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"आकर्षण"
राजकुमारी नैनावती का विवाह महराज देवदत्त के साथ बहुत धूमधाम से हुआ और वो उन्हें अपनी जीवनसंगिनी बनाकर अपने राज्य सोनपुर में ले आएं। नैनावती बेहद शांत और मृदुभाषी थीं और अपने नाम के अनुरूप आकर्षक नयन थे उनके। महराज अपनी रानी से बहुत स्नेह करते थे।
शनै: शनै: समय पंख लगा कर उड़ने लगा‌ और नैनावती ने एक वर्ष पश्चात एक कन्या को जन्म दिया। महराज देवदत्त थोड़े रूष्ठ हो गये क्योंकि उन्हें पुत्र की आशा थी। फिर दो वर्ष पश्चात उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। महराज बेहद प्रसन्न हुए और पूरे राज्य में उन्होंने मिठाइयां वितरण कराएं।
एक दिन नैनावती ने महराज से मायके जाने का आग्रह किया जिसे महराज ने अस्वीकार कर दिया।उनका कहना था कि विवाह पश्चात अब यही उनका घर है और उन्हें कहीं और जानें की आवश्यकता नहीं। नैनावती को बहुत दुख हुआ मगर , महराज के आगे वो खुद को बहुत असहाय महसूस करती थी। धीरे-धीरे समय और व्यतीत हुआ और महारानी के पुत्र चित्रंमवद अब पांच वर्ष के हो गए थे तो महराज ने उनकी शिक्षाओं का प्रबंध महल के अंदर ही कर दिया था। उन्हें अलग अलग विषयों में अलग अलग गुरु आते थे शिक्षित करने। ऐसे ही एक दिन महराज ने चित्रंमवद के गायन के लिए एक गुरु नियुक्त किया महेश को।
महेश एक अति निर्धन परिवार से था मगर उसके गले में जैसे सरस्वती का वास था,वो बहुत मधुर गाया करता था। चित्रंमवद जब गायन सीखा करते थे तो नैनावती भी वही बैठकर सब देखा करती थी। महेश बेहद शांत और सौम्य व्यवहार व्यक्ति थे। न जाने कैसे महारानी के मन में कैसे महेश के लिए आकर्षण पैदा हो गया और वो सुध बुध भुला कर बस महेश के गायन में तल्लीन रहतीं, उसे ऐसा प्रतीत होता मानों महेश कृष्ण जी हो और वो उनकी राधा।
महराज के नैनावती के प्रति इतने रूखे स्वभाव के कारण सम्भवतः नैनावती के मन में महेश के प्रति ये आकर्षण का बीज अंकुरित हुआ था।
दूसरी ओर महराज इन सब बातों से अनभिज्ञ थे।
एक बार महारानी को तेज ज्वर ने घेर लिया दिन प्रतिदिन उनका ज्वर बढ़ता ही जा रहा था। महराज अत्यधिक चिंतित थे, तभी महल‌ मे एक साधु महराज पधारे। महारानी को देखते ही उनकी समस्त दशा वो जान गये और महराज को जल पट्टी अपने हाथों से करने को कहा। महराज बेशक अल्पभाषी और रूखे स्वभाव के थे परन्तु महारानी से बहुत प्रेम करते थे।वो निरंतर महारानी के माथे पर जल पट्टी करते रहे,और सुबह तक महारानी का ज्वर उतर गया, आंखें खोलते ही जब महारानी ने महराज को अपने सामने पाया तो बहुत प्रसन्न हुईं और‌ भावातिरेक
में नैनावती महराज के आलिंगन में बंध गईं।
महराज की आंखों से अश्रु की धारा बह रही थी क्योंकि उन्होंने शायद महारानी के जीवित रहने की उम्मीद छोड़ दी थी,इधर महारानी ने भी ईश्वर से क्षमा मांगी कि उसने पति के रहते एक परपुरुष के प्रति अपने मन में आकर्षण रखा।
एक सप्ताह पश्चात महराज महारानी को खुद मायके में कुछ दिनों के लिए छोड़ने गए। (समाप्त)
लेखन समय-6.38
दिनांक 28.4.24 (शुक्रवार)


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