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Phone Call
#TheWritingProject


नलिनी और आदित्य एक दूसरे को कॉलेज के दिनों से जानते थे I दोनों पहले बहुत अच्छे दोस्त बने, और फिर दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गयाI दोनों की शादी को अभी कुछ ज्यादा समय नहीं हुआ था I दोनों अब साथ थे, और खुश भी आदित्य अपने काम की वजह से ज्यादातर समय घर से दूर ही रहता था और नलिनी घर में अकेले रहती थी I दोनों एक दूसरे के साथ ज्यादा समय तो बिता नहीं पाते थे मगर प्यार दोनों में पहले जैसा ही था I





एक दिन नलिनी घर में दोपहर के समय किताब पढ़ रही थी I तभी उसे एक फोन आया I फोन किसका था यह देख कर बहुत खुश हो गई और बड़ी ही खुशी से फोन का जवाब दिया I





"हेलो.............तो तुम्हें मेरी याद आ गई.... चलो यह जानकर अच्छा तो लगा कि तुम्हे याद है कि तुम्हारी बीवी भी है.. जो घर में अकेले बैठी तुम्हारा इंतजार कर रही है"





"तुम्हारा तो हर बार का यही है जब भी फोन करो ताने ही मिलते हैं…… सोचा था घर में फोन करूंगा बीवी से बात करूंगा तो थोड़ा अच्छा लगेगा I मगर तुम्हें तो मेरी कोई परवाह ही नहीं जब देखो बस लड़ती हो"





"हां मैं लड़ती हूं.... इसीलिए तुम हमेशा घर से दूर रहते हो ताकि तुम्हे मेरी बाते न सुननी पडे........."





"बस यही तो गलत समझती हो तुम मुझे I अरे अगर मेरा बस चले न तो मैं तो तुम्हे एक पल के लिए भी अपनी नजरो से दूर न होने दू......"





"कहते तो तुम वैसे बहुत कुछ हो.......पर मिस्टर कोई कल की आई हुई लडकी नही हू, बीवी हू तुम्हारी..... तुम्हे और तुम्हारी इन लम्बी बातो को न अच्छे से जानती हू......मुझ पर न अब यह सब नही चलेगा"





आदित्य को नलिनी कि बात सुनकर हंसी आ गई " तो क्या कर रही थी ?"





"कुछ खास नही.....बस अकेले बैठे यह बोरिंग सी कहानी पढ रही थी......."





"अच्छा बेटा.....यहा पर हम… दो वक्त कि रोटी के लिए अपनी जी जान से मेहनत कर रहे है.......लोगो की सेवा करते हुए भी गालिया खा रहे है....... और आप आराम से मजे कर रही है. और उसके बाद ही बुरा सुने हम......वाह रे भगवान क्या चुन कर जीवन साथी दिया है........"





"ओह.......इतना ड्रामा करने कि न कोई जरुरत नही है" "हाँ....सुनेगा भी कौन...?"





"क्या?" "कुछ नही"





"अच्छा यह बताओ तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?"





"सब बढ़िया....... बिल्कुल वैसा ही हमेशा होता है.......... धुआंधार .....अब काम भी तो ऐसा ही है....... बिल्कुल आराम नहीं है...... पूरे दिन.... 24 घंटे......... 7 दिन...... बस काम ही करते रहो"





"अच्छा...तो अब घर कब आ रहे हो."





"अभी कुछ पता नहीं. तुम्हारी बहुत याद आती है यार......"





"झूठ" "मतलब?" "मजे में हो तुम वहा.....मैं तो यहां तुम्हे परेशान करती हु न” “उस परेशानी को हर वक्त झेल सकू, इसलिए तुमसे शादी की थी....तो दूर क्यों रहना चाहुगा"





"रहने भी दो अब....तुम्हारे बिना पता है कितना अकेला लगता है. कहि मन नहीं लगता....पर तुम्हे क्या?....तुम करो मजे वहा अकेले"





आदित्य को अचानक ही बात करते हुए हसी आ गई. "तुम्हे याद है.. कॉलेज में आशुतोष ने जब एक प्रैंक किया था.....की मैं अचानक ही रातो-रात अपने चाचा के पास ग्वालियर चला गया हु.....और अब कभी नहीं लौटूंगा.....तुम कितना उदास हो गई थी न.......अगर मैं 2 मिनट और वहा नहीं आता तो शायद रो ही पड़ती."





"तो क्या करती.....उस वक्त सब ने मिलकर मुझे पागल बनाया था.....तुम भी छिप कर देख रहे थे......पता है कितना डर गई थी मैं की अब तुम्हे कभी नहीं देख पाउंगी...और तुम्हे अब भी उस बात पर हँसी आती है."





" अब बात ही ऐसी है....तुम्हे परेशान करना इतना आसान जो था....और तुम जब गुस्सा होकर अपना मुँह दो गुना फुलाती थी न तो और मजा आता था"





"अच्छा.....और तब भूल गए जब मुझे तुम्हारे दोस्त ने प्रपोज़ किया था.....वो भी तुम्हारे सामने....तब किसका मुँह गुब्बारे की तरह फूल गया था?"





"हां तो......गुस्सा तो आएगा न और उस समय तुम मुझसे नाराज़ भी थी....कही तुम उसे गुस्से में हाँ बोल देती तो.....मेरा क्या होता तुम्हारे बिना?"





"वैसे अच्छा ही होता अगर हाँ बोल देती....उससे शादी भी कर लेती....कम से कम मेरा पति मेरे साथ तो रहता.....अभी की तरह नहीं की बस शक्ल दिखाने के लिए घर आते हो....की मैं यह न भूल जाऊ की मेरी शादी हो चुकी है...और किसी के साथ न भाग जाऊ....."





"हाँ.....जैसे तुम्हारे लिए तो बाहर लाइन लगी हुई है न लड़को की."





"अगर चाहु तो अभी भी बहुत है" "तो अब तक क्यों अकेली बैठी हो घर में"





"क्यूंकि उनमे से कोई भी तुम्हारी तरह महान नहीं है न जो मुझे झेल सके"





"हाँ तो घूम फिर कर मैं ही मिला न तुम्हे"





"तो तुम्हे भी कौन सा कोई लड़की पसंद करेगी....वो तो मेरी जुबान फिसल गई थी उस समय.....और फिर सोचा चलो ठीक ही है...अब मना करके क्या तुम्हारा दिल दुखाना"





"ओहो......महानात्मा....आप न होती तो हम तो कुंवारे ही मर जाते......"





"वो तो है...."





"हयय......कितना पागल था न मैं। या यूँ कहो की हो गया था जब पहली बार तुम्हे देखा था....."





"कब की बात कर रहे हो" "याद है एक दिन कॉलेज के शुरू के ही दिन थे....तुम बी विंग से अपने क्लास ख़त्म करके कैंटीन की तरफ जा रही थी....और एक दूसरी लड़की के साथ बात करने में लगी थी....तब मैं और मेरा दोस्त तुम्हारे सामने से गुज़र रहे थे....पहली बार मेरी नज़र तुम पर पड़ी थी....और बस.....काम तमाम.....तुम बिना मेरी तरफ ध्यान दिए चल दी अपने रास्ते और मैं तुम्हे देखने के लिए अपने गर्दन को पूरा घुमा चुका था की सामने से आती उस खड़ूस प्रोफेसर को भी नहीं देखा......और जाके टकरा गया उसके मोटे से पेट से.....उस दिन तो उसने इतन सुनाया न की जैसे पिछले जन्म का बदला ले रही हो"





"अच्छा........यह तो तुमने पहले कभी नहीं बताया"





"क्या बताता.....की हमने तो अपना दिल खो दिया....हाय्य.......और हमारी महबूब को हमारी मोहब्बत कोई अहसास तक न था"





"अरे वाह्........बाते तो देखो...कहा से चुराई है."





"तुम्हे क्यों बताओ" “"ठीक है मत बताओ....चिपकाओ अपनी यह चुराई हुई बाते मुझ पर.....वैसे उस दिन तुमने नीले रंग की टी शर्ट और ब्लैक जीन्स पहनी हुई थी न.....और तुम्हारे हाथ में एक पतली सी किताब थी..."





"तुम.....तुम्हे कैसे..." "तुम्हे क्या लगता है की पहली नज़र का प्यार......नहीं वो क्या.....हाँ..मोहब्बत का अहसास बस तुम्हे ही हुआ था.?"





"पर मुझे तो लगा की तुमने मुझे सबसे पहले तब देखा था जब जतिन ने हमें मिलाया था..."





"और जतिन से किसने कहा था की वो तुम्हे भी मूवी पर साथ में चलने के लिए पूछे?....."





"ओह्ह.....और मुझे लगा की मैं ही एक पागल हु........पर उसके बाद भी तुमने इतने नखरे क्यों किए थे जब मैने तुम्हे लंच पर चलने के लिए पूछा था......पता है कितना परेशान था मैं पूरी रात की तुम अगर मना कर दोगी तो क्या करुंगा......"





" अब नखरे करना तो बनता था न। नहीं तो तुम मेरे आगे पीछे कैसे घुमते?"





"तो मतलब प्यार था पर फिर भी ........बहुत बढ़िया....और मैं हर बार तुम्हे खुश करने के लिए जो शुरू के 6-7 महीने तक यूँ पागलो की तरह नए नए तरीके खोजता था उनकी कोई जरुरत नहीं थी ? "





"अरे..! क्यों नहीं थी...अगर तुम वो नहीं करते तो मुझे पता कैसे चलता की तुम मुझसे कितना प्यार करते हो?"





"और तुम्हारा क्या.....मुझे कैसे पता चलेगा की तुम मुझसे कितना प्यार करती हो"





"अपने घर वालो की खिलाफ जाके तुमसे शादी की.....तुमसे......अभी भी तुम्हे पता लगाना है....."





"नाराज़ क्यों होती हो....मैं तो बस मजाक कर रहा था..." "तुम रहने दो अब... एक तो तुम्हे मेरी परवाह नहीं...... इसलिए तो घर नहीं आते......कोई भला ऐसे अपनी पत्नी को छोड़ कर इतने दिन दूर रहता है......"





"बेटा.....तुम फिर से फ़ोन पर बात कर रही है" नलिनी की माँ ने आ कर फ़ोन नलिनी के हाथ से लेकर वापस रख दिया. " माँ यह क्या कर रही हो.....बात कर रही थी.."





"बस नलिनी.....कब तक तुम ऐसे ही फ़ोन पर बात करती रहोगी?"





"माँ आदित्य का फ़ोन है...आपने बीच ने ही रख दिया| अब पता नही फिर से करेगा या लग जाएगा काम में "





"अब तो यह पागलपन छोड़ दे बेटा……. 6 महीने हो गए है अब उस हमले को जिस में तुम्हारा आदित्य........... शहीद हो गया था"


© savii