...

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yunhi ...
आज इतवार के फुरसत के दिन सोचा थोड़ा खुद को समेटा जाए .. देखो ना कितनी
कुछ अनकही बातें ...कुछ टीस ,कुछ अवसाद , कुछ खलबलाहट ,कुछ याद ,कुछ ख़याल,
और कुछ मै ...
भावनाओं के फ़र्श पर बिखरे पड़े हैं ..
( शायद मैंने बिखेरा है सब कुछ )
तुम देख रहे हो ना मन के इस कमरे में इतनी जगह नहीं कि दूसरी शेल्फ़ रख लूं ...

सुनो ना ,

तुम आकर कम से कम ये

"कुछ बातें" ही लिए जाओ ...

बाकी को मैं एडजस्ट कर दूंगी..!!

(कहा पता नहीं.. )