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अमल ज़रूरी है!
दुनिया की तमाम अच्छी बातें कहीं जा चुकी हैं।तमाम अच्छे परामर्श दिए जा चुके हैं। विचारों से किताबें, पुस्तकालय, गूगल बाबा और सोशल मीडिया अटा पड़ा है।हर सुबह वाट्स ऐप, इंस्टाग्राम और भांति-भांति के मीडिया में सुंदर विचारों का प्रकटीकरण इस तरह से होता है मानो दुनिया से सारा दुख क्लेश और दुर्भावनाएं समाप्त हो चुकी हैं और Utopian state (आदर्श/ राम राज्य) की स्थापना हो चुकी है। अद्भुत सा लगता है सब। सचमुच mesmerizing!

किंतु वास्तविकता अत्यंत कष्टकारी है।हृदय बींध डालती है। अखबारें, सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल जब दिखाते हैं कि— फलां भाई ने ज़मीन मकान की खातिर अपने ही भाई को मार डाला, बुज़ुर्ग मां बाप से जवान बच्चे बद्तमीज़ी से पेश आते हैं, पति पत्नी की कलह बढ़ती जा रही है, पड़ोसी अपने ही पड़ोसी को देखना नहीं चाहता, प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को टुकड़े-टुकडे कर फ्रिज में रखा आदि आदि। सबसे अधिक बातें प्रेम पर कहीं जाती हैं और सबसे अधिक धोखे अथवा अपराध भी प्रेम के नाम पर ही होतें हैं।

लाख टके का सवाल है कि— क्या जो सद्विचार ज़माने से पढ़ाए/ सिखाए जा रहे हैं, हम वास्तव में, उन पर अमल कर रहे हैं या उन्हें जीवन में अपना रहे हैं? क्या मैं केवल दुनिया को सुंदर विचार लेखन से प्रभावित करना चाहता हूं परंतु स्वयं उनपर अमल नहीं करता? क्या हम मनुष्य hypocrisy से ग्रस्त हैं? क्या हम split/ dual personality ओढ़े हुए हैं? कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।

सच मानिए, यदि वास्तव में हम सुसंस्कृत मूल्यों पर आधारित जीवन जी रहे हैं तो ऐसा जीवन मुबारक है लेकिन कहते हुए अफ़सोस होता है कि हो बिल्कुल उलट रहा है।

एक विचार क्रांति का कारण बन जाता है, बन सकता है। एक विचार सचमुच जीवन बदल सकता है।शर्त वही है कि अमल हो, पालन हो और पूरी शिद्दत से हो।

किसी शायर ने कहा है—
" इक पत्थर की तकदीर भी संवर सकती है, शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए!"

अगर बात सही है तो चलिए हम सभी सलीके से शुरूआत करते हैं, स्वयं से आरंभ करते हैं, समाज की विकृतियां स्वयं ठीक हो जाएंगी।

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal