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मेरा अरेराज


पुरे देश में कोरोना अपनी टांगें पसारने को तत्पर है और उससे बचने के लिए सम्पूर्ण भारत हीं सम्पूर्ण लॉकडाउन के बंधन में सिमटा हुआ है अपने -अपने घरों में। कई सारे सुरक्षा के उपाय और कई सारे निर्देश समाचार, प्रेस विज्ञप्ति और सोशल साइट पे लगातार दिए जा रहे हैं और उनका पालन करने की अपील भी बार बार की जा रही है। आशा है सभी इन निर्देशों का पालन करके कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़ने में सहयोग कर रहे होंगे।
इस लॉकडाउन में समय काटना मुश्किल हो रहा था। ना जाने कैसे लोग खाली समय में फिल्में , सीरियल्स वगैरह देख लेते हैं ? हमसे तो तब तक चलचित्र का कोई भी फॉर्मेट देखा नहीं जाता जब तक कि उससे समय बर्बाद होने की स्पष्ट अनुभूति ना हो। और शायद यही कारण भी है कि हमने जितनी फिल्में परीक्षा के अवधि में देखी हैं एक साथ उतनी कालांतर में कभी देखी नहीं गई। शायद समय बर्बाद होने की अनुभूति जितनी ही तीव्र होती है फिल्म देखने का आनंद उतना ही बढ़ जाता है। 😅
बहुत सारी पुस्तकें भी पढ़ डाली परन्तु जो एक बंदी बने होने की अनुभूति है ना वो जाने का नाम हीं नहीं ले रही। लेकिन इन सारी विषम परिस्थितियों के मध्य कुछ सुखद परिवर्तन भी है जो पुरे पृथ्वी को फिर से सुजलां सुफलां बना रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि प्रकृति स्वयं को तरोताजा कर रही है। चाहे अंटार्कटिका के ऊपर का ओज़ोन परत हो या बड़े शहरों का प्रदूषण, सब के सब अपने आप ही सही हो रहे हैं। कुछ दिन के लिए हीं सही पर आप पक्षियों की चहचहाट सुन सकते हैं। विडम्बना हीं है कि जिन पक्षियों के सम्मिलित स्वर-कलरव को कोलाहल की उपमा दी जाती थी साहित्यों में ,आज उन्हें सुन पाना भी विचित्र कल्पना प्रतीत होती है। वैसे इस लॉकडाउन में एक और अच्छी बात हुई है कि सब अपने पुराने भूले बिसरे दोस्तों से बात कर रहें हैं। उन पलों को याद कर रहे हैं जिन पलों को ठहर के याद कर पाना अभी की भागदौड़ वाली व्यस्तता में असंभव ही था। और भला मैं कैसे ऐसे अवसर को चूक जाता। ये पल तो ऐसे हैं जैसे मैं अपने डायरी के पन्नों में संजोये पलों को फिर से जी रहा हूँ कुछ रिमिक्स के साथ। 😃 इसी कड़ी में मेरी बात अपने सबसे पुराने दोस्तों से हुई। बात के क्रम में हमारे शत्रुघ्न आचार्य जी (प्रारंभिक आचार्य जी गणों में से एक ) भी हमसे कांफ्रेंस कॉल पे जुड़ गए। और फिर बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ वो बहुत ही प्यारा था। गर्व भी है किअरेराज के उस सरस्वती शिशु/विद्या मंदिर से शुरू हुए कुछ रिश्तें आज भी ह्रदय में स्पंदित होते रहते हैं। और सच कहूं तो दिल तो मेरा पुरे अरेराज के लिए ही धड़कता है। अरेराज वो छोटा सा शहर है जहाँ मेरा बचपन गुजरा है। बहुत कुछ दिया है इस छोटे से शहर ने और मेरी बहुत सारी यादें समेटे हुए है अंचल में अपने। वैसे तो औरो के लिए अरेराज केवल वो दिव्य-स्थल मात्र है जहाँ बाबा सोमेश्वरनाथ (भगवान् शिव ) विराजते हैं और उनके कष्टों का निवारण करते हैं। परन्तु मेरे लिए अरेराज की परिकल्पना केवल एक भूगोल की सीमाओं में परिभाषित शहर मात्र नहीं रहा बल्कि बाबा सोमेश्वरनाथ की कृपा की तरह शब्दों की सीमाओं से परे है। ऐसी ही कुछ अनुभूति मेरे समकालीन मित्रों की भी होगी अरेराज के बारे में। उनका अपना अरेराज जो शायद मेरे अपने अरेराज से अलग ही हो। वैसे भी ये सब तो छोटी छोटी दैनिक घटनाओं की स्मृतियों से उपजे अनुभवों का खेल है मात्र।
इस परिवर्तन के युग में जब हर चीज तेजी से बदलती जा रही है तो मैंने सोचा क्यूँ ना अपने अरेराज को शब्दों के बैसाखी के सहारे जीवित रखा जाये। शायद मेरे अरेराज में किसी को अपने अरेराज की झलक मिल जाये या अपने उस जगह की यादों को फिर से याद करने की प्रेरणा मिल जाये जहाँ बचपन गुजरा हो।
अरेराज से मेरे पहले परिचय का विवरण मेरी माता जी की बातों से मिला मुझे जो कि मेरे जन्म के समय की एक छोटी सी घटना है जब मेरा छठियार होना था। हमारे यहाँ बच्चे के जन्म के छठे दिन बाद उसके जन्म की खुशी में सभी शुभचिंतको को आशीर्वाद देने लिए आमंत्रित करते हैं और सारे अतिथि आशीर्वाद और उपहार देते हैं शिशु को। और वो छठियार ऐसा पहला अवसर हुआ होगा जब मेरे शिशु मन पे अरेराज के विशाल ह्रदय की अनुभूति की तरंगें अंकित हुई होंगीं...