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आत्मनिर्भरता जरुरी है
जिन्दगी एक यात्रा होती है जिसमें सफर के दौरान हमें अपनो के खिलाफ होना पड़ता है और उनके साथ कि भी जरूरत होती है। रिश्तों के चक्रव्युह में हम इतने उलझ जाते हैं।कि हम अपनो से सहारा कि उम्मीद करने लगते हैं।और सहारा ना मिलने पर हम अपनों से रूष्ट हो जाते हैं।
पर सच तो ये है कि जिन्दगी हमारी, सपने हमारे, परेशानियाँ भी हमारी, तो इसके समाधान के लिए किसी और का सहारा क्यो लेना?
मैं ये नही कह रही हू कि हमें रिश्तों की परवाह नहीं करनी चाहीए।
परवाह, प्यार, सच्चाई, इज्जत, और साथ ये सभी तो जरुरी हैं, रिश्तों के लिए। रिश्तो कि इज्जत तो हमें ताउम्र करनी चाहिए।
पर इन रिश्तों मे साथ वहीं तक माँगना चाहिए,जहाँ तक सही हो यदि हमारी कुछ माँगने मात्र से रिश्तों मे कड़वाहट आ रही है तो अपनी जरुरत खुद ही पुरी करनी चाहिए।
कभी-कभी हम ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं, जब हम खुद को कमजोर महसूस करने लगते हैं।ऐसी परीस्थितीयों में किसी अपने का साथ लेना बुरा नहीं। परन्तु सदैव उन पर निर्भर रहना गलत है।
अगर हम दुसरों पर निर्भर रहने के आदि हो जाऐंगें तो विषम परिस्थितीयों में खुद के लिए निर्णय लेने में स्वयं को असहाय महसूस करेंगें।
जिन्दगी के जिस दौर में हम है उस दौर में आत्मनिर्भरता बहुत जरूरी है।
परेशानी, समस्या ऐसे बहुत से शब्द तो सभी के जीवन में दस्तक देते हैं इनका समाधान खोजने के बजाय हम किसी का सहारा क्यों खोजने लग जाते हैं? बेहतर होगा कि तकलीफों को संघर्ष समझकर उसका सामना करें।आत्मनिर्भर बनें। ना कि किसी पर निर्भर रहें।