तृप्ति देसाई - रंजन कुमार देसाई
" बचाओ.. बचाओ.. "
फ्लेट के भीतर से किसी लड़की की चीख सुनकर मेरे दिलो दीमागमे हलचल सी मच गई.. आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी.
डोर बेल तक पहुंच पाऊ उस के पहले मानो बिजली का भारी झटका लग गया. हिरन रफ्तार से कई विचार दिमाग़ गुजर गये.
कोई लड़की के सिर पर खतरा मंडरा रहा था.भय सूचित पुकार सुनकर मुझे हकीकत का इल्म हो गया.
किसी भी तरह भीतर पहुंचना आवश्यकत था. मैंने गुस्से में जोर से दरवाजे अंदर की तरफ ढकेला. और वह खुल गया. इस बात का मुझे अचरज हुआ.
डिम लाइट की रौशनी में भीतर का माहौल देखकर मैं हड़बडा सा गया.
एक नराधम एक निवस्त्री लड़की की काया पर जानवर की तरह हावी हो गया था.. लेकिन वह अपना बचाव करने की कड़ी कोशिश कर रही थी. उस ने भेड़िये को आगे बढ़ने रोक रहा था.
भयभीत माहौल में दरवाजा खुल्ला था. इस बात से लड़की अनजान थी. देह भूखे भेड़िये का आक्रमक रवैया देखकर मेरा खून घोल रहा था.. उस का चेहरा देखकर मैं चौंक सा गया.
" अजय देसाई!! "
मैं कुछ कर पाऊ उस के पहले उस ने लड़की को जमीन पर पछाड़ दिया और उस के शरीर पर जुर्म करने लगा. जिस की बीमारी की खबर पाते मैं मिलने गया था वह मेरा बोस लड़की के साथ अत्याचार कर रहा था.
मैंने पूरा जोर लगाकर उस को लड़की से अलग किया और बोसके पेट के नीचे लात मारकर उसे जमीन पर पटक दिया.
बोस ' वोय मा ' कर के जमीन पर गिर गया.
युवती के देह पर एक भी वस्त्र बचा नहीं था.
मैंने उसे देखे बिना पलंग पर पड़ी चद्दर उठाकर उस को ढँक लिया.
उसी वक़्त चार आँखों का मिलन हुआ.
... तरंग...
... तृप्ति...
अजय देसाई ने 45 की आयु में कोई युवान लड़की से शादी की थी!! ऐसा मैंने सुना था लेकिन वह तृप्ति ही थी, वह मुझे मालूम ना था.
सत्य जानकर मेरे पैरो से जमीन निकल गई.
एक पति ही अपनी बीवी पर बलात्कार कर रहा था. इस ख्याल से मेरा समग्र बदन क्रोध की आग में जलने लगा.
आखरी एक साल से मैं ' अजय टेकस्टाइल
कोरपोरेशन में काम कर रहा हूं. एक्सपोर्ट क्षेत्र में कंपनी के मालिक मनहर देसाई का महत्वपूर्ण योगदान था.. वह दोनों भाई थे. धंधे में दोनों का बराबर का हिस्सा था. लेकिन अजय देसाई बड़े भाई का सब कुछ हड़पकर कंपनी का अकेला मालिक बन गया था.
पूरी जिंदगी उस ने कपट, कूटनीति और छोटे आदमी का शोषण करने में व्यतीत की थी.. शायद उस के बुरे कर्मो के नतीजे में उस की ऑंखें कमजोर हो गई थी. एक आँख चली गई थी और दूसरी भी ख़राब हो गई थी. इतना ही नहीं उस की एक किडनी बेकार हो गई थी. दवाईयो की वजह से उस का शरीर भी फूल गया था.
शिपमेंट्स और अन्य कामों की भगादोड़ी, जिम्मेदारी की वजह से मैं उन्हें मिलने जा नहीं पाया था.
शाम को उसे मिलने के लिये घर गया था..
ख्याति को भी मैंने बताया था!!
मैं देर से आऊंगा.
मैं कभी नाइंसाफी बर्दास्त नहीं कर पाता था.. इसी वजह से मैं अपने बोस को मन ही मन कोसता था.. उस से नफ़रत करता था.. मेरा दिल तो जाना नहीं चाहता था लेकिन एक नौकर के नाते उस को मिलने चला आया था.
और वही बोस की नई बीवी के रूप में मैं तृप्ति को मिला था.. उस ने अपने सगे चाचा के साथ शादी की थी. यह बात मैं हजम नहीं कर पाया था.
एक जमाने में मैं उसका आशिक था, दीवाना था!! मैंने सब कुछ भूलकर उसे आश्वस्त करने का प्रयास किया.
दुखी पीड़ित तृप्ति मुझ से लिपटकर रोने लगी. कुछ देर में उस का दिल फूल जैसा हल्का बन गया.
वह मेरे लिये कॉफी बनाने किचन में दाखिल हुई और मैं तिपोय पर रखे मेगेझीन को देखने लगा. लेकिन किसी चीज में मन नहीं लग रहा था..
मैं अतीत की यादो में खो गया.
कॉलेज के रास्ते एक बार तृप्ति देसाई से मेरी टक्कर हो गई थी. मैंने सोरी कहां था. लेकिन वह तो बिंदास्त खुल्ला हास्य कर के निकल गई थी. उस की ऐसी हरकतने मुझे चोंका दिया था.
उस के पहले कोलेज में योजित सेमिनार में उसे सुनने का मौका मिला था.
" बलात्कार क्यों होता हैं? "
इस विषय पर तृप्तिने अपने विचार पेश किये थे. उस वक़्त पूरा होल तालियो के आवाज से गूंज उठा था. श्रेष्ठ वक्तव्य के लिये उसे पारितोषिक मिला था.
स्त्री ने खुद अपनी ओछी हरकतों से अपने आप को लज्जित किया हैं. मुफ्त और बिना मेहनत खाने की आदत पड़ गई हैं. उस की यह कमजोरी उस की बदनामी की वजह बन गई हैं.पुरुष उन्ही कमजोरियो का फायदा उठाकर छोटे मोटे प्रलोभन देकर स्त्री को अपनी तरफ आकर्षित करता हैं.. शादी का जूठा वादा भी करता हैं. बादमे अपनी वासना का शिकार बनाकर सिगरेट की तरह मसल कर फेंक देता हैं.
धनवान पुरुष लिफ्ट देने के बहाने अपनी गाड़ी में घूमाता हैं. खिलाता हैं पिलाता हैं.. साधारण पहचान वाले लोगो की गाड़ीमें फटाक से लिफ्ट लेकर चलना टालती हैं और अपनी बर्बादी को आमंत्रित करती हैं.
उस के तेजस्वी परिसंवाद को सुनकर लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे... दूसरी ओर उसके ही हरीफ कड़े शब्दों में कर की तौहीन करते थे.
तृप्ति देसाई के प्रथम वक्तव्य से मैं भी बड़ा प्रभावित हो गया था. लेकिन उसकी बानी और व्यवहार में जमीन आसमान का फर्क था.
किसी को भाव न देने वाली तृप्ति देसाई भीड़ या गिर्दी में अलग व्यवहार करती थी.
बस में या गाड़ी में चढ़ते उतरते वक़्त उसे पुरुष की कमर या कंधे पर हाथ रखने की आदत पड़ गई थी..गाड़ी या बस खाली क्यों न हो? वह धक्के मारने में माहिर हो गई थी.
रिगल में ' इंसाफ का तराजू ' देखकर हम लोग बस स्टोप पर खडे थे.. रास्ते में ऊस ने पूरा समय फ़िल्म के खलनायक को गालिया दी थी.
बलात्कार के बारे में उसने बहुत कुछ कह दिया था. ऊस की रसिक दलीले मैंने बड़े चाव से सुनी भी थी.
ऊस वक़्त बस आई. मैंने एक लोफर को तृप्ति देसाई की छेड़छाड़ करते हुए अपनी आँखों से देखा था. मैंने ऊस को ऊस को एक थप्पड़ भी रसीद कर दी थी. ऊस वक़्त मेरी तारीफ करने के बदले ऊस ने मुझे डांट दिया था.मुझे कहां भी था : " क्या तरंग ऐसी छोटी सी बात में हाथापाई पर उतर आते हो? भीड़ में अक्सर ऐसे छोटे मोटे हादसे हो जाते हैं!!
क्या यह मामूली बात हैं? मैंने सवाल किया था. तृप्ति देसाई की इज्जत पर हाथ डालने वाला शख्स मुझे नीचा दिखा गया था.
न जाने ऊस में ऐसा क्या था?
दिन प्रतिदिन ऊस के प्रति मेरी चाहत गहरी बन गई थी.. मेरे दिल में उसे पाने की आरझु अंगड़ाईया ले रही थी.
एक दिन कोलेज की बाजु में ऊस के साथ कॉफी सीप करते हुए प्रपोज़ किया था.
तब तृप्ति देसाईने मेरी चाहत की सराहना की थी. साथ ही ऊस के पुराने ख़्यालात के मात पिता उन की शादी को मंजूरी नहीं देंगे कर के मेरी बात को टाल दिया था. मैं उसे लाइफ पार्टनर बनाने पर तुला था. ऊस के मात पिता को मनाने को तैयार था. ऊस के लिये इंतजार करना भी चाहता था.
आखिर बात न बनी तो मैं खुद ऊस के पिता को मिलने दफ्तर पहुंच गया था.
वह भी अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करने को तैयार थे. लेकिन उन की बात सुनकर मेरे सारे सपने बिखर गये थे.
" तृप्ति धनवान लडके से शादी करना चाहती हैं. "
और ऊस का सपना पूरा हो गया था.
पैसों के लिये ऊस ने सगे धनवान चाचा का घर बसाया था. जिस का मुझे कोई इल्म नहीं था.
मैंने भी अपनी लव स्टोरी भूलकर ख्याति के साथ शादी कर ली थी.
कप रकाबी की आवाज से अतीत के साथ जुडी कड़ी टूट गई थी.
कॉफी सीप करते समय मेरी नज़र ऊस के समग्र देह का परिभ्रमण कर रही थी.. चुस्त तृप्ति बिल्कुल बदल गई थी.. जवानी में वह बूढी लग रही थी. कोफ़ी पीते हुए ऊस के हाथ कांप रहे थे.. ऊस के स्तन युग्म घड़ी के लोलक की तरह हिल रहे थे. मैं शादी सुदा था. यह बात भी भूल गया था.
अजय टेक्सटाइल क्यों छोडा? ऊस के बारे में कई अटकले होती रहती थी.
तृप्ति ने अपने चाचा के साथ ही क्यों शादी की थी? यह एक बहुत बड़ा रहस्य था जिस को तृप्ति ने खोला था.. वह रो रही थी.
ओवर टाइम के बहाने ऊस ने भतीजी को देर रात तक दफ्तर में रोक लिया था. और ऊस पर अमानुषिके अत्याचार किया था.. वह मा बनने वाली थी.. पैसे की लालच में वह अपने चाचा की रखेल बन गई थी.. नाम की शादी भी हुई थी. लेकिन अजय देसाई को तृप्ति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
कंवारी मा बनने वाली थी. इस हालत में ऊस के पिताजी ने ख़ुदकुशी कर ली थी.
ऊस की एक रखैल से भी बुरी हालत थी. अजय देसाई केवल शारीरिक सुख की खातिर ऊस के पास आता था. ऊस की हवस असीमित थी. रात भर वह तृप्ति के साथ अत्याचार करता था.
वह यह सब बर्दास्त नहीं कर पा रही थी.. लेकिन वह क्या करे? भौतिक सुख मिला लेकिन एक पति का प्यार उसे ना मिला.. अजय देसाई की जानवर जैसी करतूत ऊस के अंतर को जला रही थी. प्यार मिला तो वह भौतिक लालसा के पीछे दौड़ रही थी और संपत्ति मिली तो प्यार ऊस के नसीब में नहीं था.
ऊस की अथ इति सुनकर दिल फट सा गया.
वह अब भी फूट फूट कर रो रही थी!!
मैंने उसे दिलासा दिया.
ऊस का गलत मतलब निकालकर वह मुझे बेड रूम में ले गई.
" बस एक बार! तरंग! कहकर वह मुझ से लिपट गई."
मैं भी अपने आप पर काबू नहीं रख पाया और सब कुछ हो गया.
उसी वक़्त अजय देसाई आ धमका.
अपने शिकार को दुसरो की बाहों में देखकर ऊस का गुस्सा ज्वाला बन गया..
अजय देसाईने मुझ पर हमला किया. ऊस ने शराब पी रखी थी. वह बेहोश होकर गिर पड़ा.
और मैं कपड़े पहनकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ.
ऊस के बाद तृप्ति को दोबारा अपनी जिंदगी में ना लेने का शपथ लिया.
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फ्लेट के भीतर से किसी लड़की की चीख सुनकर मेरे दिलो दीमागमे हलचल सी मच गई.. आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी.
डोर बेल तक पहुंच पाऊ उस के पहले मानो बिजली का भारी झटका लग गया. हिरन रफ्तार से कई विचार दिमाग़ गुजर गये.
कोई लड़की के सिर पर खतरा मंडरा रहा था.भय सूचित पुकार सुनकर मुझे हकीकत का इल्म हो गया.
किसी भी तरह भीतर पहुंचना आवश्यकत था. मैंने गुस्से में जोर से दरवाजे अंदर की तरफ ढकेला. और वह खुल गया. इस बात का मुझे अचरज हुआ.
डिम लाइट की रौशनी में भीतर का माहौल देखकर मैं हड़बडा सा गया.
एक नराधम एक निवस्त्री लड़की की काया पर जानवर की तरह हावी हो गया था.. लेकिन वह अपना बचाव करने की कड़ी कोशिश कर रही थी. उस ने भेड़िये को आगे बढ़ने रोक रहा था.
भयभीत माहौल में दरवाजा खुल्ला था. इस बात से लड़की अनजान थी. देह भूखे भेड़िये का आक्रमक रवैया देखकर मेरा खून घोल रहा था.. उस का चेहरा देखकर मैं चौंक सा गया.
" अजय देसाई!! "
मैं कुछ कर पाऊ उस के पहले उस ने लड़की को जमीन पर पछाड़ दिया और उस के शरीर पर जुर्म करने लगा. जिस की बीमारी की खबर पाते मैं मिलने गया था वह मेरा बोस लड़की के साथ अत्याचार कर रहा था.
मैंने पूरा जोर लगाकर उस को लड़की से अलग किया और बोसके पेट के नीचे लात मारकर उसे जमीन पर पटक दिया.
बोस ' वोय मा ' कर के जमीन पर गिर गया.
युवती के देह पर एक भी वस्त्र बचा नहीं था.
मैंने उसे देखे बिना पलंग पर पड़ी चद्दर उठाकर उस को ढँक लिया.
उसी वक़्त चार आँखों का मिलन हुआ.
... तरंग...
... तृप्ति...
अजय देसाई ने 45 की आयु में कोई युवान लड़की से शादी की थी!! ऐसा मैंने सुना था लेकिन वह तृप्ति ही थी, वह मुझे मालूम ना था.
सत्य जानकर मेरे पैरो से जमीन निकल गई.
एक पति ही अपनी बीवी पर बलात्कार कर रहा था. इस ख्याल से मेरा समग्र बदन क्रोध की आग में जलने लगा.
आखरी एक साल से मैं ' अजय टेकस्टाइल
कोरपोरेशन में काम कर रहा हूं. एक्सपोर्ट क्षेत्र में कंपनी के मालिक मनहर देसाई का महत्वपूर्ण योगदान था.. वह दोनों भाई थे. धंधे में दोनों का बराबर का हिस्सा था. लेकिन अजय देसाई बड़े भाई का सब कुछ हड़पकर कंपनी का अकेला मालिक बन गया था.
पूरी जिंदगी उस ने कपट, कूटनीति और छोटे आदमी का शोषण करने में व्यतीत की थी.. शायद उस के बुरे कर्मो के नतीजे में उस की ऑंखें कमजोर हो गई थी. एक आँख चली गई थी और दूसरी भी ख़राब हो गई थी. इतना ही नहीं उस की एक किडनी बेकार हो गई थी. दवाईयो की वजह से उस का शरीर भी फूल गया था.
शिपमेंट्स और अन्य कामों की भगादोड़ी, जिम्मेदारी की वजह से मैं उन्हें मिलने जा नहीं पाया था.
शाम को उसे मिलने के लिये घर गया था..
ख्याति को भी मैंने बताया था!!
मैं देर से आऊंगा.
मैं कभी नाइंसाफी बर्दास्त नहीं कर पाता था.. इसी वजह से मैं अपने बोस को मन ही मन कोसता था.. उस से नफ़रत करता था.. मेरा दिल तो जाना नहीं चाहता था लेकिन एक नौकर के नाते उस को मिलने चला आया था.
और वही बोस की नई बीवी के रूप में मैं तृप्ति को मिला था.. उस ने अपने सगे चाचा के साथ शादी की थी. यह बात मैं हजम नहीं कर पाया था.
एक जमाने में मैं उसका आशिक था, दीवाना था!! मैंने सब कुछ भूलकर उसे आश्वस्त करने का प्रयास किया.
दुखी पीड़ित तृप्ति मुझ से लिपटकर रोने लगी. कुछ देर में उस का दिल फूल जैसा हल्का बन गया.
वह मेरे लिये कॉफी बनाने किचन में दाखिल हुई और मैं तिपोय पर रखे मेगेझीन को देखने लगा. लेकिन किसी चीज में मन नहीं लग रहा था..
मैं अतीत की यादो में खो गया.
कॉलेज के रास्ते एक बार तृप्ति देसाई से मेरी टक्कर हो गई थी. मैंने सोरी कहां था. लेकिन वह तो बिंदास्त खुल्ला हास्य कर के निकल गई थी. उस की ऐसी हरकतने मुझे चोंका दिया था.
उस के पहले कोलेज में योजित सेमिनार में उसे सुनने का मौका मिला था.
" बलात्कार क्यों होता हैं? "
इस विषय पर तृप्तिने अपने विचार पेश किये थे. उस वक़्त पूरा होल तालियो के आवाज से गूंज उठा था. श्रेष्ठ वक्तव्य के लिये उसे पारितोषिक मिला था.
स्त्री ने खुद अपनी ओछी हरकतों से अपने आप को लज्जित किया हैं. मुफ्त और बिना मेहनत खाने की आदत पड़ गई हैं. उस की यह कमजोरी उस की बदनामी की वजह बन गई हैं.पुरुष उन्ही कमजोरियो का फायदा उठाकर छोटे मोटे प्रलोभन देकर स्त्री को अपनी तरफ आकर्षित करता हैं.. शादी का जूठा वादा भी करता हैं. बादमे अपनी वासना का शिकार बनाकर सिगरेट की तरह मसल कर फेंक देता हैं.
धनवान पुरुष लिफ्ट देने के बहाने अपनी गाड़ी में घूमाता हैं. खिलाता हैं पिलाता हैं.. साधारण पहचान वाले लोगो की गाड़ीमें फटाक से लिफ्ट लेकर चलना टालती हैं और अपनी बर्बादी को आमंत्रित करती हैं.
उस के तेजस्वी परिसंवाद को सुनकर लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे... दूसरी ओर उसके ही हरीफ कड़े शब्दों में कर की तौहीन करते थे.
तृप्ति देसाई के प्रथम वक्तव्य से मैं भी बड़ा प्रभावित हो गया था. लेकिन उसकी बानी और व्यवहार में जमीन आसमान का फर्क था.
किसी को भाव न देने वाली तृप्ति देसाई भीड़ या गिर्दी में अलग व्यवहार करती थी.
बस में या गाड़ी में चढ़ते उतरते वक़्त उसे पुरुष की कमर या कंधे पर हाथ रखने की आदत पड़ गई थी..गाड़ी या बस खाली क्यों न हो? वह धक्के मारने में माहिर हो गई थी.
रिगल में ' इंसाफ का तराजू ' देखकर हम लोग बस स्टोप पर खडे थे.. रास्ते में ऊस ने पूरा समय फ़िल्म के खलनायक को गालिया दी थी.
बलात्कार के बारे में उसने बहुत कुछ कह दिया था. ऊस की रसिक दलीले मैंने बड़े चाव से सुनी भी थी.
ऊस वक़्त बस आई. मैंने एक लोफर को तृप्ति देसाई की छेड़छाड़ करते हुए अपनी आँखों से देखा था. मैंने ऊस को ऊस को एक थप्पड़ भी रसीद कर दी थी. ऊस वक़्त मेरी तारीफ करने के बदले ऊस ने मुझे डांट दिया था.मुझे कहां भी था : " क्या तरंग ऐसी छोटी सी बात में हाथापाई पर उतर आते हो? भीड़ में अक्सर ऐसे छोटे मोटे हादसे हो जाते हैं!!
क्या यह मामूली बात हैं? मैंने सवाल किया था. तृप्ति देसाई की इज्जत पर हाथ डालने वाला शख्स मुझे नीचा दिखा गया था.
न जाने ऊस में ऐसा क्या था?
दिन प्रतिदिन ऊस के प्रति मेरी चाहत गहरी बन गई थी.. मेरे दिल में उसे पाने की आरझु अंगड़ाईया ले रही थी.
एक दिन कोलेज की बाजु में ऊस के साथ कॉफी सीप करते हुए प्रपोज़ किया था.
तब तृप्ति देसाईने मेरी चाहत की सराहना की थी. साथ ही ऊस के पुराने ख़्यालात के मात पिता उन की शादी को मंजूरी नहीं देंगे कर के मेरी बात को टाल दिया था. मैं उसे लाइफ पार्टनर बनाने पर तुला था. ऊस के मात पिता को मनाने को तैयार था. ऊस के लिये इंतजार करना भी चाहता था.
आखिर बात न बनी तो मैं खुद ऊस के पिता को मिलने दफ्तर पहुंच गया था.
वह भी अपनी बेटी का ब्याह मेरे साथ करने को तैयार थे. लेकिन उन की बात सुनकर मेरे सारे सपने बिखर गये थे.
" तृप्ति धनवान लडके से शादी करना चाहती हैं. "
और ऊस का सपना पूरा हो गया था.
पैसों के लिये ऊस ने सगे धनवान चाचा का घर बसाया था. जिस का मुझे कोई इल्म नहीं था.
मैंने भी अपनी लव स्टोरी भूलकर ख्याति के साथ शादी कर ली थी.
कप रकाबी की आवाज से अतीत के साथ जुडी कड़ी टूट गई थी.
कॉफी सीप करते समय मेरी नज़र ऊस के समग्र देह का परिभ्रमण कर रही थी.. चुस्त तृप्ति बिल्कुल बदल गई थी.. जवानी में वह बूढी लग रही थी. कोफ़ी पीते हुए ऊस के हाथ कांप रहे थे.. ऊस के स्तन युग्म घड़ी के लोलक की तरह हिल रहे थे. मैं शादी सुदा था. यह बात भी भूल गया था.
अजय टेक्सटाइल क्यों छोडा? ऊस के बारे में कई अटकले होती रहती थी.
तृप्ति ने अपने चाचा के साथ ही क्यों शादी की थी? यह एक बहुत बड़ा रहस्य था जिस को तृप्ति ने खोला था.. वह रो रही थी.
ओवर टाइम के बहाने ऊस ने भतीजी को देर रात तक दफ्तर में रोक लिया था. और ऊस पर अमानुषिके अत्याचार किया था.. वह मा बनने वाली थी.. पैसे की लालच में वह अपने चाचा की रखेल बन गई थी.. नाम की शादी भी हुई थी. लेकिन अजय देसाई को तृप्ति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
कंवारी मा बनने वाली थी. इस हालत में ऊस के पिताजी ने ख़ुदकुशी कर ली थी.
ऊस की एक रखैल से भी बुरी हालत थी. अजय देसाई केवल शारीरिक सुख की खातिर ऊस के पास आता था. ऊस की हवस असीमित थी. रात भर वह तृप्ति के साथ अत्याचार करता था.
वह यह सब बर्दास्त नहीं कर पा रही थी.. लेकिन वह क्या करे? भौतिक सुख मिला लेकिन एक पति का प्यार उसे ना मिला.. अजय देसाई की जानवर जैसी करतूत ऊस के अंतर को जला रही थी. प्यार मिला तो वह भौतिक लालसा के पीछे दौड़ रही थी और संपत्ति मिली तो प्यार ऊस के नसीब में नहीं था.
ऊस की अथ इति सुनकर दिल फट सा गया.
वह अब भी फूट फूट कर रो रही थी!!
मैंने उसे दिलासा दिया.
ऊस का गलत मतलब निकालकर वह मुझे बेड रूम में ले गई.
" बस एक बार! तरंग! कहकर वह मुझ से लिपट गई."
मैं भी अपने आप पर काबू नहीं रख पाया और सब कुछ हो गया.
उसी वक़्त अजय देसाई आ धमका.
अपने शिकार को दुसरो की बाहों में देखकर ऊस का गुस्सा ज्वाला बन गया..
अजय देसाईने मुझ पर हमला किया. ऊस ने शराब पी रखी थी. वह बेहोश होकर गिर पड़ा.
और मैं कपड़े पहनकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ.
ऊस के बाद तृप्ति को दोबारा अपनी जिंदगी में ना लेने का शपथ लिया.
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