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सुकून भरा दिन
सुकून भरा दिन

एक दिन परिवार के साथ मैं मंदिर जा रही थी, जो शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित था। बारिश के दिन थे। हमारे निकलने के कुछ दिनों पहले बहुत बारिश हुई थी। इतनी बारिश के लोगों के घरों में पानी भर गया था।
दोपहर को हम घर से निकले, घने बादल थे। रास्ते में चाय नाश्ता करने के लिए हम रुक गए। हमारा वाहन चालक, किशोर नाश्ता कर रहा था, उतने में एक छोटा लड़का आया और उसे देख रहा था। किशोर को लगा वह लड़का किसी और को देख रहा है। किशोर ने अपने खाने पर ध्यान दिया। मैं पानी की बोटल लेने उस होटल में गईं। मेरी नज़र उस लड़के पर पड़ी जो किशोर को देखे जा रहा था। उस लड़के के कपड़े फटे हुए थे, बाल बिखरे हुए, हाथ में एक थैली लिए खड़ा था, लगभग ७-८ साल का होगा। उसे देख ऐसे लगा जैसे बहुत दिनों से वह लड़का भूखा है। मैं उसके पास गई। मुझे देख वो डर गया। मैंने उसे शांत किया और उससे पूछा, " तुम इतनी देर से उसे क्यों देख रहे हो? क्या तुम उसे जानते हो?" उस लड़के का जवाब सुनकर मेरी आंखों में पानी आया। उसने कहा," मैं उसे नहीं, उसकी थाली को देख रहा हूं। बहुत दिनों से पेट में अन्न का दाना नहीं है। बारिश की वज़ह से मेरा घर बह गया। मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं खाने के लिए कुछ खरीद लूं।"
उस मासूम का हाल देख मेरा मन रोने लगा। उसकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी। मैंने उसे कुर्सी पर बिठाया, उसके हाथ धोएं। होटल से एक समोसा, कचोरी और एक पानी की बोटल उसके लिए मंगवाई।
न जाने कब से वो लड़का भूखा था, खाना देखते ही उसपर टूट पड़ा। उसे खाते देख मन को जैसे सुकून मिला।
मुझे ये सब करते देख, परिवार के हर सदस्य ने शाबाशी दी। पर इस शाबाशी से ज़्यादा आंनद मुझे इस बात का हुआ, कि मैंने एक भूखे को खाना खिलाया। कहते हैं अगर आप किसी जरूरतमंद को मदद करते हो, तो उनसे मिला आशीर्वाद सबसे बड़ा होता है।

© kk_jazbaat

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