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इश्क इबादत-८
दोनो श्रुति और अनुपम का इंतजार करते है और दोनो आते है बस चारो निकल चलते है घर की ओर रुक कर खाना खाते है और बस मस्ती हंसी ठिठोली करते हुए। उस दिन वैष्णवी तो घर लौटी मगर पूरी नही मन तो उसका विश्वास के पास रह गया। उसका दिल भरा जा रहा था गला रुंधा हुआ जी कर रहा था खूब रोए उसे ऐसे कभी खुद को बेचैन नही देखा था खैर इश्क की अपनी भी एक पहचान होती है कमबख्त आखों में नज़र आने लगता है। जिससे इश्क हो वो करीब से गुजर भी जाए तो दिल धौकनी की तरह धड़कता है।किसी और को खबर हो न हो जिससे...