GANGA ( MOHINI )
थोड़ी सी बाते मोहिनी से ....
आज भी उन गलियों को बदनाम कहा जाता है जहां रहती है गंगा !
और वहां आना जाना है बड़े बड़े रईसों का , सूबे दारो का सेठो और उनकी बिगड़ी हुई औलादों का । खुले आसमान के नीचे , चांद सूरज की रोशनी में देखना और सुनना आसान है और रहना भी लेकिन उन बंद कमरे के अंदर जहा दर्द और बेबसी को खरीदा जाता हो ।
" अपने घर की में भी लाडली थी " इतना कहकर सहम गई गंगा ।
' आओ साहेब अपनी चाहत पूरी करो - '
गंगा का पूरा बदन गर्म था और वो बे आबरू बिस्तर पर.... उसकी आंखे थकी हुई थी और वो सहमी सी ,.।
बेदाम ही मुझे खरीद के आज जीनत बना दी गई इस बेनाम मोहल्ले की । मर्द और दूसरे अनजान लोगों से बात करने से बचती थी मैं हमेशा और आज दरवाजे के बाहर कौन मेरी कीमत लगाकर अंदर आ जाए नही पता ।
सब एक जैसे ही है , सारे वहशी होते है । अंदर कमरे के आने के बाद भूल जाते है की मैं और वो दोनो ही इंसान है । कमरे में आने वाला वहशी बेहिस मर्द होता है और मैं बन जाती हु सहमी बेजान लाश।
_ मैं जब याद करती हु न , ' अपने उन लम्हों को जब मैं ,
" मैं थी गंगा " इस दुनिया ने मुझ एक और नाम दिया जो थे मेरे रूप रंग सा " मोहिनी "।
© A R V
आज भी उन गलियों को बदनाम कहा जाता है जहां रहती है गंगा !
और वहां आना जाना है बड़े बड़े रईसों का , सूबे दारो का सेठो और उनकी बिगड़ी हुई औलादों का । खुले आसमान के नीचे , चांद सूरज की रोशनी में देखना और सुनना आसान है और रहना भी लेकिन उन बंद कमरे के अंदर जहा दर्द और बेबसी को खरीदा जाता हो ।
" अपने घर की में भी लाडली थी " इतना कहकर सहम गई गंगा ।
' आओ साहेब अपनी चाहत पूरी करो - '
गंगा का पूरा बदन गर्म था और वो बे आबरू बिस्तर पर.... उसकी आंखे थकी हुई थी और वो सहमी सी ,.।
बेदाम ही मुझे खरीद के आज जीनत बना दी गई इस बेनाम मोहल्ले की । मर्द और दूसरे अनजान लोगों से बात करने से बचती थी मैं हमेशा और आज दरवाजे के बाहर कौन मेरी कीमत लगाकर अंदर आ जाए नही पता ।
सब एक जैसे ही है , सारे वहशी होते है । अंदर कमरे के आने के बाद भूल जाते है की मैं और वो दोनो ही इंसान है । कमरे में आने वाला वहशी बेहिस मर्द होता है और मैं बन जाती हु सहमी बेजान लाश।
_ मैं जब याद करती हु न , ' अपने उन लम्हों को जब मैं ,
" मैं थी गंगा " इस दुनिया ने मुझ एक और नाम दिया जो थे मेरे रूप रंग सा " मोहिनी "।
© A R V