ही घर आने के लिए एक के पीछे एक भागने लगे। दुर्भाग्यवश! रेलवे के पटरी मे अचानक मेरा पैर जा फसा, अब सभी रुक गये। और वहा मेरा पैर निकालने का प्रयास करने लगे। परन्तु मुझे डर लगता था, कि अगर ट्रेन आ गयी तो क्या होगा ? मुझे इसलिए महसूस हो रहा था, कि मै कई ऐसे घटनाएं देख चुका था।

हम सभी मे एक काफी होशियार और थोड़ा पढ़ाई करने वाला था। तो वह रवि ही।वह भी बहुत शरारती था। परन्तु उसने वहां दिमाग लगाया और सदैव सही पूर्णवक पैर निकाल दिया। न तो जूता को कुछ हुआ था, और न ही पैर को। मैने अपने टोलियों के बच्चों को समझाया, और घर बताने के लिए मना किया। और उस दिन से हम सभी शरारती करना भी कुछ छोड़ दिए। आराम से आने - जाने लगे। धीरे-धीरे सब कुछ अच्छा हो गया। मैने अपने घर वालो को ये बाते तब बताया,“जब आठवीं पास हो चुका था” । घर से डाँट उस समय भी मिली, लेकिन बाद में मुझे माँ ने समझाया।
और शरारतें न करने के लिए भी मना कर दिया। लेकिन मै शरारतें तब छोड़ा जब दसवी मे जा चुका था।
© sonu Kumar Singh