A AaRAv step _ Azkan ( Part 2 )
" यहा अजवा ने गुप्तचर को महल के मार्ग से प्रस्तुत होते ही वन में बाध्य किया और दूत को दंड स्वरूप उसे मृत्यु दण्ड दे दिया ।"
_ संसार के निर्माण की आधार शीला तो केवल प्रेम ही थी , किंतु हीनता की भावना ने प्रेम अतिरिक्त हृदय मन में घोल दिया लोभ , पद , ईर्ष्या, कपट , वैभव प्राप्ति और आसुरी प्रवृत्ति स्वरूप वास्तविकता से कई जीव अन्य दिशा में परिवर्तित हो गए ।"
._. क्या श्रेष्ठ आरव के लिए यह समस्या और श्वेत प्रकाश की रक्षा का विषय तनिक भी कठिन हैं , किंतु सभी अपनी ओर माया का और सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहे थे ! इस विषय को पूर्णतः भूल कर की यह देव स्वयं ही महा माया के स्वामी है जिनकी इच्छा मात्र से कठोर और संघिन्न चक्रव्यूह क्षण भंगुर में टूट जाए ।
{ आरव के देवीय अवतार के पश्चात संसार में एक ओर शांति स्थापना अवश्य हुई किंतु दूसरी ओर द्वितीय लोक से वामिनों प्रवेश हुआ मुनिर शाह का । सभी आशीष हेतु नर मस्तक थे तो मुनीर पूर्णतः सज्ज़ थे प्रत्येक के मस्तक और संवेदना को रोधने के लिए । }
" श्रेष्ठ कनव अपने मामा श्री के वचन अनुसार अपने स्वामित्व पद पर विराजमान होते है किंतु यह इतना सरल नहीं था । "
श्रेष्ठ कनव मानसिक स्वास्थ्य संतुलित करे इससे पहले ही असामाजिक तत्व संघ स्वरूप खड़े हो चुके थे उनके शक्ति पद के मार्ग पर।
_ ' यदी आर्फेज कुल के रहस्य तनिक भी किसी अन्य के समक्ष उजागर हुए तो यह सुरक्षित ना होगे । आर्फेज़ के मुख्य पद पर विराजमान होकर श्रेष्ठ कनव भूत काल की उन स्मृतियों में खो जाते है जब उनकी माता श्री और पिता श्री जीवित थे ।
" उनका स्नेह और उनकी आस्तित्व की छाया जो कनव के व्यक्तित्व को उभरने में सहायक हो रही थी , किंतु वर्तमान समय में उनकी गलतियों को सुधारने वाला और उन के ऊपर आशीष का हाथ रखने वाला कोई नही था। "
उनकी आंखों में तेजस्व्य ओर हाथो में सत्ता अवश्य थी किंतु उनके हृदय पूर्ण प्रेम भावना में लय था ।
[ प्रेम यह सम्पूर्ण अवश्य है । विकारों और स्वयं इच्छा का प्रेम में कोई स्थान नहीं । शक्ती सामर्थ्य के पश्चात भी यदी हृदय मन में दासता का गुण शेष रहे तो यही प्रेम अर्थ है ! ]
सत्ता समारोह से पूर्व ही कनव एकांत में बैठ कर रात्रि पूर्व वे लीन हो गए अपने अनादि परम ईश्वर की आराधना में जिसके आशीष से प्रत्येक जीव में जीवन है तो कण कण का अस्तित्व ;
( वे पूर्ण वैराग भाव में थे और उनके समीप एक परमेश्वर के अतिरिक्त कोई भाव नहीं था ।
श्रेष्ठ कनव ," हे श्रेष्ठ रचैयता, मेरे अस्तित्व आपकी ही इच्छा से संभव हुआ है । मैं सा_शक्त नही हूं कि अपनी इच्छा मर्यादा के परय कार्यरत हो सकूं कृपया मेरा उचित मार्गदर्शन करे और इस रास्ते पर चलाए जिसका अंत्य लक्ष्य आप हो । )
( _"अति सरल मार्ग नही है परम ईश्वर का किंतु उस मार्ग के रौद्र कांटे जब कोमल पगो को चोटिल करते है न फिर मार्ग का आनंद ही भिन्न हो जाता है । उनके मार्ग की प्रत्येक बाधा और अवरोध भ्रम नही अपितु अंतर हृदय में उल्लास प्रकट प्रकट करते है ।" )
{ " तीनों ही विपरीत दिशा के सारथी थी किंतु लक्ष्य एक ईश्वर की प्राप्ति ! "
_ प्रथम आरव जो स्वयं ही श्रेष्ठ वामीनो के आरव पद पर विराजमान थे , जिनकी इच्छा शक्ति से निर्माण और काल चक्र कार्यरत था । जिनके पग रखते ही सम्पूर्ण श्रृष्टि पुनः संवेदन शील हुई । जिनका वास्तविक अस्तित्व का भान किसी के लिए संभव ही नहीं था ।
_ द्वितीय आर्फेज समूह के नए नियति निर्धारक पद स्वरूप श्वेत प्रकाश के संरक्षक स्वरूप और उसके प्रकाश पुंज द्वारा संतुलन का कार्य संभालने वाले श्रेष्ठ कनव।
_ अंतिम है ," अजकान " जिनका अस्तित्व ही पूर्णतः किसी जीव के समक्ष अवतरित नही हुआ । जिनका चयन किया है आरव ने अपने पगो को आगे करने के लिए श्वेत प्रकाश की ओर । और जिनके सार्थक होगे कनव । }
[ नियति पूर्णतः सज्ज् हो चुकी थी प्रत्येक के कर्म स्वरूप फल के लिए । ]
" अज़कान यहां सारी विपदा से , सारे रहस्यों से , अपनी ही भविष्य के कर्तव्य से और जन्म के कारण से पूर्णतः अज्ञात थे ।
सामन्य सा , एक लिहास की भांति वे जीवन का व्यतीत कर रहे थे । उन्होंने तो अब तक आरव को देखा भी नहीं था , यह अलग तथ्य है कि हृदय मन में आरव की छवि पूर्णतः स्पष्ट और आदरणीय प्रकट थी । उनके मुख्य ध्येय थे की वे जीवन के एक समय पर मुख्य महल जायेगे और आरव श्रेष्ठ को अपनी माथे को आंखों से देखेगे , किंतु यह विचार स्वप्न सा ही था ! अजकान के लिए । "
{ मुख्य महल के अंतः भाग में वामिनो शासक आरव स्वयं शक्तियों को समक्ष करके गहन वार्तालाप में लीन थे ! }
आरव विचार_ विमर्श कर रहे थे , श्रेष्ठ कनव और अज़कान के भविष्य हेतु । काफी गहरा विमर्श था , जिसका परिणाम केवल आगे आया " संघर्ष " ।
आरव _ ' यदि उनकी नियति हार कर रुकने की है तो इससे पूर्व की उन्हें मुख्य कार्य और नियति पथ पर अग्रसर हो ! उन्हें रुक जाना चाहिए । वामिनो वर्तमान के तनिक घाव को सहन कर लेंगे किंतु भविष्य की विशाल और आशा स्वरूप द्वंद को हारता हुआ नही देख पाएगा ।
आरव श्रेष्ठ ने अपनी शक्तियों का आवाहन किया और संकेत करते है भविष्य नियति की ओर!
© A R V
_ संसार के निर्माण की आधार शीला तो केवल प्रेम ही थी , किंतु हीनता की भावना ने प्रेम अतिरिक्त हृदय मन में घोल दिया लोभ , पद , ईर्ष्या, कपट , वैभव प्राप्ति और आसुरी प्रवृत्ति स्वरूप वास्तविकता से कई जीव अन्य दिशा में परिवर्तित हो गए ।"
._. क्या श्रेष्ठ आरव के लिए यह समस्या और श्वेत प्रकाश की रक्षा का विषय तनिक भी कठिन हैं , किंतु सभी अपनी ओर माया का और सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहे थे ! इस विषय को पूर्णतः भूल कर की यह देव स्वयं ही महा माया के स्वामी है जिनकी इच्छा मात्र से कठोर और संघिन्न चक्रव्यूह क्षण भंगुर में टूट जाए ।
{ आरव के देवीय अवतार के पश्चात संसार में एक ओर शांति स्थापना अवश्य हुई किंतु दूसरी ओर द्वितीय लोक से वामिनों प्रवेश हुआ मुनिर शाह का । सभी आशीष हेतु नर मस्तक थे तो मुनीर पूर्णतः सज्ज़ थे प्रत्येक के मस्तक और संवेदना को रोधने के लिए । }
" श्रेष्ठ कनव अपने मामा श्री के वचन अनुसार अपने स्वामित्व पद पर विराजमान होते है किंतु यह इतना सरल नहीं था । "
श्रेष्ठ कनव मानसिक स्वास्थ्य संतुलित करे इससे पहले ही असामाजिक तत्व संघ स्वरूप खड़े हो चुके थे उनके शक्ति पद के मार्ग पर।
_ ' यदी आर्फेज कुल के रहस्य तनिक भी किसी अन्य के समक्ष उजागर हुए तो यह सुरक्षित ना होगे । आर्फेज़ के मुख्य पद पर विराजमान होकर श्रेष्ठ कनव भूत काल की उन स्मृतियों में खो जाते है जब उनकी माता श्री और पिता श्री जीवित थे ।
" उनका स्नेह और उनकी आस्तित्व की छाया जो कनव के व्यक्तित्व को उभरने में सहायक हो रही थी , किंतु वर्तमान समय में उनकी गलतियों को सुधारने वाला और उन के ऊपर आशीष का हाथ रखने वाला कोई नही था। "
उनकी आंखों में तेजस्व्य ओर हाथो में सत्ता अवश्य थी किंतु उनके हृदय पूर्ण प्रेम भावना में लय था ।
[ प्रेम यह सम्पूर्ण अवश्य है । विकारों और स्वयं इच्छा का प्रेम में कोई स्थान नहीं । शक्ती सामर्थ्य के पश्चात भी यदी हृदय मन में दासता का गुण शेष रहे तो यही प्रेम अर्थ है ! ]
सत्ता समारोह से पूर्व ही कनव एकांत में बैठ कर रात्रि पूर्व वे लीन हो गए अपने अनादि परम ईश्वर की आराधना में जिसके आशीष से प्रत्येक जीव में जीवन है तो कण कण का अस्तित्व ;
( वे पूर्ण वैराग भाव में थे और उनके समीप एक परमेश्वर के अतिरिक्त कोई भाव नहीं था ।
श्रेष्ठ कनव ," हे श्रेष्ठ रचैयता, मेरे अस्तित्व आपकी ही इच्छा से संभव हुआ है । मैं सा_शक्त नही हूं कि अपनी इच्छा मर्यादा के परय कार्यरत हो सकूं कृपया मेरा उचित मार्गदर्शन करे और इस रास्ते पर चलाए जिसका अंत्य लक्ष्य आप हो । )
( _"अति सरल मार्ग नही है परम ईश्वर का किंतु उस मार्ग के रौद्र कांटे जब कोमल पगो को चोटिल करते है न फिर मार्ग का आनंद ही भिन्न हो जाता है । उनके मार्ग की प्रत्येक बाधा और अवरोध भ्रम नही अपितु अंतर हृदय में उल्लास प्रकट प्रकट करते है ।" )
{ " तीनों ही विपरीत दिशा के सारथी थी किंतु लक्ष्य एक ईश्वर की प्राप्ति ! "
_ प्रथम आरव जो स्वयं ही श्रेष्ठ वामीनो के आरव पद पर विराजमान थे , जिनकी इच्छा शक्ति से निर्माण और काल चक्र कार्यरत था । जिनके पग रखते ही सम्पूर्ण श्रृष्टि पुनः संवेदन शील हुई । जिनका वास्तविक अस्तित्व का भान किसी के लिए संभव ही नहीं था ।
_ द्वितीय आर्फेज समूह के नए नियति निर्धारक पद स्वरूप श्वेत प्रकाश के संरक्षक स्वरूप और उसके प्रकाश पुंज द्वारा संतुलन का कार्य संभालने वाले श्रेष्ठ कनव।
_ अंतिम है ," अजकान " जिनका अस्तित्व ही पूर्णतः किसी जीव के समक्ष अवतरित नही हुआ । जिनका चयन किया है आरव ने अपने पगो को आगे करने के लिए श्वेत प्रकाश की ओर । और जिनके सार्थक होगे कनव । }
[ नियति पूर्णतः सज्ज् हो चुकी थी प्रत्येक के कर्म स्वरूप फल के लिए । ]
" अज़कान यहां सारी विपदा से , सारे रहस्यों से , अपनी ही भविष्य के कर्तव्य से और जन्म के कारण से पूर्णतः अज्ञात थे ।
सामन्य सा , एक लिहास की भांति वे जीवन का व्यतीत कर रहे थे । उन्होंने तो अब तक आरव को देखा भी नहीं था , यह अलग तथ्य है कि हृदय मन में आरव की छवि पूर्णतः स्पष्ट और आदरणीय प्रकट थी । उनके मुख्य ध्येय थे की वे जीवन के एक समय पर मुख्य महल जायेगे और आरव श्रेष्ठ को अपनी माथे को आंखों से देखेगे , किंतु यह विचार स्वप्न सा ही था ! अजकान के लिए । "
{ मुख्य महल के अंतः भाग में वामिनो शासक आरव स्वयं शक्तियों को समक्ष करके गहन वार्तालाप में लीन थे ! }
आरव विचार_ विमर्श कर रहे थे , श्रेष्ठ कनव और अज़कान के भविष्य हेतु । काफी गहरा विमर्श था , जिसका परिणाम केवल आगे आया " संघर्ष " ।
आरव _ ' यदि उनकी नियति हार कर रुकने की है तो इससे पूर्व की उन्हें मुख्य कार्य और नियति पथ पर अग्रसर हो ! उन्हें रुक जाना चाहिए । वामिनो वर्तमान के तनिक घाव को सहन कर लेंगे किंतु भविष्य की विशाल और आशा स्वरूप द्वंद को हारता हुआ नही देख पाएगा ।
आरव श्रेष्ठ ने अपनी शक्तियों का आवाहन किया और संकेत करते है भविष्य नियति की ओर!
© A R V