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वो बच्ची
अभी ट्रेन में हूँ। मुझे अव्वल श्रेणी नहीं पसंद, हमेशा की तरह वही सीट बुक की है जहाँ खिड़की खोल पाऊँ, दोपहर में चलती गर्म हवायें चेहरे से छू पाऊँ और ढलते सूरज के साथ उन हवाओं का धीरे-धीरे सर्द होना महसूस कर पाऊँ। बस अभी कुछ देर पहले आँख बंद करे हुए इन्हीं हवाओं की बोली समझने की कोशिश कर रहा था। तभी पीछे वाली सीट से एक अनजान हाथ ने मेरे कंधे को छूकर मुझे बुलाया, बिना आवाज़ के, बस छूकर। मैंने आँखे खोल जब वो हाथ देखा तो मैं दरार से पीछे की ओर झाँका, एक छोटी सी बच्ची मुस्कुरा रही थी, मानो मुझे पहले से जानती हो। आठ या नौ साल की उम्र होगी उसकी। मैं भी मुस्कुरा दिया और फिर इशारे से समझाया कि अपना हाथ खिड़की के बाहर मत निकालो। मैंने फिर से आँखें बन्द कर लीं तो वो फिर से मुझे हाथ से बुलाने लगी, मैं मुड़ा तो वो फिर से मुस्कुरा रही थी। मैं समझ गया कि वो चाहती है कि मैं आँख बंद न करूँ, तो मैंने मुस्कुराकर आँख बंद न करने के लिये हामी भरते हुए सर हिला दिया। मैं आँखे खोलकर बैठ गया, वो भी पीछे आँखें खोले ठीक मेरे बैठने की नकल करते हुए बैठी रही। अभी शायद कुछ देर पहले आये स्टेशन पर वो अपने माँ-पापा के साथ उतर गयी, भीड़ थी तो मैं ध्यान नहीं दे पाया और न हीं उसे मुस्कुराकर बॉय बोल पाया। मैं तब से आँखें खोलकर ही बैठा हूँ और मुझे एेसा लग रहा है कि जैसे मैं अब तक हवा को सिर्फ सुन रहा था लेकिन अब देख भी पा रहा हूँ।
और एक खास बात बताऊँ उस बच्ची को जब मैंने पहली बार मुड़कर मुस्कुराते हुए देखा था तो मुझे मेरी एक दोस्त की याद आयी।

© Lekhak Suyash
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