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गुरु और गुरु पूर्णिमा
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***गुरु और गुरु पूर्णिमा ***

सदियों से आषाढ़ मास की पूर्णिमा का दिन हमारे लिए एक विशेष दिवस रहता आया है। इस दिन हम अपने गुरुओं के पास जाते हैं, उनकी पूजा करते हैं और यथा शक्ति भेंट देकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
पौराणिक आधार से गुरु पूर्णिमा भगवान शिव द्वारा स्थापित ज्ञान पर्व है जो आज भी वैदिक काल से अनवरत व्यास परंपरा को जीवंत रखे हुए है। यह ज्ञान की आराधना, साधना और गुरु के प्रति निष्ठा एवं समर्पण का दिन है।
'गुरु' शब्द का अर्थ :-
'गुरु' शब्द गु+रु के मेल से बना है। जहाँ 'गु' का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान) ।इस आधार पर 'गुरु' का अर्थ हुआ अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, अज्ञान को नष्ट करने वाला, अज्ञात से ज्ञात की ओर ले जाने वाला। अतः गुरु हमारे लिए वह विशिष्ट व्यक्ति होता है जो ब्रह्म रुप प्रकाश होता है।
गुरु की महत्ता को बताते हुए कबीर दास जी ने तो उन्हें गोविंद (भगवान) से भी ऊंचा दर्जा दे दिया। कबीर दास जी ने लिखा है :
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ।।
देखा जाये तो हमारे जीवन में प्रज्ञा और श्रद्धा की दो धाराएं एक साथ निरंतर चलती हैं। इसलिए हमें चाहिए कि जो प्रज्ञावान हैं, हम उनका भी सम्मान करें और जो श्रद्धावान हैं उनका भी सम्मान करें क्योंकि वह भी हमारी धरोहर हैं। एक तरह से गुरु पूर्णिमा इस श्रद्धावान और प्रज्ञावान के संबंधों के पुनर्जागरण का दिवस होता है। मेरी नजर में गुरु वे महामानव हैं जिनकी कृपा से मानव यथार्थ जीवन संपन्नता,आत्मिक पवित्रता और प्रखरता की प्राप्ति करता है। शायद इसीलिए ऋषि 'व्यास' जी ने जो कि एक महान ज्ञानी थे ने लिखा है “व्यासस्य रूपाय विष्णवे”। उनकी वंशावली में, व्यास पूर्णिमा ‘गुरु पूर्णिमा कहलाती’ है।

*जीवन में गुरु का महत्व:-*

गुरु का महत्व बताते हुए संत तुलसीदास ने लिखा है-

"गुरु बिन भवनिधि तरही न कोई;
जो बिरंचि शंकर सम होई"।

जिसका आशय है कि चाहे कोई...