मैं भी कभी मां की लाड़ली थी।
बहुत छोटी सी उम्र और मम्मी की समझदार बिटिया रानी मैं ही हुआ करती थी
आज शायद मैं हु उसकी लाड़ो रानी मगर कही न कही नहीं भी
अब सवाल ये उठता हैं की भी अब हुआ क्या ऐसा जो तुम नही रही उनकी लाड़की
तो बात हैं 5 वी कक्षा की जब पहली दफा मैं स्कूल में बीमार हुई थी 2014 –2015 का सत्र था
मम्मी जानती थी कि मुझे ऊपर का चक्कर हुआ न की भी डॉक्टर की बीमारी
फिर वो भैया मेरे इलाज के पीछे हाथ धो के पड़ गई
गांव शहर हर जगह हर बार बार बात
होती मेरी बीमारी की
2016 तो ठीक ठाक निकला
मगर भैया ये हो गई 2017 में अर्चना जो जन्मी 2001 dec 17 को बमबारी
अब अर्चना जी दौड़े हॉस्पिटल पूरे साल
भैया हालत पतली हो गई
मगर अर्चना का इलाज़ न हो पाया
मम्मी जी की तो जान हथेली पर थी जैसे
फिर भी खड़ी रही हिम्मत से
भैया फिर आया नया साल मगर अर्चना जी तो पुरानी थी और उनकी बीमारी भी
फिर चक्कर लगाने लगे गांव गांव देवता देवता
और अब अर्चना जी की हालत बेकार नहीं बहुत बेकार हो गई
मानो जैसे खटारा स्कूटर को जबरदस्ती चलाया जा रा हैं क्योंकि अभी तक वो चल रा हैं
स्कूल वालो ने हाथ खड़े कर लिए और कहा कि भई बच्ची को घर ही रखो
इसकी बीमारी का इलाज़ तो कुछ हैं नहीं
फिर जैसे तैसे 8 वी की परीक्षा दी और इतनी बद्दातर हालत के चलते भी लड़की ने 8 वी में ए ग्रेड ले आई
तालिया तो बनती हैं
अब भैया आई 9 वी कक्षा की बारी
अब तो मानो जैसे अर्चना हारी
एक तो इतनी बड़ी स्कूल और उपर से अर्चना जी के बड़े बड़े ख़्वाब मगर इन सबके बीच थी उनकी बीमारी और भैया अर्चना गांव, शहर देवता ,चिकित्सक हर जगह फिरी मारी मारी
मगर खतम ना हुई उसकी बीमारी
अब भैया मम्मी जी मानो जैसे तंग सी आ गई
अब तो वो भी अर्चना से कहने लगी
काश तू पैदा ही न होती
तो आज मेरी ये दुर्दशा ना होती
अर्चना लगी रोने कर भी क्या सकती थी
अब आई परीक्षा की बारी
स्कूल वालो ने
कहा मेडिकल सर्टिफिकेट ले आना
बच्ची को परीक्षा दिवा ले जाना
भागमभाग शुरू हुई
मगर जो मंजूर था नियति को वही बात हुई
अर्चना जी परीक्षा मैं बेहोश हई
और फिर कभी पाठशाला नहीं गई
एक पल में मानो जैसे सारे सपने टूटकर बिखर गए
अर्चना के तो टूटे ही थे उसकी मां के बड़े बड़े ख़्वाब की उसकी टॉपर बिटिया जिंदगी में उसका नाम रोशन करेंगी
अब किताबे, दोस्त ,परिवार सब लगा छूटने
अर्चना लगी टूटने
फिर 2020, 2021,2022 ,2023
अर्चना बस अपनी मां के लिए एक मुसीबत बनकर रह गई
आज तक उसका इलाज़ नहीं हुआ
और उसकी मां बस हर जगह उसके इलाज के लिए भटक रही हैं
और शायद यही वजह होगी के कभी गुस्से मैं वो कह देती हैं की काश तो पैदा ही न होती तो मेरी आज ये दुर्दशा ना होती
प्यार बहुत करती हैं मगर थक गई हैं वो इलाज़ ढूढते ढूंढते
इतने बरसों में शायद कोई और तो मुझे मरने के लिए छोड़ देता मगर वो एक अकेली खड़ी हैं मेरे साथ।।
यही थी मेरी कहानी
आज शायद मैं हु उसकी लाड़ो रानी मगर कही न कही नहीं भी
अब सवाल ये उठता हैं की भी अब हुआ क्या ऐसा जो तुम नही रही उनकी लाड़की
तो बात हैं 5 वी कक्षा की जब पहली दफा मैं स्कूल में बीमार हुई थी 2014 –2015 का सत्र था
मम्मी जानती थी कि मुझे ऊपर का चक्कर हुआ न की भी डॉक्टर की बीमारी
फिर वो भैया मेरे इलाज के पीछे हाथ धो के पड़ गई
गांव शहर हर जगह हर बार बार बात
होती मेरी बीमारी की
2016 तो ठीक ठाक निकला
मगर भैया ये हो गई 2017 में अर्चना जो जन्मी 2001 dec 17 को बमबारी
अब अर्चना जी दौड़े हॉस्पिटल पूरे साल
भैया हालत पतली हो गई
मगर अर्चना का इलाज़ न हो पाया
मम्मी जी की तो जान हथेली पर थी जैसे
फिर भी खड़ी रही हिम्मत से
भैया फिर आया नया साल मगर अर्चना जी तो पुरानी थी और उनकी बीमारी भी
फिर चक्कर लगाने लगे गांव गांव देवता देवता
और अब अर्चना जी की हालत बेकार नहीं बहुत बेकार हो गई
मानो जैसे खटारा स्कूटर को जबरदस्ती चलाया जा रा हैं क्योंकि अभी तक वो चल रा हैं
स्कूल वालो ने हाथ खड़े कर लिए और कहा कि भई बच्ची को घर ही रखो
इसकी बीमारी का इलाज़ तो कुछ हैं नहीं
फिर जैसे तैसे 8 वी की परीक्षा दी और इतनी बद्दातर हालत के चलते भी लड़की ने 8 वी में ए ग्रेड ले आई
तालिया तो बनती हैं
अब भैया आई 9 वी कक्षा की बारी
अब तो मानो जैसे अर्चना हारी
एक तो इतनी बड़ी स्कूल और उपर से अर्चना जी के बड़े बड़े ख़्वाब मगर इन सबके बीच थी उनकी बीमारी और भैया अर्चना गांव, शहर देवता ,चिकित्सक हर जगह फिरी मारी मारी
मगर खतम ना हुई उसकी बीमारी
अब भैया मम्मी जी मानो जैसे तंग सी आ गई
अब तो वो भी अर्चना से कहने लगी
काश तू पैदा ही न होती
तो आज मेरी ये दुर्दशा ना होती
अर्चना लगी रोने कर भी क्या सकती थी
अब आई परीक्षा की बारी
स्कूल वालो ने
कहा मेडिकल सर्टिफिकेट ले आना
बच्ची को परीक्षा दिवा ले जाना
भागमभाग शुरू हुई
मगर जो मंजूर था नियति को वही बात हुई
अर्चना जी परीक्षा मैं बेहोश हई
और फिर कभी पाठशाला नहीं गई
एक पल में मानो जैसे सारे सपने टूटकर बिखर गए
अर्चना के तो टूटे ही थे उसकी मां के बड़े बड़े ख़्वाब की उसकी टॉपर बिटिया जिंदगी में उसका नाम रोशन करेंगी
अब किताबे, दोस्त ,परिवार सब लगा छूटने
अर्चना लगी टूटने
फिर 2020, 2021,2022 ,2023
अर्चना बस अपनी मां के लिए एक मुसीबत बनकर रह गई
आज तक उसका इलाज़ नहीं हुआ
और उसकी मां बस हर जगह उसके इलाज के लिए भटक रही हैं
और शायद यही वजह होगी के कभी गुस्से मैं वो कह देती हैं की काश तो पैदा ही न होती तो मेरी आज ये दुर्दशा ना होती
प्यार बहुत करती हैं मगर थक गई हैं वो इलाज़ ढूढते ढूंढते
इतने बरसों में शायद कोई और तो मुझे मरने के लिए छोड़ देता मगर वो एक अकेली खड़ी हैं मेरे साथ।।
यही थी मेरी कहानी