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बहन जी की बातें कमाल!
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बात पुरानी है। शायद 1970 के दशक की। ये वो दौर था जब स्कूलों में अध्यापिका को मैम या टीचर के बजाय बहन जी कहा जाता था। बहन जी भी स्कूलों में सलाईयां ले जाती थीं और पूरा दिन स्वेटरें भी बुना करती थीं।

वैसे तो प्राथमिक पाठशाला में बच्चों को सभी विषय पढ़ाए जाते थे। बहनजी जितना जानती थीं, उतना बच्चों को पढ़ा देतीं थीं। बाकी समय वो सुंदर सुंदर स्वेटर बुनने में लगा देतीं।😇

‘तू पढ़ method’ आम था। एक दबंग टाइप के बच्चे को किताब पकड़ा दी जाती थी। बच्चा तोते की तरह किताब की कहानी पढ़ लेता था। बाकी बच्चे भी पीछे-पीछे छोटे तोतों की तरह कहानी की पंक्तियां ऊंचा ऊंचा दोहरा देते थे। बहन जी तब तक स्वेटर के कई घर बुन लेती। आम के आम गुठलियों के दाम!
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ब्लाक प्राथमिक शिक्षा अधिकारी (बी.पी.ई.ओ साहब) के औचक निरीक्षण से सभी बहनजी खौफ़ज़दा रहती थीं। बच्चों को पहले ही समझा दिया जाता था कि बी.पी.ई.ओ साहब के सामने फ़िज़ूल बात नहीं करनी है। बहन जी की कर्तव्य निष्ठा और पाठशाला में हाज़िरी की प्रशंसा करनी है।
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उस दिन सबसे तीव्र स्वेटर बुनने वाली बहनजी की पाठशाला में बी.पी.ई.ओ साहब का औचक निरीक्षण हो गया। साहब ने बच्चों को कुछ पंक्तियां हिंदी में लिखने को कहा। बच्चों को जैसे-जैसे बोला गया वैसे-वैसे लिख दिया। बी.पी.ई.ओ साहब ने वाक्यों के बीच-बीच में दो नई चीज़ें कह डाली जो न तो बच्चों ने पाठ में पढ़ी थीं और न कभी बहनजी ने बताई थीं। एक था— अर्ध विराम (,) यानी कि कोमा और दूसरा पूर्ण विराम (।) यानी फुल स्टाप!
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बच्चे भी तीव्र थे बहनजी की तरह! जहां जहां जैसा बोला गया वैसा-वैसा लिख दिया अर्थात् चिह्नों के बजाय शब्दों में अर्ध विराम और पूर्ण विराम!
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बी.पी.ई.ओ साहब माथा पीटकर रह गए। जब उन्होंने बहन जी से कारण पूछा तो वो बगलें झांकने लगी। सलाइयों की स्पीड के चक्कर में उन्हें स्वयं भी अर्ध विराम और पूर्ण विराम सीखने समझने का समय नहीं मिला था तो बच्चों को क्या सिखातीं?!
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लेकिन बहनजी भी बहनजी थीं सो बी.पी.ई.ओ साहब को उन्होंने स्पष्ट किया कि आज तो उनसे अर्ध विराम और पूर्ण विराम घर में छूट गया है। कल ज़रूर ले कर आएंगी और बच्चों को सुबह की प्रार्थना सभा में सावधान विश्राम के साथ-साथ अर्ध विराम और पूर्ण विराम भी सिखाएंगी ताकि बच्चों का चहुंमुखी विकास हो सके।
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बी.पी.ई.ओ साहब का सिर चकराने लगा। बेचारे बहनजी से ही सिरदर्द की दवा मांगने लगे!
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—Vijay Kumar
© Truly Chambyal