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आरव_ प्रारंभ..
उस श्रेष्ठ रचैयता को नमन जो प्रत्येक के लिए पूजनीय है । उसी की ईच्छा शक्ति से जीवन , मृत्यु , काल, आदि और अनादि अस्तित्व का जन्म हुआ है । सारी सृष्टि उसी के आशीष से अस्तित्व में आई है और उसी के अस्तित्व में जाकर विरप्त हो जायेगी । वही है परमेश्वर जो प्रत्येक जीव और प्रकृति को गर्भ धारिणी मां से भी अधिक प्रेम करता है । उसका व्याख्यान तो संभव ही नहीं किंतु यह भी है कि वह अपनी रचना से केवल कुछ हृदय शुद्ध और सरल शब्दों से उन्हें और उनके समस्त जीवन को स्वीकार कर लेता है । मैं उस आदि और अनादि ईश्वर को नमन करता हु ।

कहानी की शुरुआत होती है वामिनो और वामिनो वासी लिहास ( वामिनो लोक में रहने वाले ) की प्रतीक्षा से । समय से सदियों की अंगराई ली किंतु वर्तमान में भी आरव हीन है संसार । स्वामी और उसके गणों का ऐसा विराह आवश्य ही वह ईश्वर वामिनो के हित हेतु किसी बड़े अस्तित्व का चयन कर रहे है ।

 • अंतिम आरव पदाधिकारी ने यह भविष्य वाणी बताई थी , मेरे बाद जो वामिनो में कल्याण कार्य को संभालेंगे वह ईश्वर की श्रेष्ठ लोक और सर्वोत्तम जीव कुल से होगे ।

संयम का फल सदैव ही कर्मफल स्वरूप हमे हमारे जीवन लक्ष्य मार्ग में आगे की ओर अग्रिम करता है । नायून की शिखर पर वह श्वेत कानेल का पुष्प पुनः अस्तित्व में आ रहा था , द्वितीय लोक से वामिनो में प्रवेश कर अयाह लहर के उग्दगम बिंदु भी स्वच्छ हो गया । चंद्र और सूर्य स्वयं की शीतलता और तेज को यूं सज्जित कर रहे थे कि मानो आरव आगमन पर उनके पग तले वे स्थाई हो जायेगे , संसार का कर्ण कर्ण एक और विरह में था तो दूजी ओर श्रेष्ठ आरव के आगमन हेतु सज्ज हो रहा था , स्वयं ही वैरागी कालपी उनके आगमन हेतु समस्त तानिज महल की सज्जा और स्वच्छता में लीन थे । बस आरव के पावन पग पुनः इस संसार में आए और हीनता और दुष्टता का नाश कर , सृजन कार्य को पुनः प्रारम्भ करे और अपने दिव्य अस्तित्व द्वारा संसार को आशीष दे ।

 • [ वामिनो में आकाश वाणी हो चुकी थी ~ वामिनो के अंतिम और श्रेष्ठ आरव का चयन संपन्न हो चुका है । वे अनादि काल तक श्रृजन और वामिनो का कल्याण कार्य हेतु सज्ज होगे । ]

 • इस आकाशवाणी के पश्चात तो प्रतिक्षा की काया ही बदल गई , अधोपति वामिनो के सर्जक का प्रवेश निकट ही था वामिनो में । उस श्रेष्ठ दिव्य अंश के आगमन समाचार से ही श्रृष्टि मन मुग्ध हो चली , हैं कोई अन्य उनसा जिनके आधीन एक लोक और जो वहन करेगे संसार की श्रेष्ठ सोरह शक्तियों को जिसके अंतर्गत निर्माण और विनाश दोनो ही संपन्न होगे ।


एक समय अवधि से सारे लिहास और मुख्य गण सज्ज थे किंतु आकाश वाणी के संबंध किसी को भी पूर्णतः ज्ञान नही था , कालपी ने योजना प्रासस्त की उस समय अवधि के विषय हेतु ।
उन्होंने एक परमेश्वर की स्तुति प्रारंभ की और प्रण लिया की मैं स्तुति , प्राथना में तब तक लिन रहूंगा जिस क्षण तक अनादि ईश्वर कोई संकेत न दे दे , आरव के विषय में । निरंतर तीन वर्षो तक कालपी ने अपना पूरा ध्यान श्रेष्ठ निर्माता की स्तुति में लगा दिए । जिसके अंतर्गत उन्होंने 800 पुस्तकें धर्म की , 6000 से अधिक ईश्वर के स्तुति और उसकी कृपा का स्वरूप बताया , तो 2500 ऐसी पुस्तकें जिसमे श्रेष्ठ ईश्वर द्वारा अन्य और वामिनो का निर्माण और उसकी लीला का वर्णन है । कालपी तो वो जिनसे श्रेष्ठ कभी रूष्ट हो ही नही सकता , उनकी एकाग्रता और भक्ति कर्म अन्य स्वरूप का ही है ।

कालपी आंखों को बंद करते है और फिर देखते है आरव अपना पहला पग बारीक सीर सागर में रखेगे , और वहा से वामिनों महल की ओर प्रस्थान करेंगे किंतु , वे एक चीज को देख कर आश्चर्य चकित हो गए की उनके पग तले अग्नि की लपटें थी , और सीर सागर में होते हुए भी वो तनिक झुलस रहे थे ।
कालपी ने आंखे आकसम्त खोली , और तेज वाणी में ईश्वर का गान किया , हे श्रेष्ठ रचैयता ये कैसी पीड़ा है , आरव तो वामीनो के केंद्र है और शक्ति पुंज फिर उनके पग तले ऐसी अग्नि सिखाएं ।

आरव आगमन के सुखद समाचार से अधिक कालपी हेतु उन अग्नि शिखाओ का जलना अधिक चिंतनीय था । वे अपने आराधना कक्ष से बाहर आए और उन्होंने सभी को आरव आगमन की शुभ कामना दी सभी को यह बतलाया की आरव चंद्र की द्वाविंशति ( 22 वी ) दिवस वामिनो में आगमित होगे । उनके आगमन मात्र से समग्र श्रृष्टि में पुनः धर्म और शुद्धता की स्थापना होगी । उनके दिव्य अवतार से समग्र जीव और संसार पुनः संपन्न होगी ।


सभी न केवल वामिनो महल की सज्जा अपितु उसके सभी मार्ग , धर्म स्थल और मुख्य स्थलों को स्वयं ही जायाम जल से धोया गया । सभी ओर श्वेत कनेल के पुष्पों से सज्जा की गई ताकि उनके पग उन्ही पर आए , पश्चात इसके सुर्ख गुलाब के पुष्पों से उच्च स्थानों पर सजाया गया । उनके आने से पूर्व ही सभी उनकी दिव्यता का अनुभव कर रहे थे और ज्यों ज्यों वह दिवस समीप आता सज्जा और सारी व्यवस्था स्तर उच्च स्तर पर बढ़ती जाती । सभी ने अपने अपने घरो को भी जायाम जल से धोया और सज्ज़ हो रहे थे आरव स्वरूप के दर्शन के लिए ।
पत्थर और कण कण स्वयं में ही आरव आगमन हेतु सज्ज हो रहे थे आज अष्टादश का दिन था नायुन ने लिहास स्वरूप धारण किया और मुख्य मंत्री मंडल महामंत्री निनाद , सेना संचारक आयात्रा , सेना पति आदित्य , मुख्य वैद्य ध्रुआंश , मुख्य सलाहकार सातत्य , धर्म गुरु अब्द , वित्त मंत्री तनवीस , सोलाह मुख्य गण , समीप तैतीस धर्म पूर्ण व्यक्ति को लेकर सीर सागर के समीप आकर ईश्वर की कीर्ति में लीन हो गए ताकि आरव आगमन के समय उनके अस्तित्व से वे सभी कल्याण की ओर अग्रिम हो ।

आज सूर्य का तेज़ भिन्न था उसकी लाली और गरिमा भी भिन्न थी , आज चंद्र द्वाविंशति ( 22वी ) का प्रारंभ हो रहा है ।
नायुन शिखर पर कानेल का पुष्प पूर्णतः सुसोभित हो गया , आयाह लहर वामिनो में प्रवेश कर गई , महल के मुख्य कक्ष के द्वार स्वतः ही खुल गए । सूर्योदय के क्षण सभी एक अनादि इश्वर की आराधना में लीन थे और उनका धन्यवाद भी कर रहे थे ।
एक तेज , आसाहनीय शीतल ऊर्जा पुंज सीर सागर की ओर से वामिनों में सुशोभित हुआ । सभी संकेत जान चुके थे और श्रेष्ठ के दर्शन हेतु आतुल हो गए किंतु किसी के इतना सामर्थ्य ही न था कि उनके दिव्य स्वरूप की ओर दृष्टि भी कर पाए । अज्ञात वाणी ने महल के सभी मंत्री , मुख्य और सामान्य को महल तत्काल स्थिति में छोड़ने का आदेश दिया । सभी महल के भीतर के सदस्य और कार्यरत दस और सैनिक महल के बाहर आ खड़े हुए ।अब वह श्रेष्ठ शक्तिपुंज महल के गर्भ में प्रवेश करते है । इतनी अधिक दिव्यता और तेज सारा संसार उनके आलौकिक दर्शन से पावन हो गया । जिन लिहासो को यह समाचार ज्ञात होता वे सभी मुख्य महल द्वार पर आ कर खड़े हो जाते। सभी ने उस अनादि ईश्वर की श्रेष्ठता का गान किया और एक साथ उसकी आराधना के लग गए । कही वृक्षों के नीचे एक समूह होता और श्रेष्ठ रचैता के विषय में बताते तो कही जल सरोवर के निकट समूह में उसकी कृपा के विषय में । कही एक दिशा में एक अनादि ईश्वर का धन्यवाद हो रहा था तो दूसरी ओर उसके सृजन का बखान । महल के अंतः भाग में श्रेष्ठ एक ईश्वर आशीष आरव की दिव्यता और बाह्य भाग में इस निर्माता के श्रेष्ठ भक्त जन की आराधना । क्षण मात्र से संसार दिव्य हो गया ।

महल के अंतः भाग में आरव दिव्य शक्ति पुंज से उनका सागुन अस्तित्व स्वरूप दृश्यमान होता है ।

आरव आशीष को सर झुकाए , पैरो को मोड़ कर बैठते है और श्रेष्ठ आदि ईश्वर और आरव के मध्य वार्तालाप प्रारंभ होती हैं ।
आरव ~ हे श्रेष्ठ सृजन कर्ता, मैं तो दास पद हेतु ही उचित था किंतु आपने मुझे राजस्व और दिव्य स्वरूप प्रदान कर अनूठा वरदान दिया अन्यथा पृथ्वी लोक पर मेरे कर्मों की सूची कुशल न थी ।
श्रेष्ठ पालनहाल सर्जक ~ मैं तुमसे और तुम्हारे कर्मों से प्रसन्न हूं। अपना कार्यभार का आदर स्वरूप में वहन करो।
तुमसे पूर्व भी इस लोक में कई आरव पद अधिकारी भेजे गए है किंतु कई बार परिणाम विचार से बड़े ही भिन्न थे । यह संसार जो पूर्णतः तुम्हारे आगमन हेतु सज्ज है और वर्षो से तुम्हारे लोक प्रवेश हेतु आराधना में लीन है । इन्ही में से वे लोग भी थे जिनके हाथों में आरव का रक्त शेष है , अभी उनके रंग भी सुर्ख नही हुए है ।
हे संघारक , मै आवश्य ही धर्म स्थापना की ओर सदैव अग्रसर रहूंगा और मेरा प्रयत्न प्रत्येक ही बुद्धि हीनता को उनके व्यक्तित्व से विरक्त करने का प्रयत्न रहेगा । और मैं उन्हें भी इस सृष्टि से समक्ष दंडित करूंगा जिनके द्वारा आरव की हत्या का महापाप संपन्न हुआ। ~ आरव

तुम्हारा प्रथम ध्येय धर्म स्थापना और मनोवृत्ति का परिवर्तन होना चाहिए आरव । अपनी इच्छा अनुसार किसी भी लोक की यात्रा पूर्ण कर सकते है किंतु ध्येय केवल जीव कल्याण ही हो । श्रेष्ठ आरव ।

श्रेष्ठ स्वामी और दास के मध्य कईं गुप्त वार्तालाप हुई । अनादि ईश्वर ने कई वरदान और कई अधिकार अपने आराधक को प्रदान किए ।
फिर एक किरण पुंज तानिज महल के ऊपर प्रज्वलित हुई ऐसा शक्ति पुंज जिससे सृष्टि का प्रत्येक भाग प्रकाशित हुआ । और फिर

आरव ने प्रथम निर्माण कार्य प्रारम्भ किया । उन्होंने अपने शरीर के भिन्न भिन्न अंगो से लिहास की रचना की । हृदय , मस्तिष्क, अंतः भाग से । उन्होंने श्रेष्ठ और कर्म फल निर्धारक ईश्वर के वरदान स्वर्णप श्रेष्ठ श्रृष्टि की सोलह शक्तियों को धारण किया और अपने दिव्य अवतार को कईं आलोकिकता से सभी की दृष्टि से ओझल कर दिया ताकि सामन्य भी उनके दर्शन कर सके अन्यथा उनकी दिव्यता के कारण सभी की आंखों को अक्समत बंद ही हो जाना था । आरव सामान्य स्वरूप धारण किए महल के गर्भ गुप्त ग्रह से लिहास की ओर जा रहे थे । उन्होंने द्वार को खुलने का आदेश दिया । सामान्य और अन्य सभी के समीप स्वयं पग आगे बढ़ाते हुए गए ।
द्वार को खुलता देख सभी प्रफुल्लित हो गए और आरव - आरव की ध्वनि भूमि गर्भ और आकाश के गूंजने लगी ।
आरव श्रेष्ठ के स्वरूप को देख कर सभी ईश्वर की स्तुति करते है । श्रेष्ठ अनादि ईश्वर आपकी लीला आरव स्वरूप में हमारे समक्ष दर्शित है कृपा आपका आशीष आरव स्वरूप में हमारे ऊपर सदैव रखे ।

आरव सभी को संबोधित करते है ~ प्रिय गणों , मै हूं आरव । श्रेष्ठ सर्जक द्वारा चयनित वामिनो का संचारक , रचैता और काल भी । मैं ही हुं अधोपति आरव । मेरे अधीन समग्र वामिनो और लिहास है , कई कार्य और उत्तादयी के संग सृजन का कार्य भी मेरा ही हैं । मैं इस लोक का अंतिम आरव हूं। अंतिम पद अधिकारी श्रेष्ठ अधो आरव । मेरे ही अधीन आए लोग उचित मार्ग पर है और मुझी से संसार का कल्याण कार्य संपन्न होगा । किसी भी जीव को मेरे स्वरूप , अधिकार , पद और शब्दों से कोई आपत्ती हो तो मेरे समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त करने का प्रयास करो ।

सभी मौन थे , एक लिहास आगे आए ," हम सभी आपके आगमन हेतु सदियों से प्रतीक्षा कर रहे थे आरव श्रेष्ठ, अब आप के प्रवेश पश्चात समस्त वामिनो में पुनः दिव्यता और अनुकूलता की स्थापना हुई है । इससे किसी भी जीव को आपत्ति कैसी ?

" तुम्हे कोई दुविधा नहीं , कालपी ? " आरव
आरव के वचन से लिहास और मंत्री मंडल का मुख कालपी की ओर विस्मय स्वरूप में अग्रिम हुआ ।

कालपी ने नहीं का संकेत किया और श्रेष्ठ आरव को नमन करके वे पुनः अपने स्वरूप में रूपांतरित हो गए । कई दिनों तक उत्साह और आरव दर्शन हेतु श्रृष्टि जीव आगमित होते और ईश्वर वरदान को देख संतुष्ट होते । वास्तव में आरव का स्वरूप समस्त श्रृष्टि के लिए ईश्वर वरदान ही है कदापि उनकी जीवनी प्रत्येक से परय । आरव अस्तित्व को , उसकी रचना को , उनके संघर्ष को , उनके प्रत्येक पग को , राग से वैराग के जीवन के सत्य को किसी को तनिक भी भान नहीं। श्रेष्ठ आरव वास्तव में तो स्वयं ही सेवक है उस ईश्वर के , वे स्वयं इच्छा व्यक्त करते है अपने स्वामी से , कभी कभी उनका हठी स्वरूप भी हमें दिखता है तो कभी कभी वे शून्य समान व्यवहार करते है ।


रात्रि का चौथा पहर , अधोपती ईश्वर की श्रद्धा में लीन थी । नायुंन कक्ष में प्रवेश करते है , आरव ने आराधना संपन्न की , और फिर दृष्टि नायुंन की ओर करते हुए प्रश्न करते है , कहिए " वामिनो को स्थिर रखने वाले , माया और राज को स्वयं के अंधेर भाग के रखने वाले , आपके प्रस्थान का कोई विशेष कारण ? "
नायुन ~ हे देव , कृपा मेरा भ्रमण करे । मेरे अधीन कई उपाधियां, शक्तियां और उत्तरदायित्व है । आपके प्रस्थान पश्चात् मेरी भी समस्याओं का समधान आवश्यक है । आरव श्रेष्ठ ।
आरव , नायुन संग महल से अदृश्य होते है और वामिनो पहाड़ी के शिखर पर आते है । श्वेत कनेल का पुष्प पूर्णतः विकास कर चुका था ।
नायुन ~ श्रेष्ठ , यह पुष्प आपके आगमन की भविष्यवाणी के समय उपजा था और आपके आगमन के साथ विकसित होना प्रारंभ हुआ , और वर्तमान में आपकी उपस्थिति से यह पूर्णतः विकसित हो गया । कई ऐसे रहस्य के द्वार भी खुल गए जिनके अस्तित्व का ज्ञान तनिक भी किसी को नही था ।
आरव नायुन के अस्तित्व पर अपने हाथो को रखते है और दिव्यता अनुकूल उनसे कहते है । हे रहस्यों को धारण करने वाले नायून पहाड़ी , भविष्य में आपके अस्तित्व और आपके रहस्यों की वामिनो और मुझे बहुत आवश्यता है । कई तुम्हे वरदान देता हु , मै स्वयं तुम्हारे अंतः भाग में अज्ञात स्वरूप भविष्य में निश्चित अवधि तक वास करूंगा और मेरी अनुपस्थिति में जिस प्रकार तुम वामिनो को स्थाई बनाने में सहायक हो उसी प्रकार इस श्रृष्टि के संतुलन में भी अपना योगदान देना ।

आवश्य आराध्य , प्रत्येक विपदा में आप मुझे मेरे कर्तव्य से अग्रिम ही पाएंगे । कारण की कोई ऐसा समय नही जब मैं आरव हीन रहा । मैंने अपने समीप तृत्य आरव के हाथों का तू काला धागा रखा है । ~ नायुन
" क्या उन्होंने मेरे विषय में कुछ चर्चा नही कि ? " आरव
उन्हें आपके यह आने के बारे में ज्ञात था इसीलिए उन्होंने मुझसे कहा की यह धागा में आपकी कलाई पर बांध दूर । ~ नायून

प्रिय , वे सभी जो मुझसे पूर्व वामिनो में आरव पद को धारण करके अपना कार्य का निर्वाहन कर रहे थे वे सभी मेरे ही अंश थे और मेरे आगमन हेतु ही इस पद और संसार को मेरे अनुकूल करने में कार्यरत थे । आरव

पश्चात आरव और नायून के मध्य कईं बाते संपन्न हुई । कई रहस्यों का सांझा हुआ तो कई समस्याओं पर चर्चा । अब वामिनो पूर्णतः स्थापित था , और सज्ज था आरव पद हेतु । आरव का विशेष मुकुट धारण की प्रक्रिया तो स्वयं श्रेष्ठ ईश्वर ने संपन्न किया किंतु सामान्य स्वरूप में दूसरे दिन अधोपति का मुकुट समारोह था । श्रेष्ठ और नायुंन की बाते पुरी हुई और पहले पहर के प्रारंभ में आरव महल में प्रवेश में प्रवेश करते है ।

आरव श्रेष्ठ की जय , वामिनो अधोपति की जय की ध्वनि प्रकृति में पूर्णतः विस्तरित हो रही थी । श्रेष्ठ की शक्तियों का स्थापना संपन्न हो चुकी थी और अनादि ईश्वर के वरदान स्वरूप श्रेष्ठ के देवीय स्वरूप से समस्त विश्व और जीव कल्याण का प्रारंभ हो चुका था । आरव , श्रेष्ठ आरव कुछ ही समय के पश्चात वामिनो को स्वयं के दिव्य अवतार से सम्पूर्ण करने वाले थे ।


वास्तव में प्रत्येक को केवल लक्ष्य प्राप्त के पश्चात का श्रेष्ठ परिणाम अधिक प्रिय लगता है किंतु सभी वांछित होते हैं कर्म मार्ग से । आरव श्रेष्ठ का पद , उनकी शक्तियां , उनके अधिकार , उनका प्रारंभ , उनकी स्तुति , उनका अलौकिक स्थान , उनका अनभिज्ञ स्वरुप , परमात्मा का आशीष , द्वित्य लोक से वामिनो की विशेष यात्रा , देवीय स्वरूप , महल , सत्ता और सेवक । सबने तो केवल आरव को देखा किंतु विश्व अज्ञात थे उनके मार्ग से , उनके तप और त्याग से , परीक्षाओं से तो , सत्य से ।

वास्तविकता में आरव स्वयं ही सामान्य थे और सही स्वरुप में तो बस ईश्वर आशीष ही था उनके इस असम्भव लीला को धारण करने में । उनकी प्रतीक्षा और वैराग का चयन सरल नहीं था , किंतु जब प्रेम से बुने हुए रेशम से संबन्ध, हमारे जीवन में विपदा और अमर्यादा स्वरूप केवल विराह, भ्रम छोड़ दे तो अर्थ उद्देश्य ही निरर्थक हो जाता है ।

सभा और सम्पूर्ण लिहास को अपनी रचना को आरव श्रेष्ठ ने ऐसे समय दिया , ऐसी मोहकता से पूर्ण थे श्रेष्ठ । दिवस के प्रारंभ से ही ऐसा समय सज्ज रूप से वे उपस्थित हुए , सारे आयोजन में सम्पूर्ण इच्छा से चरण तक ले गए । उन्होंने सभी से संवादन किया ।

आरव - मेरा इच्छा और अनुकूलता यह प्रत्येक के लिए आदेश के समान है । एक ईश्वर को साक्षी मान कर मै इस लोक का संचालन कार्य के भार को स्वीकारता हु ।


( आरव में भांति उसके शब्द और भावना पूर्णतः ईश्वर को ही सज्ज थे , और उनकी बातो से कई लोगो का हृदय परिवर्तन हुआ । मुख्य मंत्री मंडल , मुख्य और बड़े पद अधिकारी सभी यह प्रस्तुत थे , सभी आरव की ओर अपना कार्य भार का निर्णायक स्वीकार किया और वामिनो को एक दिशा प्रदान की । मंत्रियों ने आवश्यकता और हीनता के विषय पर बात की , चर्चा विमर्श रहा । सभी के उत्साह में सम्मिलित होने के पश्चात उसकी गरिमा शिखर पर थी । आयोजन भव्य था , पूर्ण था । )

भाग्य विधाता ने सदैव प्रत्येक की परीक्षा ली है और उसके पश्चात ही उसे उसका कर्म अनुकूल कर्मफल , अब बारी थी लिहास की । वामिनो और उसकी भूमि के रक्त शोषण की , उसके हृदय की मलीनता की । वामिनों की कई ऐसी कड़ियां शेष है जिसका अर्थ न किसी को ज्ञात है , और नाही उसकी अनुकूलता ।

अंत में सभी प्रस्तुत हुए उस पवित्र पुस्तक के निकट और प्रण लिए कि सदैव ही अधोपती की और सत्ता के अनुकूल रहेंगे।



( वामिनो अब स्थापित हो चुका था, शांति और समृद्धि ने एस्वर्य से लोक में पग रखे । किंतु शेष था एक और जन्म एक और अंश । जिसके ध्येय की और लक्ष्य का ज्ञान संपूर्णतः किसी को नही । )

तिसाम ( लोक मर्यादा रक्षक ) आरव से मिलने आते है , और किसी विपदा पर विमर्श करते हैं। तिसाम बहुत ही शक्ति शाली और रण भूमि के कुशल युद्ध थे । किंतु जब वे आरव श्रेष्ठ से विमर्श कर रहे थे तब उनके माथे पर व्याकुलता और संघिन्न लकीरें थी । आरव ने उनकी बाते सुनी और उन्हे सांत्वना देते हुए मुख्य द्वार तक आए ।

आरव श्रेष्ठ - चंद्र की सातवीं तिथि आज से दो दिवस पश्चात सभी सेवको और सीमा रक्षकों संग आप महल में प्रस्थान लाए, एक छोटा सा सम्मेलन है जिसमे आपकी उपस्थिति अति आवश्यक है तिसाम।
आवश्य ही देव , किंतु मर्यादा सैन्य यधपी यह उपस्थित रहेंगे तो सीमा ? - तिसाम
आरव - कण कण में श्रेष्ठ ईश्वर का वास है , और प्रत्येक कर्म नियति अनुसार ही कार्यरत है। तुम सभा में प्रत्येक संग उपस्थित रहोगे, यह मेरा आदेश है ।

साधारण से रात्रि के भोजन के लिए स्वयं आरव ने अपनी देख रेख में भोजन और अन्य कार्यों को देखा । प्रत्येक आरव अंशो को उन्होंने किसी कार्य प्रणाणी के अंतर्गत अन्य लोक और विशेष कार्य के लिए भेजा । समय अब बस पहर का ही था क्युकी संध्या काल में तिसाम के साथ अन्य सीमा सैन्य सहित प्रत्येक मुख मंत्री और माया यहां उपस्थित होगी । इस उपलक्ष्य का तो किसी को अंदेशा भी नही था कारण की यह केवल मुख्य मंत्री मंडल और पदाधिकारी के लिए था । सभी क्रमानुसार महल में प्रवेश कर रहे थे ।

महल की भव्यता यू थी की आरव ने नैन जल से भूमि को शीतलता प्रदान की, केसुओ से दीवारों और स्तंभों की पुष्प, लता श्रृंगार, मार्ग में पग के आचलित सटीकता, भोजन में शक्तियों के पुंज , आरव के मुख पर तेज भी था तो अनंत अर्थ भी । महल के मुख्य भाग को सज्जा उन्होंने किसी अन्य स्तर पर ही की , प्रत्येक के लिए मुख्य उपहार और उपाधि । दासों सहित ऐसी आयोजन की बाह्य किसी अन्य के लिए उसका विस्तारण करना असमर्थ सा। किंतु कल्पना तो असीमित है , और उसके अधीन शब्द तुच्छ, सदैव ही शब्दों की मर्यादा और सुंदरता यह हमें असमर्थ कर देती है विस्तरण से ।

अब प्रारंब होने को था भोजन , सभी मंत्री और मुख्य अतिथि उपस्थित हो चुके थे ।
आरव - सभी स्मरण, हमारे जीवन के पश्चात अनादि ईश्वर हमे पुनः जीवन प्रदान करेंगे। हमसे हमारे कर्मो का प्रश्न करेगे और अपने आशीष स्वरूप उचित दंड या उपाधि भी देंगे । इसिलीए उससे भयभीत रहो जो कभी कुछ नही भूलता ।

आरव ने बात को पूर्ण की भोजन प्रारंभ ही होना था , एक रस्सी आई और आरव के गले को लपेट कर उसने उन्हें नीचे गिराया , उनके मुख की लाली शेष थी । द्वितीय लोक का द्वार खुल चुका था और सीमा रक्षकों के न होने के कारण दैत्य राज और दैत्य सेना महल में प्रवेश कर चुकी थी ।

दैत्य राज ( दज्जैन ) का प्रवेश संभव हो गया इस लोक में , सम्पूर्ण सेना के साथ । श्रेष्ठ सभा में उपस्थित लोक मंत्री और विशिष्ट के समक्ष उन सभी का ऐसी रौद्र क्रिया ।

दज्जैन ने अपनी माया को संभाला और रस्सी को बल देकर , आरव को आसन से भूमि पर लाने का प्रयास किया !
अन्य लोक के भांति ही इस लोक में भी मेरी मनसा और कार्य प्रणाणि को भंग करने का आनंद। संभव ही नहीं मेरे पगो को , दुष्कर्मों को कोई रोक सके ।


आरव श्रेष्ठ ने सभी की ओर देखा और फिर कहा - क्या अतिरिक्त कोई अन्य आरव है , तुम्हारे समीप । क्या मैं वो नही जिसकी प्रतीक्षा तुम सभी ने कई सदियों से की थी !

सभा बड़ी थी किंतु सभी छोटे-छोटे थे अपने श्रेष्ठ की ऐसी दशा पच्छात भी मौन! तिसाम आगे बढ़े और उन्होंने ऊंचे स्वर में चेतावानी दी । मैं आरव श्रेष्ठ के अनुकूल हुं और उन्ही के कारण है मेरा अस्तित्व ।

उनके एक स्वर ने कईयों के हृदय मन को जागृत किया !




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