कुनबा : 1.5 मनहूस भोर (कटाक्ष दर्पण!)
पंडतायन :-
अरी ओ लाड़ो, क्यूँ तू खून की पीवा हो रखी है। नशा पत्ता कम था जो अब निरोध लेकर भी घूमने लगी, हैं? इसी दिन के लिए पाल पोस के बड़ा किया था कि तू एक दिन हमारा ही नाम मिट्टी में मिला दे।
गुस्सैल लौंडिया :-
मका ऐसा है माँ, निरोध रखना कोई अपराध तो है नहीं जो तूने सुबह सुबह घर सर पे चढ़ा लिया। और फिर मर्द भी तो आज कल के रखना...
अरी ओ लाड़ो, क्यूँ तू खून की पीवा हो रखी है। नशा पत्ता कम था जो अब निरोध लेकर भी घूमने लगी, हैं? इसी दिन के लिए पाल पोस के बड़ा किया था कि तू एक दिन हमारा ही नाम मिट्टी में मिला दे।
गुस्सैल लौंडिया :-
मका ऐसा है माँ, निरोध रखना कोई अपराध तो है नहीं जो तूने सुबह सुबह घर सर पे चढ़ा लिया। और फिर मर्द भी तो आज कल के रखना...