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विक्की…नाम सुनकर मोपेड समझे क्या? ..
विक्की..नाम सुनकर मोपेड समझे क्या? ..मोपेड नहीं रॉकेट

आजकल पुष्पा फ़िल्म का जादू हर सर पर चढ़ा हुआ है, पुष्पा ने अपने नाम की डेफ़िनिशन फ्लावर के बजाय फ़ॉयर से देकर नाम पर होने वाली चर्चा को फिर सुर्ख़ियों में ला दिया है।

नाम में क्या रखा है ऐसा कहने वाले अपना दस्तख़त विलियम शेक्सपियर लिख कर करते थे, अमिताभ भी 17 फ़िल्मों में अपना नाम विजय रखते हैं और सलमान फ़िल्मों में प्रेम के नाम से पहचाने जाते है, यूसुफ़ खान को दिलीप कुमार और राजीव भाटिया को अक्षय कुमार होना पड़ता है।

यूँ तो कहना आसान है कि नाम में क्या रखा है पर वास्तविकता यही है हम लोगों को उनके नाम और उपनाम के आधार पर ही जज करने की कोशिश करते हैं।

शायद यही कारण है कि फ़िल्मों में दबंग पुलिस अधिकारी दिखाने के लिए हमें राठौड़ और शेखावत जैसे सरनेम की आवश्यकता होती है और बड़ा बिज़नेसमैन दिखाने के लिए रॉय, ओबरॉय की...जज अक्सर सिन्हा होते थे और वकील सक्सेना।

बेचारे रामू काका कभी भी नौकर से ज़्यादा कुछ नहीं बन पाये तो माइकल हमेशा शराबी मछुआरा रहा और इक़बाल चाचा पॉंच वक्त नमाज़ी थे जो हिरो की बहन को गुंडों से बचाकर अपने यहाँ पालते थे ।

कुछ वर्षों पहले में पढ़ाई के सिलसिले में पॉण्डिचेरी था हमारे एक टीचर थे विक्टर...हमारी क्लास में पढ़ने वाला कोई नालायक उन्हें रात को 12 बजे फ़ोन करके पूछा करता था कि आप सिर्फ़ विक्टर है या TVS विक्टर ( उस समय की प्रसिद्ध मोटरसाइकिल).....कमोबेश मुझे भी विक्की नाम के चलते ऐसे ही सवालों से दो-चार होना पड़ता था।

अक्सर मेरी महिला पर्यटक भी मेरे नाम पर हँस दिया करती थी क्योंकि उनके यहाँ विक्टोरिया को विक्की नाम से संबोधित करते हैं जो कि एक लड़कियों का नाम है।

वैसे भी फ़िल्मों की बात करें तो विक्की अक्सर किसी रईस बाप की बिगड़ैल औलाद रहा है और आवारगी के चलते घर से बेदख़ल हो जाता है।

सही मायने में हम सभी किसी ना किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं, हम सामने वाले को उसके सूट-बूट, भाषा, वाहन, पद या सामाजिक स्तर के आधार पर सम्मान देते हैं, जब तक जहन में पूर्वाग्रह ज़िंदा है तब तक हम इंसान को उसकी जाति, धर्म व संस्कृति के आधार पर जज करते रहेंगे।

किसी समय में हम दक्षिण भारतीय सिनेमा को भी दोयम दर्जे का मान कर जज किया करते थे और मुम्बईया फ़िल्मों को उनसे अधिक तरजीह देते थे। आज सब कुछ इसके उलट है, दक्षिण भारतीय सिनेमा का परचम हर तरफ़ लहरा रहा है और मुम्बईया सिनेमा पतन की ओर अग्रसर है ।


ख़ैर ये सब तो यूँ ही चलता रहेगा पर यदि आपने पुष्पा अभी तक नहीं देखी है तो देख लीजिए...बेहतरीन और संयमित अदाकारी का इससे बेहतर उदाहरण इन दिनों दूसरा नहीं है ।

संल्गन तस्वीर दक्षिण भारत के टूअर के दौरान खींची गई थी...”जैसा देश वैसा भेष”वाली अवधारणा को आत्मसात् करते हुए।

....नाम में क्या रखा है
✍️ विक्की सिंह
© theglassmates_quote