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माँ
आज उसका बेटा आज उसे वृद्धा आश्रम छोडकर आखिर आ ही गया। उसके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं थी। न ही कोई दर्द। दोनो बेटे बहु बहुत ही खुश थे। क्योंकि वो एक आजाद जिंदगी जीना चाहते थे। माँ का हर बात पर रोकना टोकना उन्हें पसंद नहीं था। ऊपर से दोनों नौकरी करते थे। माँ तो हमेशा अकेली ही रहती थी। खाना भी अकेली ही खाती थी। कभी किसी चीज की जरुरत भी होती तो दोनों बेटा बहु सुनते तक नहीं थे।
बेचारी माँ अकेले रोती ही रहती थी। एक बेटा जब खुद ही अपनी माँ को वृद्धा आश्रम छोड़ कर आए तो उसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते हैं।
जिस माँ ने नौ महिने अपने पेट में रखा। इतने दर्द सहे, कितनी राते बिना सोये गुजार दी।
दुनिया से लड गई वो अपने बेटे की खातिर और आज वो बेटा न लड सका अपने आप से, अपनी बीवी से, अपने उसूलों से।
क्यो शादी के बाद ही बेटा माँ को वृद्धा आश्रम नहीं छोड़ कर आता।
क्या एक बहु को यही संस्कार दिए जाते हैं
खैर जब उसका बेटा ही उसका दर्द नहीं समझा तो एक परायी लडकी से क्या उम्मीद करे वो।
एक बूढी लाचार बेबस माँ क्या करे किससे उम्मीद करे किसके आगे अपना आँचल फैलाए।
बेटे को वृद्धा आश्रम छोड़ कर आने के बाद बेटे को अदालत का एक नोटिस मिला। कि ये घर आपकी माँ के नाम पर है। इसलिए आपको ये घर खाली करना पड़ेगा जल्द से जल्द। ये सुनकर दोनों बेटे बहु माँ के पास पहुंचे कि माँ घर के कागज कहा है।
और ये नोटिस किसने भेजा।
माँ बोली बेटा ये घर मेरा है तेरे पापा की आखिरी निशानी है। मै इसे किसी भी कीमत पर किसी को भी नहीं दूंगी।
माँ वो जन्नत है जो एक बार छोड़ दी तो कभी दुबारा नहीं मिलती।।