...

19 views

एक शैतानी रात....
कभी कभी कुछ घटनाएं संयोग होती हैं....
हर रात की तरह उस रात भी रवि के घर वैवाहिक कलैश चल रहे थे। अपनी शादी से नाखुश रवि अपनी बीवी के ताने सुन सुन के थक चुका था। वो रोज़ रोज़ उनही लड़ाईयों में नहीं उलझना चाहता था इसलिए उसने अलग होने का फैसला किया। 11 सितंबर की रात को लगभग 11:45 बजे वो घर छोड़ के निकल गया ।उसके घर में उसकी बीवी और उसका भाई रह गया था। किसी ने उसे जाने से नहीं रोका तो उसने भी वहाँ रूकना जरूरी नहीं समझा। साधारण कपड़ों में रवि कंधे पर काला बस्ता टांगे हुए चलता रहा। रवि एक साधारण सा टीचर था इसलिए उसे ज्यादा लोग भी नहीं जानते थे। उसके मां-बाप दूर किसी गांव में रहते थे। रवि चलते चलते अपने घर से बहुत दूर जा बैठा था । दूर-दूर तक कोई ऑटो, कोई गाड़ी कोई वाहन नहीं मिला दूर एक चाय की दुकान पर जा बैठा। वह काफी थक चुका था। वहां जाकर उसने चाय वाले भैया से पूछा- भैया यहां से रायपुर के लिए बस कब मिलेगी।
चाय वाले भैया ने हसते से बोला- अरे भैया!! कहां से आए हो ?यहां के नहीं हो का?? यहां पर रात में बस नहीं चलती ना कोई और वाहन चलता है 10:00 बजे के बाद सब बंद रहता है। वह तो आज मैं लेट हो गया नहीं तो मैं जल्दी ही निकल जाता हूं ।
यह कहकर वह अपनी दुकान बंद करने लगा। रवि बहुत चिंता में आ गया कि अब वह कहां जाए ?
उसने दोबारा पूछा भैया- यहां कोई होटल मिलेगा क्या रहने के लिए ।
चाय वाले ने रवि की तरफ देखा और कहने लगा- चलो आज आप मेरे घर पर रह लेना । आपको कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि मेरी बीवी भी नहीं है वह अपने मायके गई हुई है ।
यह सुन कर रवि बोला- नहीं भैया! मैं आपको किसी तरह की परेशानी नहीं देना चाहता।
चाय वाले ने मुस्कुरा कर कहा- परेशानी कैसी? नए लगते हो ,बहुत ही साधारण व्यक्ति ,बहुत ही मासूम हो आप तो मेरे छोटे भाई की तरह है यह कहकर चाय वाले ने रवि को अपने घर चलने के लिए मना लिया।
सुनसान सड़क अंधेरी रात, राहे ऐसी जहां परिंदा भी ना भटकता हो.... चारों तरफ से सिर्फ एक ही आवाज़ सनन..ननन.. नननननननन सनन..ननननन.. ननननननन.. हवाओं के बहने की । ये सफर बहुत ही डरावना सा लग रहा था। रवि ने चाय वाले से कहा और कितनी दूर है आपका घर? यह सड़क तो काफी सुनसान है ...क्या यहाँ कोई आता जाता नहीं है?? रवि को कुछ अजीब सा लगा चायवाला पूरे सफर के दौरान बात ही नहीं कर रहा था रवि के पूछने के बाद भी उसने कोई जवाब नहीं दिया। रवि अंदर ही अंदर सहम रहा था। उसके मन में कई तरह के सवाल को उमङने लगे , रवि सोचने लगा कहीं उसने गलत तो नहीं करा इतनी रात में घर छोड़कर , एक अनजान व्यक्ति के साथ उसे ऐसे आना भा नहीं रहा था। चाय वाले का व्यवहार पूरी तरह से बदल चुका था। रवि ने संकोच करते हुए दुबारा चाय वाले से पूछा -भैया और कितना दूर चलना है। चाय वाले नहीं फिर उसे कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप चलता रहा। रवि इस बात से काफी भयभीत हो चुका था। रवि उसके संग सही नहीं महसूस कर रहा था इसलिए रवि ने वही रुक जाना बेहतर समझा। रवि तो रुक गया लेकिन चाय वाला फिर भी चलता रहा बिना कुछ कहे बिना कुछ टोके बिना मोड़े। रवि को बड़ा अटपटा लगा और उसने पीछे से ही चाय वाले को आवाज दी- अरे भैया सुनते हो¡¡¡ अरे यह क्या चाय वाला कोई बात का जवाब नहीं दे रहा रवि बड़ा आश्चर्य में आ गया रवि ने वहां से वापस घर लौटना ही सही समझा। रवि वहां से चुपचाप पीछे की तरफ बढ़ने लगा थोड़ी दूर अकेले चलने के बाद रवि को एक इंसान अपनी साइकिल ठीक करते हुए दिखा .. रवि उसके पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछने लगा -अरे भैया यहां से कोई गाड़ी मिलेगी क्या?? जैसे ही वह इंसान पलटा वह काफी भयभीत हो गया ,उसके गले से कोई आवाज़ नहीं निकली पर वह काफी सहम चुका था। रवि वहां से बिना कुछ कहे पीछे की तरफ भागने लगा। रवि को अपनी आंखों देखी चीज पर विश्वास ही नहीं हो रहा था । वह इंसान और कोई नहीं वह चाय वाला ही था, उसके चेहरे पर बड़े बड़े दो घाव के निशान भी थे, जो उसे पहले नहीं दिखे थे। रवि काफी डर चुका था मानो उसके पैर थम ही नहीं रहे थे।
अभी काफी थक चुका था। रवि भागते भागते एक मंदिर के सामने जाकर रुका और बेहोश हो गया। सुबह होश में आने के बाद रवि बहुत डरा हुआ था और वहां से चल पड़ा मंदिर से नीचे उतर कर ही उसे वहां का एक पंडित मिला रवि ने उनसे हिचकी चाहते हुए पंडित जी से पूछा-- पंडित जी मैं अपना घर का रास्ता भूल चुका हूं ,मेरे संग रात से बड़ी भयभीत घटनाएं हो रही हैं। पंडित जी रवि को ऊपर मंदिर में लेकर गए और रवि से रात की पूरी घटना विस्तार में पूछी , रवि काफी डरा हुआ था और वह धीरे-धीरे पंडित जी को रात की घटना के बारे में बताने लगा । पंडित जी ने उसे बताया यहां कोई बहुत दूर तक चाय का टपरा नहीं है , पीछे की तरफ जहां का वह बता रहा है वहां एक श्मशान घाट है। पंडित जी समझ गए थे कि रात रवि का सामना किसी भटकते साऐ से हुआ है। पंडित जी ने रवि को मंदिर का प्रसाद खिलाते हुए बोला बालक अब तुम ठीक हो किसी को सूचित कर यहां बुलाकर उसके साथ निकल जाओ रवि ने वही नीचे फोन बूथ पर जाकर अपने साले को फोन किया और वह मंदिर पर आने के लिए तुरंत बोला। रवि के साले के आने के बाद रवि वहां से उसके साथ निकल गया रवि उसी रास्ते से होता हुआ निकला जिस रास्ते पर वह रात को आया था उन रास्तों पर रात की तरह भी कोई नहीं था चाय वाले की दुकान की जगह सच में कब्रिस्तान था जिस पर लिखा हुआ था अंदर जाना सख्त मना है रवि को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था वे इस बारे में किसी को बता भी नहीं सकता था क्योंकि लोग उसकी बात पर विश्वास नहीं करते और उसको पागल समझते ।रवि ने घर पहुंचकर नहा कर सीधे भगवान को धन्यवाद करते हुए बोला "प्रभु ,मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया ,आज के बाद में कभी भी गलत समय घर से नहीं निकलूंगा" और रवि चुपचाप जाकर अपने कमरे में सो गया उस रात के बाद से रवि बिल्कुल बदल गया था । अब रवि शाम को घर आकर अपनी बीवी के साथ समय व्यतीत करता और उसे कोई भी शिकायत और लड़ाई का मौका नहीं देता था लेकिन आज तक रवि उस रात को कभी नहीं भूला और वह चेहरा आज भी रवि के सपने में हमेशा आता है।
© Dr. Rekha Bhardwaj