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अब लौट चलूं-2
पार्ट-2 में पढ़िए

और वो कमरे के दरवाजे हल्के से बंद करके चला गया था... मै भी सीधे बेड पर जा कर लेट गई थी...मेरा शरीर शांत था पर दिल और दिमाग़ बेचैन थे... आखिर मनु कहा हैं... क्या वो कहीं और हैं या फिर वो मेरे सामने आने से क्यों बच रहें हैं...बचना तो मुझें चाहिए था... में सोच ही रहीं थी कि अंदर से कुछ गिरने की आवाज़ आई तो मै फ़ौरन उठ कर उस और भागी थी किचन के पास पहुंची तो देखा अभिषेक नीचे बैठ कर खाना खा रहा था... उसे मेरे आने की आहट को पहचान लिया था..

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पार्ट -2

कुछ नहीं संध्या जी चूहों ने उत्पात मचा रखा हैं आप जा कर सो जाए..

मेरे खाते में फिर एक गलती जुड़ चुकी थी मै चाह कर भी अभिषेक को अपने हाँथो से खाना नहीं खिला पा रहीं थी..

आज अभिषेक मुझसे भी बहुत आगे निकल गया... यहीं सोचते सोचते मैने अपने कदम कमरे की तरफ मोड़ लिए...

और में फिर हारी हुई सी बेड पर आकर लेट गई थी..

मन में काफ़ी जद्दोजहद थी कभी मन करता के क्यों ना गुम नाम ही हो जाऊं... किसी को कुछ भी ना पता चले...

लेकिन कैसे...? बस एकबार मनु को जी भर के देख लूं... बस फिर कभी किसी के सामने नहीं आउंगी.... लेकिन उसे देखने भर से क्या मुझें सुकून मिलेगा...? शायद ये भी तो हो सकता हैं कि वो मुझें एकबार देखें और फिर मोहब्बत जाग जाए... वो तो मुझसे प्यार करता था... मेरे लिए तो उसने क्या नहीं किया इतने सालों तक यहां मेरी ही यादों के सहारे ही तो रहा हैं... भले अभी इनका मन मुझसे खफ़ा हैं... मुझें पक्का यकीन हैं मनु मुझें देख फिर मेरा हाथ थाम लेगा रवि को भी अपनी गलती का एहसास होगा कि उसने किसी के प्यार को छीन कर कितना बड़ा पाप किया हैं....

तभी फोन की घंटी घन घना उठी थी...

हैल्लो.... हां पापा... प्रणाम पापा...

जी पापा.... जी.... हां... हां.... पापा... ओके...

ठीक हैं.... जी मै कल उनको लेकर बेंगलोर पहुँचता हूं पापा.... जी सुबह जल्दी निकल जाऊँगा....

बेंगलोर...? आखिर बेंगलोर क्यों...? मुझें कुछ समझ नहीं आ रहा था... आखिर बेंगलोर क्यों वापस जाया जा रहा हैं अगर मनु को वही मिलना ही था तो फिर मै यहां क्यों आई...? कहीं रवि तो मनु के कॉन्टेक्ट में तो नहीं हैं... रवि ऐसा नहीं कर सकता... ये ज़रूर मनु की ही चाल होंगी... बदले की भवना से उसने ज़रूर कोई ना कोई चाल चली होंगी मुझें और रवि को निचा दिखाने के लिए... शायद मैने यहां आकर बहुत बड़ी गलती कर दी... मुझें यहां नहीं आना चाहिए था...

तभी अभिषेक आया था..

आप अभी तक जाग रहीं हैं..? हमें सुबह जल्दी यहां से निकलना हैं...

क्यों...? कहा के लिए निकलना हैं?

जब जाएंगे तो पता चल जाएगा..

मै यहां से कही नहीं जाउंगी.. अपने पिता से कहो वो यही आजाये...

मिलने की ललक आपको थी उन्हें नहीं... आपको वही चलना होगा...

मैने कहा ना मै यहां से कही नहीं जाउंगी....

ओके...

इतना कह कर अभिषेक वहां से चला गया था...

बेंगलौर... ! जिसके लिए मैने अपनी सारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी आज मेरा अपना कुछ भी नहीं रहा...मैने बहुत बड़ी गलती की मुझें यहां नहीं आना चाहिए था... मुझें चुप चाप यहां से भी चले जाना चाहिए अब कोई मेरी कदर करने बाला नहीं हैं... जिसने प्यार किया था मैं उसकी ना हो सकी और जिसको मैने चाहा वो भी मेरा ना हो सका.... मैं यही सोचते सोचते वहां से जानें को उठी थी और मेन गेट तक पहुंची तो गेट में अंदर से ताला लगा हुआ था... क्या करू अभिषेक से ताला खोलने का कहूँ... मेरे कदम यकायक उसके कमरे की तरफ बढ़ गए कमरे में मध्यम रौशनी थी अभिषेक एक और टेबल पर बैठा शायद कुछ काम कर रहा था... शायद वो मेरे आने की आहट को पहचान गया था..

क्या बात हैं नींद नहीं आ रहीं आपको...?

अभिषेक मुझें जाना हैं...

लेकिन क्यों...? फिर आप आई किस लिए थी...?


अब वो मैं नहीं बता सकती मुझें अभी और इसी वक़्त जाना हैं...

अभिषेक अपनी जगह से उठा था और उसने बड़ी लाइट जलाते हुए मेरे पास आया था...

मैं मनु नहीं हूं अभिषेक हूं जो मैं अपने पापा की तरह आपके पीछे हाथ पैर जोड़ता रहूं और आप अपनी हर ज़िद अपनी मन मानी से करती रहें... फिर क्यों आई आप यहां...? आपको क्या लगता हैं सब वेबकूफ...