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स्वामीनाथ
स्वामीनाथ

मैं पुराने एल्बम के पन्ने पलट रहा हूँ।कभी-कभी अच्छा लगता है अतीत में लौटना। कितने लोग जो कब के चले गये और जो विस्मृति की धुँध में खो गये, अचानक लौट आते हैं फिर से स्मृतियों में। दरअसल,आज बेटी-रश्मि का जन्मदिन है-उसकी उन्नीसवीं सालगिरह। घर का सुसज्जित ड्राइंगरूम रंगविरंगे झालरों और अनेक दुधिया बल्बों की रोशनियों से नहाया हुआ जगमग है।घर में एक उत्सव का माहौल है ।उसकी एक बहुत सुंदर-सी कलात्मक तस्वीर कभी स्वामीनाथ ने बनायी थी जब वह बमुश्किल चार साल की रही होगी। छोटे साइज की वह मोनालिसा सी मुस्कान विखेरती तस्वीर एक खूबसूरत पेन्सिल स्केच है। आज उसके जन्मदिन पर उसी तस्वीर की अचानक याद आ गयी जो इस एल्बम में तब से लगी है। इस तस्वीर को देखकर स्वामीनाथ की स्मृतियाँ फिर से जीवित हो उठी हैं। सच ही कहा गया है कि कलाकार अपनी कृतियों में सदैव जीवित रहता है। हालाँकि उसे गुजरे हुए एक अरसा हुआ।करीब-करीब पंद्रह बरस।जहाँ तक मुझे याद है ,लगभग तीस- पैतीस की उम्र में वह इस दुनिया से कूच कर गया था।और वह भी कैसी लावारिश मौत ..जाड़े की एक रात स्टेशन की बेंच पर । मुझे हफ्तों बाद उसके न होने का पता चला था। स्टेशन के रजिस्टर में उस रात एक लावारिश लाश दर्ज की गई थी।
स्वामीनाथ और मैं बचपन के दोस्त थे।हालाँकि दोस्ती की जड़ें बहुत गहरी नहीं थीं।कहाँ मैं सवर्ण और कहा वह एक दलित।मेरा उसके घर आने-जाने,उसके साथ खेलने-कूदने--इन सब चीजों पर कड़ी पाबंदियां थीं।उसका घर मेरे मोहल्ले के पश्चिमी छोर पर दलितों की बस्ती में था। वह जगह दूर से एक टीले की भाँति दीखती । हमलोग वहाँ पाँच-छह साल तक रहे पर मुझे याद नहीं कि इस दरम्यान मैं शायद ही कभी दो-तीन बार से अधिक उसके घर गया हूँगा। असल में माँ को छुआछूत में पूरा विश्वास था और हमारे सवर्ण पड़ोसियों को भी मोहल्ले में किसी अछूत लड़के का आना-जाना पसंद नहीं था। और तो और मोहल्ले के मंदिरों में भी उनका प्रवेश निषिद्ध था। एक बार माँ से मैंने सहज जिज्ञासावश पूछा था कि छट्ठ पर्व में उन्हीं के हाथों से बने बाँस के सूप और खँइचें अर्घ्य देने में जब काम आते हैं, तो फिर वहाँ हमें छूत क्यों नहीं लगता ? माँ के पास इसका जब कोई जवाब नहीं सूझ पाया तो उसने यह कहकर मुझे डांट दिया था कि छट्ठी मइया के बारे में कोई अशुभ बात मुँह से नहीं निकालते । माँ रूष्ट होती हैं । फिर उसने हाथ जोड़ मेरे लिए क्षमा मांगी थी। स्वामीनाथ के प्रति मेरे मन के किसी कोने में दया,तरस और श्रद्धा से उपजी एक किस्म की हमदर्दी का मिला-जुला भाव था और इसकी एक और वजह भी...