...

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नापसंद
आज इतने दिनों के बाद तुम्हारा
मैसेज देख कर मैं हैरान रह गयी
अब कुछ नहीं बदलने वाला
रिश्ता तो तुमने ही तोड़ा था
अब क्यों इन्तजार करते हो
अब क्यों याद करते हैं
मैंने तो लाख चाहा था
हम साथ चलें मगर
तुम्हें शायद ये मंजूर नहीं था
मेरी हर पसंद तुम्हारी नापसंद में शामिल थी
मेरी कलर सेंस अच्छी नहीं थी
मेकप सेंस तो मुझे आती ही नहीं थी
मेरे उठने बैठने का तौर-तरीका ठीक नहीं था
मैं चाहे कितने मनोयोग से खाना बनाऊं
नहीं स्वाद तो कभी होता ही नहीं था
मैं चाहे कितना ही मधुर बोलूं
मेरा हर लफ्ज़ तुम्हें तीर सा चुभता था
मेरी मुहब्बत मेरा खुलूस
तुम्हारे लिए बेमानी था
हां एक बात के मानी थे
बस तुम्हारी तारीफ करती रहूं
और तुम अपने दोस्तों के सामने
मेरी इज्जत उतार देते थे
तुम्हारे शक के दायरे थे
और मेरा दिल अकेला था
एक ही छत के नीचे
दो अजनबियों की तरह रहना
मुझे कतई पसन्द नहीं था
शायद मुहब्बत रास नहीं आई
शायद किसी की नज़र लग गई
गुलशन बाहार आने से पहले उजड़ गया
© सरिता अग्रवाल