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शब्द एक मौन...
मैं जो कुछ भी लिख रही हूं या आज तक मैंने जो कुछ लिखा, असल मैं वह मेरे विचार और शब्द नहीं थे। असल में संसार में जो कुछ भी जिसने कोई शब्द या विचार लिखा ; वो विचार उस व्यक्ति का नहीं था l बल्कि वह शब्द और विचार उसे किसी और व्यक्ति से या विचार से आए । उन विचारों से व्यक्ति का आचारण तो कभी आचरण से विचार उभर कर बाहर आए।

वह आचरण भी व्यक्ति का नहीं था, वह आचरण और विचार था एक पार्सनलिटी या परसोना ( मुखौटा) का।

संभवतः यही कारण है व्यक्ति हमेशा खाली या रिक्ति महसूस करता है।

यही दूसरी ओर यह बात...