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तृप्ति देसाई - रंजन कुमार देसाई
" बचाओ.. बचाओ.. "

फ्लेट के भीतर से किसी लड़की की चीख सुनकर मेरे दिलो दीमागमे हलचल सी मच गई.. आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी.

डोर बेल तक पहुंच पाऊ उस के पहले मानो बिजली का भारी झटका लग गया. हिरन रफ्तार से कई विचार दिमाग़ गुजर गये.

कोई लड़की के सिर पर खतरा मंडरा रहा था.भय सूचित पुकार सुनकर मुझे हकीकत का इल्म हो गया.

किसी भी तरह भीतर पहुंचना आवश्यकत था. मैंने गुस्से में जोर से दरवाजे अंदर की तरफ ढकेला. और वह खुल गया. इस बात का मुझे अचरज हुआ.

डिम लाइट की रौशनी में भीतर का माहौल देखकर मैं हड़बडा सा गया.

एक नराधम एक निवस्त्री लड़की की काया पर जानवर की तरह हावी हो गया था.. लेकिन वह अपना बचाव करने की कड़ी कोशिश कर रही थी. उस ने भेड़िये को आगे बढ़ने रोक रहा था.

भयभीत माहौल में दरवाजा खुल्ला था. इस बात से लड़की अनजान थी. देह भूखे भेड़िये का आक्रमक रवैया देखकर मेरा खून घोल रहा था.. उस का चेहरा देखकर मैं चौंक सा गया.

" अजय देसाई!! "

मैं कुछ कर पाऊ उस के पहले उस ने लड़की को जमीन पर पछाड़ दिया और उस के शरीर पर जुर्म करने लगा. जिस की बीमारी की खबर पाते मैं मिलने गया था वह मेरा बोस लड़की के साथ अत्याचार कर रहा था.

मैंने पूरा जोर लगाकर उस को लड़की से अलग किया और बोसके पेट के नीचे लात मारकर उसे जमीन पर पटक दिया.

बोस ' वोय मा ' कर के जमीन पर गिर गया.

युवती के देह पर एक भी वस्त्र बचा नहीं था.

मैंने उसे देखे बिना पलंग पर पड़ी चद्दर उठाकर उस को ढँक लिया.

उसी वक़्त चार आँखों का मिलन हुआ.

... तरंग...

... तृप्ति...

अजय देसाई ने 45 की आयु में कोई युवान लड़की से शादी की थी!! ऐसा मैंने सुना था लेकिन वह तृप्ति ही थी, वह मुझे मालूम ना था.

सत्य जानकर मेरे पैरो से जमीन निकल गई.

एक पति ही अपनी बीवी पर बलात्कार कर रहा था. इस ख्याल से मेरा समग्र बदन क्रोध की आग में जलने लगा.

आखरी एक साल से मैं ' अजय टेकस्टाइल
कोरपोरेशन में काम कर रहा हूं. एक्सपोर्ट क्षेत्र में कंपनी के मालिक मनहर देसाई का महत्वपूर्ण योगदान था.. वह दोनों भाई थे. धंधे में दोनों का बराबर का हिस्सा था. लेकिन अजय देसाई बड़े भाई का सब कुछ हड़पकर कंपनी का अकेला मालिक बन गया था.

पूरी जिंदगी उस ने कपट, कूटनीति और छोटे आदमी का शोषण करने में व्यतीत की थी.....