प्रेम या शादी (part 2)
Part २
बहरहाल हमारा समाज कभी स्त्री पुरूष के प्रेम को लेकर सहज नही हो पाया है, यहाँ शादी का मतलब सिर्फ सेक्स करने की आजादी से समझा जाता है, और प्रेम का मतलब व्यभिचार से जोड़ा जाता है, जबकि प्रेम और सेक्स दोनों अलग है। प्रेम मन को संतुष्ट करता है आपकी आत्मा को संतुष्ट करता है वहीं सेक्स प्रेम का सबसे छोटा हिस्सा है। आप बिना सेक्स के जीवन जी सकते है लेकिन बिना प्रेम के जीवन नही जी सकते है। यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि हम जिसे प्रेम करते हो उसी से शादी हो उसी तरह जरूरी नहीं कि जिससे शादी हो उनसे प्रेम भी हो, प्रेम उस स्तर का व्यक्तिगत और संवदेनशील विषय है कि एक उम्रl के बाद हम अपने आप से इसके जिक्र से बचते है, क्योकि समाज आपको अलग चश्मे से देखने लगता है। ऐसा डर पैदा कर दिया जाता है कि आप अपना प्रेम समाज तो छोड़िए उससे भी स्वीकार करने में भय महसूस करते है जिससे आपको प्रेम महसूस होता है, क्या पता वह इसे कैसे लेगा, आखिरकार वह भी तो इसी समाज से आता है ना..
समाज का मानना है...