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आरव_ प्रारंभ..
उस श्रेष्ठ रचैयता को नमन जो प्रत्येक के लिए पूजनीय है । उसी की ईच्छा शक्ति से जीवन , मृत्यु , काल, आदि और अनादि अस्तित्व का जन्म हुआ है । सारी सृष्टि उसी के आशीष से अस्तित्व में आई है और उसी के अस्तित्व में जाकर विरप्त हो जायेगी । वही है परमेश्वर जो प्रत्येक जीव और प्रकृति को गर्भ धारिणी मां से भी अधिक प्रेम करता है । उसका व्याख्यान तो संभव ही नहीं किंतु यह भी है कि वह अपनी रचना से केवल कुछ हृदय शुद्ध और सरल शब्दों से उन्हें और उनके समस्त जीवन को स्वीकार कर लेता है । मैं उस आदि और अनादि ईश्वर को नमन करता हु ।

कहानी की शुरुआत होती है वामिनो और वामिनो वासी लिहास ( वामिनो लोक में रहने वाले ) की प्रतीक्षा से । समय से सदियों की अंगराई ली किंतु वर्तमान में भी आरव हीन है संसार । स्वामी और उसके गणों का ऐसा विराह आवश्य ही वह ईश्वर वामिनो के हित हेतु किसी बड़े अस्तित्व का चयन कर रहे है ।

 • अंतिम आरव पदाधिकारी ने यह भविष्य वाणी बताई थी , मेरे बाद जो वामिनो में कल्याण कार्य को संभालेंगे वह ईश्वर की श्रेष्ठ लोक और सर्वोत्तम जीव कुल से होगे ।

संयम का फल सदैव ही कर्मफल स्वरूप हमे हमारे जीवन लक्ष्य मार्ग में आगे की ओर अग्रिम करता है । नायून की शिखर पर वह श्वेत कानेल का पुष्प पुनः अस्तित्व में आ रहा था , द्वितीय लोक से वामिनो में प्रवेश कर अयाह लहर के उग्दगम बिंदु भी स्वच्छ हो गया । चंद्र और सूर्य स्वयं की शीतलता और तेज को यूं सज्जित कर रहे थे कि मानो आरव आगमन पर उनके पग तले वे स्थाई हो जायेगे , संसार का कर्ण कर्ण एक और विरह में था तो दूजी ओर श्रेष्ठ आरव के आगमन हेतु सज्ज हो रहा था , स्वयं ही वैरागी कालपी उनके आगमन हेतु समस्त तानिज महल की सज्जा और स्वच्छता में लीन थे । बस आरव के पावन पग पुनः इस संसार में आए और हीनता और दुष्टता का नाश कर , सृजन कार्य को पुनः प्रारम्भ करे और अपने दिव्य अस्तित्व द्वारा संसार को आशीष दे ।

 • [ वामिनो में आकाश वाणी हो चुकी थी ~ वामिनो के अंतिम और श्रेष्ठ आरव का चयन संपन्न हो चुका है । वे अनादि काल तक श्रृजन और वामिनो का कल्याण कार्य हेतु सज्ज होगे । ]

 • इस आकाशवाणी के पश्चात तो प्रतिक्षा की काया ही बदल गई , अधोपति वामिनो के सर्जक का प्रवेश निकट ही था वामिनो में । उस श्रेष्ठ दिव्य अंश के आगमन समाचार से ही श्रृष्टि मन मुग्ध हो चली , हैं कोई अन्य उनसा जिनके आधीन एक लोक और जो वहन करेगे संसार की श्रेष्ठ सोरह शक्तियों को जिसके अंतर्गत निर्माण और विनाश दोनो ही संपन्न होगे ।


एक समय अवधि से सारे लिहास और मुख्य गण सज्ज थे किंतु आकाश वाणी के संबंध किसी को भी पूर्णतः ज्ञान नही था , कालपी ने योजना प्रासस्त की उस समय अवधि के विषय हेतु ।
उन्होंने एक परमेश्वर की स्तुति प्रारंभ की और प्रण लिया की मैं स्तुति , प्राथना में तब तक लिन रहूंगा जिस क्षण तक अनादि ईश्वर कोई संकेत न दे दे , आरव के विषय में । निरंतर तीन वर्षो तक कालपी ने अपना पूरा ध्यान श्रेष्ठ निर्माता की स्तुति में लगा दिए । जिसके अंतर्गत उन्होंने 800 पुस्तकें धर्म की , 6000 से अधिक ईश्वर के स्तुति और उसकी कृपा का स्वरूप बताया , तो 2500 ऐसी पुस्तकें जिसमे श्रेष्ठ ईश्वर द्वारा अन्य और वामिनो का निर्माण और उसकी लीला का वर्णन है । कालपी तो वो जिनसे श्रेष्ठ कभी रूष्ट हो ही नही सकता , उनकी एकाग्रता और भक्ति कर्म अन्य स्वरूप का ही है ।

कालपी आंखों को बंद करते है और फिर देखते है आरव अपना पहला पग बारीक सीर सागर में रखेगे , और वहा से वामिनों महल की ओर प्रस्थान करेंगे किंतु , वे एक चीज को देख कर आश्चर्य चकित हो गए की उनके पग तले अग्नि की लपटें थी , और सीर सागर में होते हुए भी वो तनिक झुलस रहे थे ।
कालपी ने आंखे आकसम्त खोली , और तेज वाणी में ईश्वर का गान किया , हे श्रेष्ठ रचैयता ये कैसी पीड़ा है , आरव तो वामीनो के केंद्र है और शक्ति पुंज फिर उनके पग तले ऐसी अग्नि सिखाएं ।

आरव आगमन के सुखद समाचार से अधिक कालपी हेतु उन अग्नि शिखाओ का जलना अधिक चिंतनीय था । वे अपने आराधना कक्ष से बाहर आए और उन्होंने सभी को आरव आगमन की शुभ कामना दी सभी को यह बतलाया की आरव चंद्र की द्वाविंशति ( 22 वी ) दिवस वामिनो में आगमित होगे । उनके आगमन मात्र से समग्र श्रृष्टि में पुनः धर्म और शुद्धता की स्थापना होगी । उनके दिव्य अवतार से समग्र जीव और संसार पुनः संपन्न होगी ।


सभी न केवल वामिनो महल की सज्जा अपितु उसके सभी मार्ग , धर्म स्थल और मुख्य स्थलों को स्वयं ही जायाम जल से धोया गया । सभी ओर श्वेत कनेल के पुष्पों से सज्जा की गई ताकि उनके पग उन्ही पर आए , पश्चात इसके सुर्ख गुलाब के पुष्पों से उच्च स्थानों पर सजाया गया । उनके आने से पूर्व ही सभी उनकी दिव्यता का अनुभव कर रहे थे और ज्यों ज्यों वह दिवस समीप आता सज्जा और सारी व्यवस्था स्तर उच्च स्तर पर बढ़ती जाती । सभी ने अपने अपने घरो को भी जायाम जल से धोया और सज्ज़ हो रहे थे आरव स्वरूप के दर्शन के लिए ।
पत्थर और कण कण स्वयं में ही आरव आगमन हेतु सज्ज हो रहे थे आज अष्टादश का दिन था नायुन ने लिहास स्वरूप धारण किया और मुख्य मंत्री मंडल महामंत्री निनाद , सेना संचारक आयात्रा , सेना पति आदित्य , मुख्य वैद्य ध्रुआंश , मुख्य सलाहकार सातत्य , धर्म...