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हमसफ़र
अनुराग ने जब से वेणी को देखा है। तब से दिन रात उसी के बारे में सोचता रहता था ‌।शायद वो उसे चाहने लगा था।उस दिन मंदिर में वेणी अपने माता-पिता की शादी की 50वीं साल गिराह के लिए पूजा करने गई थी। संयोग से वेणी और अनुराग दोनों ने एक साथ ही मंदिर की घंटी बजाई ।अनुराग तो वेणी के आचरण और व्यवहार को देखकर उसका कायल हो गया। अपने माता-पिता के प्रति उसके लगाव को देखकर कहने लगा आजकल कहां मिलती है इतनी गुणी और संस्कारी लड़कियां काश...!ये मेरी हमसफ़र होती...??
फिर क्या था पंडित जी ने उसकी बातें सुन ली और वेणी के माता-पिता से इस बारे में बात करके दोनों की ब्याह रचा दी...!! अनुराग ने वेणी से कहा तुम मेरी वो हमसफ़र हो जिसका ख्वाब मैंने बरसों से सजाया था।
तुम्हारा शुक्रिया यह कहते हुए दोनों ने सात फेरे पूर्ण किए...!!