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नज़र आया वो चेहरा
कई दिनों के बाद नज़र आया वो चेहरा,
जो कभी हमारी खुशियों कि वजह हुआ करता था। जिसे देख हमारी सुबह और रात होती थीं। वो मुस्कान जो मेरे सारे दर्दों की अकेली दवा हुआ करती थी। जो बेचैनी में भी सुकून दे जाती थी। वो आंखे जो दर्द में मेरे रोया करती थीं। पर अब कुछ बदला - बदला सा लग रहा था वो चेहरा जैसे किसी मुर्झाए फूल की तरह। वो चेहरा अब हस्ता नहीं है। वो अब मुस्कुराता नहीं है। ना जाने क्या हुआ है उसे? लग रहा था जैसा कुछ ढूढ रहा है। पर क्या? क्या उसकी मुस्कान जो उसने खो दी या फिर हसने की कोई और वजह। सवाल कई हैं और जवाव कोई भी नहीं। कश्मकश के जाल में उलझी सी हूँ मैं। ना पता है कुछ ना जानने की इज़ाज़त ये दिमाग़ देता है। फिर ये दिल क्यूँ कुछ नहीं समझता है क्यूँ नहीं समझता कुछ सवालों के जबाब जख्म हरे कर देते हैं। क्या उन सवालों के जवाव खोजने चाहिए या उनका सवाल रहना हीं बेहतर है???????............

© श्वेता श्रीवास