शायद
शायद
यूँ ही खो जाता है मन, विगत स्मृतियों में,
सोचता रहता है अक्सर आगत खुशियों में।
आख़िर था क्या? हुआ हूँ क्या? और क्या हो जाऊँगा,
इन स्मृतियों में, स्मृतियों सा हो, यूँ विस्मृत खो जाऊँगा।
क्या यही अलंकार रहा था, क्या जीवन आधार रहा था,
किसके लिए, किस चाह में, हृदय व्यथित इस प्रकार रहा।
सोचता तो हूँ...
यूँ ही खो जाता है मन, विगत स्मृतियों में,
सोचता रहता है अक्सर आगत खुशियों में।
आख़िर था क्या? हुआ हूँ क्या? और क्या हो जाऊँगा,
इन स्मृतियों में, स्मृतियों सा हो, यूँ विस्मृत खो जाऊँगा।
क्या यही अलंकार रहा था, क्या जीवन आधार रहा था,
किसके लिए, किस चाह में, हृदय व्यथित इस प्रकार रहा।
सोचता तो हूँ...