बस इतना सा साथ 80
नेहा इंस्टिट्यूट जाने के लिए निकल रही होती है।
नेहा - मम्मी मेरा फोन कहाँ है देखा किसी ने।
नेहा की मम्मी - पहले चश्मा लगा ले, फिर ढूंढ़
दिख जाएगा ।
नेहा - दिख रहा है मुझे।
नेहा की मम्मी- चश्मे के बिना ।
नेहा - हाँ।
गौरव - एक रात में ये क्या चमत्कार हो गया।
क्या खाया था तूने।
नेहा - कोई चमत्कार नहीं है, लेंस लगाया है मैंने।
नेहा की मम्मी - दिखा इधर ।( नेहा के चेहरे को घुमा देखने लगती हैं। ) ऊपर देख..( नेहा देखती है ) नीचे देख... ( नेहा देखती है) इस तरफ देख, उस तरफ देख। ( मम्मी जहाँ बोलती हैं, नेहा उस तरफ देखती है । )
नेहा - ( आँखों को दो - चार बार बंद करती है, खोलती है। ) मम्मी , आप क्या कर रहे हो । सिर
घुमा दिया मेरा ।
नेहा की मम्मी- मैं तो लेंस देख रही हूँ , हैं कहाँ।
मुझे तो कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा ।
नेहा - वो बहुत पतला-सा है ।
नेहा की मम्मी - इतना कितना पतला है, दिखा
मुझे ।
नेहा - अभी नहीं, जब मैं निकालूँगी तब दिखाती
हूँ। पूरा आधा घंटा लगा है इन्हें लगाने में।
गौरव - और इतने पतले लेंस में से तुझे सब साफ़
दिख रहा है।
नेहा - हाँ जी।
गौरव - अच्छा , तो ये पढ़ कर बता । ( सामने कैलेंडर पर दिखा, नेहा को पढ़ने को कहता है। नेहा पढ़ देती है, फिर कभी उँगली गिनवाता है तो कभी कुछ ।)
नेहा - ( गौरव से ) डॉक्टर साहब, आपकी जाँच
पड़ताल हो गई हो तो मैं जाऊँ।
गौरव - हाँ , अब पक्का विश्वास हो गया । तुझे
सब सही दिख रहा है। ( मम्मी से) मम्मी
चिंता ना करो, लड़की को सब साफ दिख
रहा है । चलते - चलते खंबे से नहीं
टकराएगी । ( मम्मी और गौरव दोनों मजे लेकर हँसने लगते हैं। )
नेहा - ( मम्मी से ) आप भी । सही है , बस कुछ
दिन और ले लो मेरे मजे। बाद में आपस में
ही लेते रहना।
गौरव - ओए, किसको बता रही है । हमें या अपने
आप को । मैं तो याद भी नहीं करने वाला
तुझे।
नेहा - वो तो वक़्त बता देगा, कि कौन किसको
याद करेगा। मुझे तो बहुत आराम होगा,
अपना अलग रूम ..... ( भाई बहन आपस में एक दूसरे को यूँही छेड़ रहे होते हैं, और नेहा की मम्मी की अभी से नेहा की बिदाई की सोच आँखें नम होने लगती हैं। )
" बड़ी अजीब रीत है ,
ये कैसी दिल की मीत है
की खुशियों की छडी, मेरे द्वारा खड़ी है
फिर भी ना जाने , क्यूँ आँखे भरी हैं
लाडौ की बिदाई की सोच
मेरे मन ने भी आहें भरी हैं ..... "
इंस्टिट्यूट में जाते ही हर कोई नेहा से एक ही बात कहता " दीदी आपका चश्मा कहाँ है " और नेहा एक ही ज़वाब देती है- " लेंस लगाया है "। सबको बोल - बोल कर इतना परेशान हो जाती है कि बोर्ड पर सबसे ऊपर लिख देती है।
" yes , आज मैं रोज से अलग दिख रही हूँ , इसलिए नहीं कि चश्मा भूल गई हूँ इसलिए क्यूंकि मैंने लेंस लगाया है। " अब जो भी आए उसे पहले ही बोर्ड की तरफ पढ़ने का इशारा कर देती ।
( नेहा बच्चों को काम दे , बैठ कर कुछ पढ़ने ही लगी थी कि तभी कोई दरवाजे पर आता है। नेहा बिना देखे कौन आया है, कहती है। )
नेहा - पहले बोर्ड पर लिखा पढ़ लो ।
( दरवाजे पर मनीष का दोस्त , गौरव कालरा खड़ा होता है। नेहा ने पहले कभी देखा तो नहीं होता है उसे , तो अगर देख भी लेती तो कैसे पहचानती। )
गौरव कालरा- पढ़ लिया भ.... ( रुक कर ) मैम।
( अब आवाज़ सुन नेहा दरवाज़े की तरफ देखती है। उसे लगता है किसी के भैया होंगे। खड़ी हो दरवाज़े की तरफ जाती है । )
नेहा - हाँ जी , सर। ( जाते हुए नज़र बोर्ड की तरफ पड़ती है। तो बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए कहती है। ) सॉरी फॉर दिस, वो मुझे लगा
कोई बच्चा है।
गौरव कालरा- कोई नहीं । दो मिनट आपसे बात
हो सकती है।
नेहा - हाँ जी सर, ( reception की तरफ इशारा करते हुए। ) उधर चल कर बात करते हैं।
गौरव कालरा- हाँ जी। ( गौरव बाहर की तरफ जाता है। )
नेहा - ( बच्चों से ) आप लोग अगले दो
questions और करिए, मैं आती हूँ। और
बात बिल्कुल नहीं , मैं किसी से भी बोर्ड
पर करा लूँगी।
( बच्चे " ok दी " कहते हैं , जिसके बाद नेहा भी reception की तरफ आती है। )
नेहा - बोर्ड के लिए फिर से सॉरी । ( कहते हुए बैठने लगती है । )
( गौरव टेबल पर एक पार्सल रखता है , और कहता है। )
गौरव कालरा - ये आपके लिए। ( सुन नेहा बैठते- बैठते रुक जाती है । ) अरे बैठ जाइए, कुर्सी भी
आपकी है , और जगह भी ।
नेहा - क्या मैं आपको जानती हूँ।
गौरव कालरा - हाँ भी , और ना भी ।
नेहा - मतलब ।
गौरव कालरा - आप पहले बैठ तो जाओ ।
नेहा - ( बैठते हुए। ) आप कौन ?
गौरव कालरा - मैं , मैं हूँ गौरव , गौरव कालरा ,
मनीष का दोस्त । और आप हैं मेरी होने
वाली भाभी।
नेहा - shshhh... ( धीरे बोलने का इशारा करते हुए । फिर ज्योति की क्लासरूम की तरफ देखती है । ) आप यहाँ क्या कर रहे हो ।
गौरव कालरा- कबूतर बना हुआ हूँ।
नेहा - मतलब ?
गौरव कालरा - मनीष को ...
नेहा- shshs.... ( चुप करने का इशारा करते हुए )
भाई मरवाने का इरादा है क्या? मेरी बहन
पढ़ा रही है उस क्लास में। ( क्लास रूम की तरफ इशारा करते हुए। )
गौरव कालरा - सॉरी... सॉरी। वो ऐसा है भाई
को कुछ देना था आपको पर यहाँ आ तो
नहीं सकता तो मुझे ऊपर भेज दिया।
नेहा - मतलब वो यहीं हैं।
गौरव कालरा- हाँ, नीचे।
नेहा - अरे यार , कल मिल तो रहे हैं । फिर ऐसी
भी क्या ... ( गौरव की तरफ देखते हुए चुप हो जाती है । )
गौरव कालरा - यही मैंने बोला था , पर उसने
बोला जल्दी नहीं है पर जरूरी है। तो मैं
क्या कहता । ( पार्सल को नेहा की तरफ बढ़ाते हुए। ) आप इसे देखिए शायद आपको
समझ आए, ऐसा क्या ज़रूरी है।
नेहा- लेते हुए। ( मन में सोचती है । ) इनका कुछ
भरोसा नहीं है कहीं कुछ ऐसा- वैसा होगा
तो । ( और पार्सल साइड में रखने लगती है। )
गौरव कालरा - आप आराम से देख सकते हो, मैं
नहीं देख रहा।
नेहा - इसीलिए आपको पता है, कि मैं नहीं देख
रही पार्सल।
गौरव कालरा- ( घूम कर दूसरी तरफ देखते हुए। ) अब ठीक।
नेहा - ( मुस्कुराते हुए। ) हाँ जी। ( फिर पार्सल
खोलती है। उसमें एक सॉरी कार्ड होता है। नेहा एक बार सभी क्लास की तरफ देखती है फिर गौरव कालरा की तरफ फिर कार्ड में पढ़ती है। )
hi , बच्चों की दीदी जी । पता है मुझे फिलहाल आप मुझसे बात करना भी नहीं चाहती हैं, इसलिए लिख कर भेज रहा हूँ। ना मेरे शब्द इतने अच्छे हैं, और ना ही लिखावट पर फिर भी एक कोशिश कर रहा हूँ। यार हो सकता है मेरे शब्द, या मेरी बातें गलत हों पर मैं दिल का बुरा नहीं हूँ। कुछ सोच भी ऐसी- वैसी हो सकती है, पर मैं ऐसा वैसा नहीं हूँ। इसलिए हर चीज़ के लिए मैं तुमसे सॉरी माँगता हूँ और एक नई शुरुआत करना चाहता हूँ। पर इसके लिए मैं तुम्हारी दिल की क्लास में एडमिशन लेना चाहता हूँ थोड़ी कोशिश कर मैं खुद को सुधारना चाहता हूँ। ( नेहा को हँसी आ जाती है। एक बार चारों तरफ देखती है फिर आगे पढ़ती है। ) सॉरी मैम, प्लीज सुधरने का एक मौका दे दीजिए और हमें blacklist से हटा अपने contact में रहने दीजिए और मीठी सी आइसक्रीम की ठंडक से हो सके तो अपने गुस्से को शांत कीजिए। ( और पूरे कार्ड में हर छोटी बड़ी जगह पर सॉरी लिखा होता है। नेहा देखती है और हँसती है और खुद से कहती हैबड़े फिल्मी टाइप के हैं आप । और क्या - क्या है देख रही होती है कि तभी एक बच्चा आ कर कहता है। )
बच्चा- दी हो गया।
नेहा - ( पार्सल को टेबल के नीचे की तरफ रखते हुए। ) वेरी गुड, बस दो मिनट आ रही हूँ।
गौरव कालरा - I guess, मेरा भी काम हो गया मैं
भी चलता हूँ। bye भ.... bye।
नेहा - हम्म , ..... एक मिनट ( फिर एक काग़ज़
पर कुछ लिखती है और गौरव को कहती है ।) ये उनको दे दीजिएगा ।
गौरव कालरा - उनको किनको? दुकान वाले
भैया को।
नेहा - अपने भैया को।
गौरव कालरा- तो सीधे बोलो ना आपके सैया
को।
नेहा - प्लीज... ( जाने का इशारा करते हुए ।)
गौरव कालरा- जा रहे हैं , जा रहे हैं.. ( कहते हुए
जाता है , नेहा पार्सल को अंदर रख रही होती है कि तभी गौरव वापिस आता है और कहता है। )
फिर मिलते हैं, बैंड बाजे के साथ भाभीजी।
( नेहा कुछ कहती इससे पहले ही चला जाता है। नेहा हँसती है और पार्सल अन्दर रख खिड़की की तरफ जा नीचे देखती है कि कहाँ है मनीष। मनीष खिड़की की तरफ ही देख रहा होता , नेहा जैसे ही देखती है मनीष की तरफ झट से खिड़की से दूर हो जाती है। गौरव वहाँ पहुँचता है। )
गौरव कालरा- ( मनीष से ) क्या देख रहा है ।
मनीष - ऐसा लगा नेहा आई थी खिड़की पर ।
गौरव कालरा - कौन- सी खिड़की तेरे दिल की
या वहम की ?
मनीष- हो गया तेरा , नेहा ने क्या कहा?
गौरव कालरा - कहना क्या था , बड़ी देर तक
मनाया पर मानी ही नहीं भाई , ऊपर से
तेरा पार्सल भी बिना देखे डस्टबीन में फेंक
दिया ।
मनीष- तू सच बोल रहा है ?
गौरव- झूठ बोलकर मुझे कोई फायदा थोड़ी
होना है।
मनीष - इतना भी क्या गुस्सा भाई । मुझे खुद
जाना चाहिए था, तुझे भेज कर गलत
किया ।
गौरव कालरा- सही बोल रहा है, कुछ ऐसा ही
बोल रही थी गलती खुद करो और माफ़ी
माँगने के लिए दोस्त को भेज दो ।
मनीष- मैं अभी जाता हूँ, आज इस किस्से को
खत्म करता हूँ।
गौरव कालरा - पागल है क्या भाभी की बहन भी
हैं ऊपर , बात खत्म करने में कहीं तू रिश्ता
ही ना खतम करवा दे ।
मनीष - क्या करूँ फिर ?
गौरव कालरा - कुछ ना कर , भाभी जी को थोड़ा
ठंडा होने दे ।
मनीष- आइसक्रीम देख भी गुस्सा नहीं पिघला ।
गौरव कालरा - क्या देख ?
मनीष - कुछ नहीं , नेहा ने पार्सल खोल कर भी
नहीं देखा ।
गौरव कालरा - देखना, क्या था उन्होंने तो सीधा
डस्टबीन में डाल दिया ।
मनीष - मतलब डबल गुस्सा ।
गौरव कालरा - हम्म ।
( नेहा बच्चों को काम दे , फिर खिड़की की तरफ आती है। मनीष और गौरव कालरा को वहीं देख सोचती है। )
नेहा - ( मन में ) अब तक नहीं गए । कुछ और भी
रह गया क्या ? ( फिर एक बच्चा नेहा के पास आ जाता है, सवाल पूछने । फिर नेहा का ध्यान खिड़की से हट जाता है। पर गौरव कालरा देख लेता है कि नेहा खिड़की पर है और मन में सोचता है । )
गौरव कालरा- इसने भाभी को देख लिया तो
सारा मज़ा गया । ( और मनीष से कहता है। ) देख भाई जो बिगड़ गया है उसके चक्कर में
जो है उसे मत बिगाड़। इससे पहले कोई
हमें देख ले यहाँ, चलते हैं । कल मिल तो रहे
ही हो , कल बात कर लेना ।
( मनीष कुछ नहीं बोलता , बस खिड़की की तरफ देखता रहता है। गौरव एक बार जेब में हाथ डालता है कागज़ निकाल देने के लिए, फिर सोचता नहीं इतनी जल्दी नहीं , थोड़ा देर और । फिर बाइक स्टार्ट करते हुए कहता है । )
गौरव कालरा- चल बैठ भाई , मेरा धुलने का
कोई इरादा नहीं है , जल्दी बैठ। ( मनीष बैठ जाता है, और दोनों चलें जाते हैं। गौरव मन में कहता है। ) सॉरी भाई , तुझे तंग करने के लिए
पर क्या करूँ भाई सच ही कहा है किसी ने
- हर एक दोस्त कमीना होता है। और मैं भी उन कमीनो में से एक हूँ। ( और खुद में ही हँसता है। )
© nehaa
नेहा - मम्मी मेरा फोन कहाँ है देखा किसी ने।
नेहा की मम्मी - पहले चश्मा लगा ले, फिर ढूंढ़
दिख जाएगा ।
नेहा - दिख रहा है मुझे।
नेहा की मम्मी- चश्मे के बिना ।
नेहा - हाँ।
गौरव - एक रात में ये क्या चमत्कार हो गया।
क्या खाया था तूने।
नेहा - कोई चमत्कार नहीं है, लेंस लगाया है मैंने।
नेहा की मम्मी - दिखा इधर ।( नेहा के चेहरे को घुमा देखने लगती हैं। ) ऊपर देख..( नेहा देखती है ) नीचे देख... ( नेहा देखती है) इस तरफ देख, उस तरफ देख। ( मम्मी जहाँ बोलती हैं, नेहा उस तरफ देखती है । )
नेहा - ( आँखों को दो - चार बार बंद करती है, खोलती है। ) मम्मी , आप क्या कर रहे हो । सिर
घुमा दिया मेरा ।
नेहा की मम्मी- मैं तो लेंस देख रही हूँ , हैं कहाँ।
मुझे तो कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा ।
नेहा - वो बहुत पतला-सा है ।
नेहा की मम्मी - इतना कितना पतला है, दिखा
मुझे ।
नेहा - अभी नहीं, जब मैं निकालूँगी तब दिखाती
हूँ। पूरा आधा घंटा लगा है इन्हें लगाने में।
गौरव - और इतने पतले लेंस में से तुझे सब साफ़
दिख रहा है।
नेहा - हाँ जी।
गौरव - अच्छा , तो ये पढ़ कर बता । ( सामने कैलेंडर पर दिखा, नेहा को पढ़ने को कहता है। नेहा पढ़ देती है, फिर कभी उँगली गिनवाता है तो कभी कुछ ।)
नेहा - ( गौरव से ) डॉक्टर साहब, आपकी जाँच
पड़ताल हो गई हो तो मैं जाऊँ।
गौरव - हाँ , अब पक्का विश्वास हो गया । तुझे
सब सही दिख रहा है। ( मम्मी से) मम्मी
चिंता ना करो, लड़की को सब साफ दिख
रहा है । चलते - चलते खंबे से नहीं
टकराएगी । ( मम्मी और गौरव दोनों मजे लेकर हँसने लगते हैं। )
नेहा - ( मम्मी से ) आप भी । सही है , बस कुछ
दिन और ले लो मेरे मजे। बाद में आपस में
ही लेते रहना।
गौरव - ओए, किसको बता रही है । हमें या अपने
आप को । मैं तो याद भी नहीं करने वाला
तुझे।
नेहा - वो तो वक़्त बता देगा, कि कौन किसको
याद करेगा। मुझे तो बहुत आराम होगा,
अपना अलग रूम ..... ( भाई बहन आपस में एक दूसरे को यूँही छेड़ रहे होते हैं, और नेहा की मम्मी की अभी से नेहा की बिदाई की सोच आँखें नम होने लगती हैं। )
" बड़ी अजीब रीत है ,
ये कैसी दिल की मीत है
की खुशियों की छडी, मेरे द्वारा खड़ी है
फिर भी ना जाने , क्यूँ आँखे भरी हैं
लाडौ की बिदाई की सोच
मेरे मन ने भी आहें भरी हैं ..... "
इंस्टिट्यूट में जाते ही हर कोई नेहा से एक ही बात कहता " दीदी आपका चश्मा कहाँ है " और नेहा एक ही ज़वाब देती है- " लेंस लगाया है "। सबको बोल - बोल कर इतना परेशान हो जाती है कि बोर्ड पर सबसे ऊपर लिख देती है।
" yes , आज मैं रोज से अलग दिख रही हूँ , इसलिए नहीं कि चश्मा भूल गई हूँ इसलिए क्यूंकि मैंने लेंस लगाया है। " अब जो भी आए उसे पहले ही बोर्ड की तरफ पढ़ने का इशारा कर देती ।
( नेहा बच्चों को काम दे , बैठ कर कुछ पढ़ने ही लगी थी कि तभी कोई दरवाजे पर आता है। नेहा बिना देखे कौन आया है, कहती है। )
नेहा - पहले बोर्ड पर लिखा पढ़ लो ।
( दरवाजे पर मनीष का दोस्त , गौरव कालरा खड़ा होता है। नेहा ने पहले कभी देखा तो नहीं होता है उसे , तो अगर देख भी लेती तो कैसे पहचानती। )
गौरव कालरा- पढ़ लिया भ.... ( रुक कर ) मैम।
( अब आवाज़ सुन नेहा दरवाज़े की तरफ देखती है। उसे लगता है किसी के भैया होंगे। खड़ी हो दरवाज़े की तरफ जाती है । )
नेहा - हाँ जी , सर। ( जाते हुए नज़र बोर्ड की तरफ पड़ती है। तो बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए कहती है। ) सॉरी फॉर दिस, वो मुझे लगा
कोई बच्चा है।
गौरव कालरा- कोई नहीं । दो मिनट आपसे बात
हो सकती है।
नेहा - हाँ जी सर, ( reception की तरफ इशारा करते हुए। ) उधर चल कर बात करते हैं।
गौरव कालरा- हाँ जी। ( गौरव बाहर की तरफ जाता है। )
नेहा - ( बच्चों से ) आप लोग अगले दो
questions और करिए, मैं आती हूँ। और
बात बिल्कुल नहीं , मैं किसी से भी बोर्ड
पर करा लूँगी।
( बच्चे " ok दी " कहते हैं , जिसके बाद नेहा भी reception की तरफ आती है। )
नेहा - बोर्ड के लिए फिर से सॉरी । ( कहते हुए बैठने लगती है । )
( गौरव टेबल पर एक पार्सल रखता है , और कहता है। )
गौरव कालरा - ये आपके लिए। ( सुन नेहा बैठते- बैठते रुक जाती है । ) अरे बैठ जाइए, कुर्सी भी
आपकी है , और जगह भी ।
नेहा - क्या मैं आपको जानती हूँ।
गौरव कालरा - हाँ भी , और ना भी ।
नेहा - मतलब ।
गौरव कालरा - आप पहले बैठ तो जाओ ।
नेहा - ( बैठते हुए। ) आप कौन ?
गौरव कालरा - मैं , मैं हूँ गौरव , गौरव कालरा ,
मनीष का दोस्त । और आप हैं मेरी होने
वाली भाभी।
नेहा - shshhh... ( धीरे बोलने का इशारा करते हुए । फिर ज्योति की क्लासरूम की तरफ देखती है । ) आप यहाँ क्या कर रहे हो ।
गौरव कालरा- कबूतर बना हुआ हूँ।
नेहा - मतलब ?
गौरव कालरा - मनीष को ...
नेहा- shshs.... ( चुप करने का इशारा करते हुए )
भाई मरवाने का इरादा है क्या? मेरी बहन
पढ़ा रही है उस क्लास में। ( क्लास रूम की तरफ इशारा करते हुए। )
गौरव कालरा - सॉरी... सॉरी। वो ऐसा है भाई
को कुछ देना था आपको पर यहाँ आ तो
नहीं सकता तो मुझे ऊपर भेज दिया।
नेहा - मतलब वो यहीं हैं।
गौरव कालरा- हाँ, नीचे।
नेहा - अरे यार , कल मिल तो रहे हैं । फिर ऐसी
भी क्या ... ( गौरव की तरफ देखते हुए चुप हो जाती है । )
गौरव कालरा - यही मैंने बोला था , पर उसने
बोला जल्दी नहीं है पर जरूरी है। तो मैं
क्या कहता । ( पार्सल को नेहा की तरफ बढ़ाते हुए। ) आप इसे देखिए शायद आपको
समझ आए, ऐसा क्या ज़रूरी है।
नेहा- लेते हुए। ( मन में सोचती है । ) इनका कुछ
भरोसा नहीं है कहीं कुछ ऐसा- वैसा होगा
तो । ( और पार्सल साइड में रखने लगती है। )
गौरव कालरा - आप आराम से देख सकते हो, मैं
नहीं देख रहा।
नेहा - इसीलिए आपको पता है, कि मैं नहीं देख
रही पार्सल।
गौरव कालरा- ( घूम कर दूसरी तरफ देखते हुए। ) अब ठीक।
नेहा - ( मुस्कुराते हुए। ) हाँ जी। ( फिर पार्सल
खोलती है। उसमें एक सॉरी कार्ड होता है। नेहा एक बार सभी क्लास की तरफ देखती है फिर गौरव कालरा की तरफ फिर कार्ड में पढ़ती है। )
hi , बच्चों की दीदी जी । पता है मुझे फिलहाल आप मुझसे बात करना भी नहीं चाहती हैं, इसलिए लिख कर भेज रहा हूँ। ना मेरे शब्द इतने अच्छे हैं, और ना ही लिखावट पर फिर भी एक कोशिश कर रहा हूँ। यार हो सकता है मेरे शब्द, या मेरी बातें गलत हों पर मैं दिल का बुरा नहीं हूँ। कुछ सोच भी ऐसी- वैसी हो सकती है, पर मैं ऐसा वैसा नहीं हूँ। इसलिए हर चीज़ के लिए मैं तुमसे सॉरी माँगता हूँ और एक नई शुरुआत करना चाहता हूँ। पर इसके लिए मैं तुम्हारी दिल की क्लास में एडमिशन लेना चाहता हूँ थोड़ी कोशिश कर मैं खुद को सुधारना चाहता हूँ। ( नेहा को हँसी आ जाती है। एक बार चारों तरफ देखती है फिर आगे पढ़ती है। ) सॉरी मैम, प्लीज सुधरने का एक मौका दे दीजिए और हमें blacklist से हटा अपने contact में रहने दीजिए और मीठी सी आइसक्रीम की ठंडक से हो सके तो अपने गुस्से को शांत कीजिए। ( और पूरे कार्ड में हर छोटी बड़ी जगह पर सॉरी लिखा होता है। नेहा देखती है और हँसती है और खुद से कहती हैबड़े फिल्मी टाइप के हैं आप । और क्या - क्या है देख रही होती है कि तभी एक बच्चा आ कर कहता है। )
बच्चा- दी हो गया।
नेहा - ( पार्सल को टेबल के नीचे की तरफ रखते हुए। ) वेरी गुड, बस दो मिनट आ रही हूँ।
गौरव कालरा - I guess, मेरा भी काम हो गया मैं
भी चलता हूँ। bye भ.... bye।
नेहा - हम्म , ..... एक मिनट ( फिर एक काग़ज़
पर कुछ लिखती है और गौरव को कहती है ।) ये उनको दे दीजिएगा ।
गौरव कालरा - उनको किनको? दुकान वाले
भैया को।
नेहा - अपने भैया को।
गौरव कालरा- तो सीधे बोलो ना आपके सैया
को।
नेहा - प्लीज... ( जाने का इशारा करते हुए ।)
गौरव कालरा- जा रहे हैं , जा रहे हैं.. ( कहते हुए
जाता है , नेहा पार्सल को अंदर रख रही होती है कि तभी गौरव वापिस आता है और कहता है। )
फिर मिलते हैं, बैंड बाजे के साथ भाभीजी।
( नेहा कुछ कहती इससे पहले ही चला जाता है। नेहा हँसती है और पार्सल अन्दर रख खिड़की की तरफ जा नीचे देखती है कि कहाँ है मनीष। मनीष खिड़की की तरफ ही देख रहा होता , नेहा जैसे ही देखती है मनीष की तरफ झट से खिड़की से दूर हो जाती है। गौरव वहाँ पहुँचता है। )
गौरव कालरा- ( मनीष से ) क्या देख रहा है ।
मनीष - ऐसा लगा नेहा आई थी खिड़की पर ।
गौरव कालरा - कौन- सी खिड़की तेरे दिल की
या वहम की ?
मनीष- हो गया तेरा , नेहा ने क्या कहा?
गौरव कालरा - कहना क्या था , बड़ी देर तक
मनाया पर मानी ही नहीं भाई , ऊपर से
तेरा पार्सल भी बिना देखे डस्टबीन में फेंक
दिया ।
मनीष- तू सच बोल रहा है ?
गौरव- झूठ बोलकर मुझे कोई फायदा थोड़ी
होना है।
मनीष - इतना भी क्या गुस्सा भाई । मुझे खुद
जाना चाहिए था, तुझे भेज कर गलत
किया ।
गौरव कालरा- सही बोल रहा है, कुछ ऐसा ही
बोल रही थी गलती खुद करो और माफ़ी
माँगने के लिए दोस्त को भेज दो ।
मनीष- मैं अभी जाता हूँ, आज इस किस्से को
खत्म करता हूँ।
गौरव कालरा - पागल है क्या भाभी की बहन भी
हैं ऊपर , बात खत्म करने में कहीं तू रिश्ता
ही ना खतम करवा दे ।
मनीष - क्या करूँ फिर ?
गौरव कालरा - कुछ ना कर , भाभी जी को थोड़ा
ठंडा होने दे ।
मनीष- आइसक्रीम देख भी गुस्सा नहीं पिघला ।
गौरव कालरा - क्या देख ?
मनीष - कुछ नहीं , नेहा ने पार्सल खोल कर भी
नहीं देखा ।
गौरव कालरा - देखना, क्या था उन्होंने तो सीधा
डस्टबीन में डाल दिया ।
मनीष - मतलब डबल गुस्सा ।
गौरव कालरा - हम्म ।
( नेहा बच्चों को काम दे , फिर खिड़की की तरफ आती है। मनीष और गौरव कालरा को वहीं देख सोचती है। )
नेहा - ( मन में ) अब तक नहीं गए । कुछ और भी
रह गया क्या ? ( फिर एक बच्चा नेहा के पास आ जाता है, सवाल पूछने । फिर नेहा का ध्यान खिड़की से हट जाता है। पर गौरव कालरा देख लेता है कि नेहा खिड़की पर है और मन में सोचता है । )
गौरव कालरा- इसने भाभी को देख लिया तो
सारा मज़ा गया । ( और मनीष से कहता है। ) देख भाई जो बिगड़ गया है उसके चक्कर में
जो है उसे मत बिगाड़। इससे पहले कोई
हमें देख ले यहाँ, चलते हैं । कल मिल तो रहे
ही हो , कल बात कर लेना ।
( मनीष कुछ नहीं बोलता , बस खिड़की की तरफ देखता रहता है। गौरव एक बार जेब में हाथ डालता है कागज़ निकाल देने के लिए, फिर सोचता नहीं इतनी जल्दी नहीं , थोड़ा देर और । फिर बाइक स्टार्ट करते हुए कहता है । )
गौरव कालरा- चल बैठ भाई , मेरा धुलने का
कोई इरादा नहीं है , जल्दी बैठ। ( मनीष बैठ जाता है, और दोनों चलें जाते हैं। गौरव मन में कहता है। ) सॉरी भाई , तुझे तंग करने के लिए
पर क्या करूँ भाई सच ही कहा है किसी ने
- हर एक दोस्त कमीना होता है। और मैं भी उन कमीनो में से एक हूँ। ( और खुद में ही हँसता है। )
© nehaa