...

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ये शाम
सुनो,
अगर किसी रोज़ मैं चाहूँ थोड़ा पगला जाना तो रोकना मत मुझे,बस मुस्कुरा कर अपनी मंजूरी दे देना.. इस बदलते मौसम की गुलाबी शाम और मेरी मोहब्बत की ख़ातिर..जानती हूँ मोहब्बत में दूरियाँ महज़ एक शब्द बराबर होती है..पर जानते हो कभी-कभी झल्ला सी जाती हूँ मैं इन्ही दूरियों पर.. मैं और तुम दो अलग-अलग शहरों में जो हैं,पर फिर ये सोच कर खुद को बहला लेती हूँ कि हमारे सर पर सजा आसमान एक है..तुमको छूकर आती हुई हवा कभी तो मुझसे टकराती होगी..उस हवा...