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लगाया दिल बहुत पर
तारा और अभिषेक कॉलेज फ्रेंड्स थे, सालों बाद एक कैफे में यूं ही टकराये तो हाल -चाल के बाद कुछ पर्सनल बातें शुरु हुईं....

अभिषेक: तुम्हारे पति तुमसे प्यार तो करते हैं ना?

तारा: हम्म्। वो लड़के होते हैं ना जो अपनी गर्लफ्रेंड पर जान छिड़कते हैं फ़िर भी परिवार की खातिर उन्हीं का दिल तोड़ देते हैं। और सोचते हैं कि उनकी मां की पसंद की ही सही लेकिन अब जब कोई लड़की उनके भरोसे पर उनकी जिंदगी में आयेगी। उसका दिल हरगिज़ नहीं दुखायेंगे। उनकी प्रेमिका को जो दुःख, जो अपमान, जो अकेलापन सहना पड़ा। उनकी पत्नी को वो कुछ भी नहीं सहने देंगे, हमेशा साथ देंगे और अगर कोई उनके वश के बाहर की कोई अनहोनी हो भी गई तो कम से कम अकेला नहीं छोड़ेंगे। बिल्कुल वैसे ही प्यार करते हैं मुझे। और वो लड़के भी जो इंजीनियरिंग के लिए सालों आईआईटी की तैयारी करने के बाद मन मार कर किसी प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लेते हैं और अपने ख़ुद के स्टार्ट अप और यूरोप, यूएस में प्लेसमेंट के सपनों को बूढ़े होते पिता की झुर्रियां देख गिव अप कर देते हैं और अपनी पूरी ज़िंदगी किसी क्यूबिकल के इर्द गिर्द इस एक इत्मीनान पर गुज़ार देते हैं कि कम से कम उनके बीवी -बच्चे तो अपने शौक पूरे कर पायेंगे। सच, वो कभी भी मेरी ख्वाहिशों से समझौता नहीं करते।

अभिषेक : wowww
और तुम?

तारा: मैं क्या?

अभिषेक: तुम तो प्यार करती हो ना?

तारा: थोड़ी देर आसमान की ओर देख कर कुछ सोचते हुए...
वापस अभिषेक की ओर देख कर आहिस्ता से मुस्कुराती है फ़िर तुरंत ही शून्य में देखते हुए कहती है....

"मैं पूरी कोशिश करती हूं....

अभिषेक: "प्यार करने की?" कह कर ज़ोर से हंसता है...

तारा: नहीं, उन्हें यकीन दिलाने की... कि मैं उनसे प्यार करती हूं।
उन्हें ये महसूस करवाने की कि वो मुझे खुश करने की जितनी भी कोशिशें करते हैं वो सारी कोशिशें कामयाब होती हैं। उन्हें यकीन दिलाने की कि अपने वॉलेट में उन्होंने जो मेरी पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो रखी है उससे मुझे खुशी होती है और ये यकीं दिलाने की भी कि मुझे खुशी से खिलते हुए देख कर वो अपनी मुहब्बत के जिन आंसुओं का कफारा करते हैं मुझे कभी पता नहीं चलता और ये भी कि उनकी आंखे जिसमें उस पुरानी मुहब्बत की तस्वीर उभरती है उन्हें देख कर मुझे कुछ पुराना याद नहीं आता और उनकी बातें, म्यूजिक- खाने का टेस्ट और बहुतेरी आदतें किसी और से नहीं मिलती।

तारा ये कहते -कहते चुप हो गई थी। उसकी बातें सुनने के बाद अब अभिषेक के पास भी कहने को कुछ नहीं था, लेकिन जब हमारे पास कहने को कुछ नहीं होता या शायद तब भी जब बहुत कुछ कहने को होता है लेकिन समझ नहीं आता कि कैसे अपना दिल समेट कर सारी बातें सही सही बयां कर दें जिससे दिल के भारीपने से छुटकारा मिल जाये। तब बस संगीत का ही एक सहारा होता है...... तारा के दर्द को कैफे में बज रहा रेडियो अल्फाज़ दे रहा था....

"लगाया दिल बहुत पर.............

दिल लगा नहीं"

Image source: from 96 movie
© Neha Mishra "प्रियम"