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वो कौन था?
रात के करीब 2 बज गए थे..
आकाश अपनी कार उस खाली हाई-वे पर और तेजी से भगा रहा था, खाली और सुनसान रोड पर उसकी स्पीड 100km प्रति घंटे से 120 और 140 के ऊपर हो चुकी थी

स्ट्रीट लाइट की रोशनी आने वाले तूफान की वज़ह से उतनी साफ़ नहीं दिख रही थी

गाड़ी की windscreen पर धूल के साथ बारिश की बूंदे भी गिरना शुरू हो गई थी

बाहर जैसा बवंडर चल रहा था वैसा ही बवंडर आकाश के के भीतर भी चल रहा था, बाहर तेज हवा और गाड़ी के अंदर न्यूनतम तापमान पे चल रहे AC मे भी आकाश पसीने से लथपथ था

वो बार बार एक हाथ से अपने पसीने को पोंछ रहा था और पसीना उसके माथे और कान के पीछे आते रह रहा था

ना जाने वो क्यु डर रहा था और ना जाने क्यु इतनी स्पीड से गाड़ी चला रहा था

अचानक रेयर मिरर से आकाश को कुछ दिखा, वही परछाई उसके गाड़ी की बैक सीट पर दिखी उसने पीछे देखा और.......


कुछ मिनिटों बाद उसकी गाड़ी हाई वे के डिवाइडर से टकरा कर उल्ट गई

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करीब करीब सुबह 4 बजे Inspector विक्रम उनकी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुच गए

आकाश की लाश को पोस्टमॉर्टम केलिए भेजा गया

Inspector विक्रम के साथी हवलदार ने कहा "सर, एक नॉर्मल एक्सीडेंट का केस है, फिर भी इतना वक़्त क्यु बर्बाद करने का, पोस्टमार्टम वगैरह..."

विक्रम "ये कार्यवाही है, पर तुमको नहीं लगता ये इंट्रेस्टिंग केस है"

"कैसे सर?"

"होना चाहिए... क्यु की मुझे कभी...आज तक सीधे साधे केस नहीं मिले... तुमने देखा एक्सीडेंट इतना बड़ा नहीं है.. बॉडी को चोट भी ना के बराबर आई है.. "

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12 बजे पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आकाश के घर वालों के साथ नॉर्मल पूछताछ करने के बाद पंचनामा करके बॉडी उनको सौंप दी

रिपोर्ट के जरिए पता चला कि आकाश की मौत कार एक्सीडेंट से नहीं पर उससे ही कुछ सेकंड पहले हो गई थी..

मौत की वज़ह, परेशानी, सदमा या भय या कुछ और क्यु के आकाश की एक्सीडेंट के धड़कन पहले ही बंद हो गई थी..

आकाश को जहा चोट आई थी वहा खून का बहाव बिल्कुल ना के बराबर था, ऐसा तभी होता है, जब हार्ट ने पंपिंग करना बंद कर दिया हो या कम हो गया हो.. और इतनी कम थी, कंही गहराई वाला घाव भी नहीं दिखा था...

शायद हार्ट अटैक... पर क्यु.. किसलिए.. आकाश की मेडिकल हिस्ट्री.. से भी संभावना कम लग रही थी

सोच मे डूबे विक्रम को उनके साथी ने कहा "क्या सहाब आपको मर्डर मिस्ट्री सॉल्व करते करते.. हर छोटा मोटा केस भी बड़ा लगता है... इतना मत सोचिए... गाड़ी मे कोई नहीं था... कीसी ने खून नहीं किया..."

पर हमेशा की तरह विक्रम सोच रहा था.. ये केस नॉर्मल नहीं है...

***
रात को 11 बजे सुधीर वाशी बस-स्टॉप पर उरण जाने वाली लास्ट लोकल बस पर चढ़ा

कन्डक्टर से पूछा "सर, ये बस गव्हान जाएगी?"

"नहीं सिर्फ गव्हान फाटा तक, २६ रुपये"

"सर, प्लीज बता देना जब गव्हान फाटा आए तब, मैं मुंबई मे नया हू... प्लीज"

"ठीक है"

सुधीर ने मोबाइल निकाला battery 10% थी, उसने मोबाइल switch off करके रख दिया

उसका ट्रांसफ़र दिल्ली से यहा हुआ था, और कंपनी से कोई लेने आने वाला नहीं था, ट्रेन लेट हो गई और वाशी तक आते आते ही रात हो गई, अच्छा हुआ लास्ट बस मिल गई...

बस की गती धीरे धीरे तेज हो रही थी, वाशी की स्ट्रीट लाइट की रोशनी और शहर की रोशनी से दूर अब सुनसान सड़क पर बस चल रही थी, अब दूर दूर तक कोई रोशनी नहीं दिख रही थी, बस मे सिर्फ तीन लोग थे, ड्राइवर, कन्डक्टर और सुधीर..

सुधीर की आंख 2 मिनट के लिए लगी तब अचानक उसे लगा के बस मे उन तीनों के अलावा भी कोई है, जो उसके पीछे बैठा हुआ है.. उसने पीछे देखा..

कोई नहीं था.. शायद सपना आया होगा

सुधीर के माथे पर हल्का हल्का पसीना हो गया था

कन्डक्टर ने बेल बजाया और गाड़ी रुकी, कन्डक्टर ने कहा "उतरो, गव्हान फाटा आ गया"

सुधीर उतरा, बहोत अजीब जगह थी, बड़ा सा पानी का टैंक था, और चारो तरफ पहाड़ी, कम रोशनी मे बस यही दिखा, और उसके उतरने के बाद जब बस गई तब वो सब भी दिखना बंद हो गया

उसको लगा बस मे से और कोई भी...