“इज्ज़त के व्यापारी„
वैसे तो मैं हमेशा बड़ा,छोटा,अपना पराया,सुख दुःख,लाभ हानि से सदा दूर रही,लेकिन जहां मैं
पल बढ़ रही थी वहीं एक समाज रूपी घड़ियाल
मुंह खोले इन्ही सब चीजों को बड़े ही धूमधाम से
खा पी रहा था, अब मैं सोलह साल की हो गई थी
जब मैं स्कूल रिश्तेदारी,या किसी सामा जिक
कार्यक्रम में जाती,तो लोग बड़ी इज्जत से पेश ...
पल बढ़ रही थी वहीं एक समाज रूपी घड़ियाल
मुंह खोले इन्ही सब चीजों को बड़े ही धूमधाम से
खा पी रहा था, अब मैं सोलह साल की हो गई थी
जब मैं स्कूल रिश्तेदारी,या किसी सामा जिक
कार्यक्रम में जाती,तो लोग बड़ी इज्जत से पेश ...