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* प्रकृति का सानिध्य *
एक अजीब सा सुकून है प्रकृति के सानिध्य में ! ऐसा महसूस होता है जैसे एक अर्से बाद घर वापसी हुई हो । न जाने क्या तिलिस्म है इस हरे रंग में , एक असीम ही शांति का अहसास होता है इन वृक्षों की ओर ताकने भर से ।
बस कुछ क्षण का सानिध्य ही फिर से तरोताजा व जीवन के उतार चढ़ाव से जुझने की उर्जा दे जाता है ।

अपने गांव के घर के द्वार पर ठंढी के मौसम में धूप तापना और कुछ समय प्रकृति के सानिध्य में गुजारना एक विलोभनीय अनुभव है ।

द्वार पर एक नीम का पेड़ है । हवा में नीम के पत्ते अपने डंढल पर कुछ यूं डोलते हैं मानो हाथ हिलाकर कोई अभिवादन कर रहा है । नन्ही नन्ही गिलहरियों की चपलता और चंचलता बस देखते ही बनती है, पेड़ से कभी घर की छत पर कूद जाती हैं तो कभी जमीन पर उतर कर अपना भोजन ढुढती है ,कुछ बीन कर खाने लगती हैं पर उनकी निगाहें मानो वातावरण को स्कैन करतीं रहतीं हैं एकदम चौकस और तेजतर्रार, हल्की सी आहट और वे फुर्ती से पेड़ पर लौट जाती हैं ।

जब मैं प्रकृति के इन नजारों में इतना खो जाता हूं कि मैं उनमें एकरूप हो जाता हूं मेरा‌ स्वतंत्र कोई व्यक्तिमत्व ही नहीं रह जाता है और मैं मंत्रमुग्ध सा बहुत देर तक निश्चल बैठा रह जाता हूं तो शायद मुझे भी एक जड़ वस्तु समझकर एकाध गिलहरी मेरे कुर्सी के एकदम पास आ जाती है और मैं दम साधे बैठा उसको निहारता रहता हूं। ओह ! सचमुच परम पिता परमात्मा की कृति को निकटता से अनुभव कर हृदय गदगद और प्रफुल्लित हो जाता है ।
विभिन्न पक्षी इस वृक्ष के इर्दगिर्द नज़र आते हैं ।
इन सबका निरीक्षण करना अपने आप में एक असीम आनंद की अनुभूति प्रदान करता है।
उनके रंग, विविध आकार,चारा चुनने का अंदाज, उनकी प्रत्येक गतिविधि मन मोह लेती है। इन सब पक्षियों के नाम मैं नहीं जानता बस उनके सौंदर्य को इतने करीब से देखना अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव है । शांत वातावरण में गुज़ता उनका कलरव किसी संगीत से कम नहीं । एक पक्षी उस नीम वृक्ष पर एक ही डाल पर बैठा नज़र आता है गौर से देखने पर पता चलता है कि वह उल्लू है जो निशाचर होने के कारण दिन में विश्राम करता है।

सामने खेतों में सरसों लगें हैं उन पर चटक पीले फूल बड़े ही आकर्षक लग रहें हैं । हृदय इस छटा को निहार कर सृष्टि के सृजनकर्ता के सम्मुख नतमस्तक हो जाता है ।

शांति तो प्रायः अब शब्द कोश तक सिमट कर ही रह गया है उसे अनुभव करना तो दूर की बात ठहरी ! अंतर की तो छोड़िए बाह्य शांति भी अब एक दुर्लभ अनुभव होता जा रहा है। ऐसे मैं शांत , शुद्ध वातावरण को अनुभव करना आनंददाई महसूस होता है।

समय मानो थम सा जाता है । सब कुछ धरा के आंचल में समाया सा प्रतीत होता है। मैं भी माऩों अपना पृथक अस्तित्व खो कर उसमें ही एकाकार हो जाता हूं ।सब कुछ मानो एक हो गया हो। एक में ही विलीन हो गया हो ।उस असीम शक्ति जिससे सब कुछ सृजित हुआ है वह पुनः उसमें ही समाहित हो गया है।

कुछ अनुभव, कुछ अहसास शब्दों में बयां करने के परे होते हैं उन्हें बयां नहीं किया जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है । प्रकृति का सानिध्य भी कुछ- कुछ ऐसा ही है ।यह लेख तो मात्र उस परमानंद को साझा करने का एक आंशिक प्रयास मात्र है।
आशा है आपको रुचिकर प्रतीत होगा ।

आपकी प्रतिक्रिया का बेताबी से इंतजार रहेगा ।

- ओम ' साईं' ( ओमप्रकाश सिंह )
बनारस, 08.02.2022
© aum 'sai'