...

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शंका त्याग दो.. तुम स्वयं शंकर हो..!!
सर्पों की काली माला पहने
भीतर एक शमशान बसाए...!!!
थोड़ा थोड़ा विष पिए
गंगा नैनन में बसाए...!!
वो नारी ही है शंकर नही
पर है खुद में एक शंकर समाए...!!!

मंगलसूत्र सर्पमाला है
उसकी मरती इच्छाओं को...
अपने ही मन के भीतर
मुखाग्नि देती है वो....!!!
अपने गंगाजल समान
पवित्र आसू पीती है वो
शंकर का स्वरूप है वो...!!!

वो काले मोतियोसे लदा हुआ
गहना हर किसी के लिए
फूलों की माला नही होता...
विष पीने वाली नीलकंठाय है वो...
वो रोज अपनी इच्छाओं को
मुखाग्नि देकर
उस भस्म को अपने भीतर लपेट कर...
अपने गंगाजल समान अश्रुओ से ..
अभिषेक करते हुए...
रोज खुद को पंचमहाभूतों में
अदृश्य रूप में विलीन करती है...
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जिवन भी समुद्रमंथन के भांती है
जहा सबको अमृत पान कराने के लिए
किसी एक को विषपान करना पड़ता है

अमृत_ अमृत सब करे
विष पिए न कोय
पिए विष प्याला जो
वही वैरागी होय....!!!
भय चिंता सम्मान _अपमान
सब चिता समान होय
मोह _माया से दूर वो
मोक्ष परम सुख होय ...!!!

© A.subhash

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