...

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मोहब्बत की गवाही ..,✍️
तुझे सोचूं तो पहलू से सरक जाता है
दिल
मेरा,
मैं दिल पे हाथ रखकर धड़कनों को थाम लेता हूँ।
हाल-ए-दिल
तो खुल चुका है हर शख्स पर,
हाँ मगर इस शहर में इक बेखबर भी देखा है।
मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा,
जिधर वो शख़्स रहता है मुझे
ऐ दिल
उधर ले जा।
इक छोटी सी हसरत है इस
दिल-ए-नादान
की,
कोई चाह ले इस कदर कि खुद पर गुमान हो जाए।

उसके हाथ में थे, मेरे खत के हजार टुकड़े,
मेरे एक सवाल के वो कितने जवाब लाई थी।

मेरी चाहत को मेरी हालत की तराजू में ना तोल,
मैंने वो ज़ख्म भी खाऐं हैं जो मेरी किस्मत में नहीं थे ।

वो तारीफें करते रहते है ,हम शायरी करते रहते है.वो कुछ कहते नही ओर हम  इंतज़ार करते रहते है.

जल जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुशमन...
क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली
और न ही दोस्त बदले।


© अल्फाज़.शायरी...✍