...

3 views

लोहड़ी के अलाव की पावन अग्नि को साक्षी मानकर बंधता संबंध
लोहड़ी के अलाव की पावन अग्नि को साक्षी मानकर बंधता संबंध

कल लोहड़ी के पावन अवसर पर मेरे आत्म संगनी का संदेश आया बोली जानू तुमको याद है आज ही के दिन हमारे प्यार की शुरुआत हुई थी।में लोहड़ी के अलाव की आग के साथ तुमसे चर्चा में लीन थी,एक अलग अहसास के साथ।
वोह बोली जानू आज भी लोहड़ी है मेरी हार्दिक इच्छा है आज मैं लोहड़ी के अलाव की इस पावन अग्नि को साक्षी मानकर तुम्हारे साथ 7 फेरे लूं,यदि इजाजत हो। उसका सवाल कहूं या याचना इतनी गंभीर थी के में चाहकर भी उसे रोक नही पाया।हैं उससे यह जरूर कहा" बिन फेरे हम तेरे "।
उसने अपनी इच्छा अनुरूप लोहड़ी के अलाव की उस पावन अग्नि को साक्षी मानकर अपने मन मंदिर में मेरे नाम का दिया जलाकर मुझे अपना स्वीकार करने की पहली वर्षगांठ मना लिया।
हजारों मील दूर से उसने मेरे दामन को थामा और दिव्य ज्योति की परिक्रमा करते हुए सात फेरे लेते हुए मुझे अपना स्वीकार कर लिया। मेरे नाम की हाथ में लगी मेंहदी की रंगत उसके प्यार की चमक को उजागर कर रही थी।मेंहदी का गहरा रंग इस बात का प्रमाण था कि हमारे प्रेम में भौतिकता अवश्य नही है लेकिन यथार्थ रुपी भाव,स्नेह,समर्पण तथा सबसे बड़ा विश्वास कायम है।

उसकी मांग में सजा सिंदूर आज कुछ ज्यादा चमक रहा था,कारण था मेरे प्रति उसका स्नेह और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का बोध।

लोहड़ी पर्व पर अनेक लोगों के नृत्य प्रदर्शन के बीच उसके मन में छाया मेरा प्रेम उसे एकांतता की और खींचे ले जा रहा था,भारी शोर गुल के बीच उसका मचलता हुआ हृदय मेरे आगोश की पनाह चहता था। हुआ भी यही , चंद मिनटों के अनुष्ठान के बाद वह सीधे मेरे आगोश में थी। अपने पिया से प्यार करने को व्याकुल उसका मन अब शांत था।
© SYED KHALID QAIS