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एक सफ़र अनजाना सा (प्रकाशित अक्टूबर 2022) Episode 11
"A story (Novel) which has a flavor of adventure, mystery and love."

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Episode 11

आसमान में बादल गहराते जा रहे थे। सर्दी और कोहरे में मानों आपसी प्रतिस्पर्धा का माहौल था। करण अपनी पैकिंग कर वापस जाने को तैयार था। लेकिन अभी तक प्रताप सिंह से उसकी कोई बातचीत नहीं हो पायी थी। सायरा के बारे में बात किए बिना जाना उसके लिए बिल्कुल भी सम्भव नहीं था। अब समस्या यह थी कि वह किस तरह बात शुरु करे? कैसे बताए वह उन्हें कि वह सायरा को पसन्द करता है! इसी उधेड़-बुन को अपने दिमाग़ में लिए वह हवेली के टेरेस पर खड़ा था। तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।

“बड़े परेशान लग रहे हो यंगमैन! क्या बात है?” प्रताप सिंह फिरसे अपनी फेवरेट सिगार के साथ थे।
“जी! कुछ ख़ास नहीं,”
“किसी बात को लेकर परेशान हो? शायद वापस जाने के लिए?”
“जी ऐसी बात नहीं है, यह घर भी तो मेरे अपने घर जैसा ही है,”
“घर जैसा नहीं, आपका अपना घर ही है,”
“रिश्ते और लोगों की कद्र करना तो कोई आपसे सीखे। आप एक अच्छे मित्र हैं, आपसे मिलकर इतना तो मैं जान ही गया हूँ। जिस रूप में भी आपको देखता हूँ आप परफेक्ट ही नज़र आते हैं!” करण बोला।
“यह जरूरी नहीं है कि व्यक्त्ति जैसा दिखाई देता है वैसा भीतर से भी हो!" प्रताप सिंह ने करण के चेहरे को ध्यान से देखते हुए कहा, "यह दुनिया एक रंगमंच है, करण। यहाँ सभी को अभिनय करना ही पड़ता है, चाहे उनके दिलों में कितना भी दर्द छीपा हो!”
“मैं कुछ समझा नहीं, सर!”
“तक़दीर के सामने किसी का वश नहीं चलता मिस्टर करण! लाख कोशिशों के बावज़ूद भी जिम्मेदारी और फ़र्ज निभाने में कहीं-न-कहीं कमी रह ही जाती है!” प्रताप सिंह की आवाज़ में कहीं तकलीफ़-सी थी।
“जी?” करण ने सवालों भारी निगाहों से प्रताप सिंह की तरफ़ देखा।
प्रताप सिंह ने सिगार में एक कश लगाते हुए कोहरे में गुमसुम-सी उस झील को देखने की कोशिश की।
“सायरा बड़े ही लाड़-प्यार में पली है। उसकी इच्छा हमने उसके सोचने से पहले पूरी की है। लेकिन अब," वे थोड़ा रुककर फिर बोले, "जब भी हम उसकी आँखों में देखते हैं तो एक सूनापन और अधूरापन दिखाई पड़ता है। उसकी ज़िंदगी एक अधूरी किताब बनकर रह गई है!”

प्रताप सिंह की आवाज़ में दर्द था और करण जानता था कि प्रताप सिंह किस बारे में बात कर रहे हैं। कुछ कहने की बजाय उसने उन्हें सुनना पसन्द किया। दूर क्षितिज में देखते हुए वह लगातार कहते जा रहे थे।

“हमने अपनी राजकुमारी के लिए एक राजकुमार तलाश किया था, और बड़े धूमधाम से उसके साथ अपनी सायरा को विदा किया था। उसे विदा करके मैं और इन्दु बहुत ही ख़ुश थे। हर माँ-बाप आख़िर इस पल का ही तो इंतज़ार किया करते हैं। कुछ घण्टों बाद ही ख़बर मिली कि दुल्हन की कार का रास्ते में एक्सीडेंट हो गया है। वह ख़बर बम की तरह हमारे सिर के ऊपर फटी थी!” प्रताप सिंह ने बताया।
करण सुनकर हैरान था, “उसका एक्सीडेंट शादी वाले दिन ही हुआ था?”
“हाँ! पूरे तीन दिनों तक अस्पताल में सम्राट मौत से लड़ता रहा, और इस लड़ाई के अंत में ज़िंदगी हार गई। सम्राट ने अपनी जान देकर हमारी सायरा को बचाया था। उस दुखद घटना का सारा इल्ज़ाम उसके ससुराल वालों ने सायरा के सिर मढ़ दिया। बिना ससुराल गए ही सायरा एक विधवा भी हो गयी। सालों-साल हम उसके ससुराल वालों के न जाने कैसे-कैसे ताने सुनते रहे! अब आप ही बताओ करण! उस हादसे में हमारी सायरा की कहाँ गलती है?” प्रताप सिंह लगभग रो ही पड़े।

करण ने सहानुभूति के साथ प्रताप सिंह के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा, “वह बीती बात हो चुकी है। उस दुखद हादसे को याद करने का क्या फ़ायदा?”
“करण! उस हादसे ने हमारी तमाम खुशियाँ छीन ली। तब से सायरा एक़दम बेजान और उजड़ी बगिया-सी बनकर रह गई है। हँसना-खेलना तो जैसे वह भूल ही गई थी!” कहकर उन्होंने एक गहरी साँस ली।
“माफ़ कीजिए! जानकर मुझे अफ़सोस हुआ,” करण बोला।
“ओह! करण! अब इतने अनजान भी मत बनो। हमें सब मालूम हैं, हम एक जिम्मेदार बाप हैं और इस जिम्मेदारी के मद्देनज़र हम अपने घर के हर कोने की ख़बर रखते हैं, हमसे यहाँ कुछ नहीं छिपा है!”
“जी?”
“आप सायरा को पसन्द करते हैं, बताईए?”
“जी..जी हाँ,”
“और वो भी आपको चाहती है?”
“जी…जी,” करण ने हकलाते हुए कहा।
“देखो करण! आज सालों बाद हमने उसके चेहरे पर ख़ुशी की वह झलक देखी है जिसे हर बाप अपनी बेटी के चेहरे पर देखना चाहता है! और वह चमक हर नौजवाँ लड़की के चेहरे पर होनी भी चाहिए!” करण से आँखें मिलाते हुए प्रताप सिंह बोले, “जानते हैं आप? यह ख़ुशी सिर्फ़ तब से है जब से आपने इस घर में क़दम रखा है। उसका चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा है। और इस खिले हुए गुलाब को हम दोबारा किसी भी कीमत पर मुरझाने नहीं दे सकते!”
करण चुपचाप खड़ा प्रताप सिंह को सुनता रहा।
“रेल्वे स्टेशन पर आपसे मिलने से लेकर, घर आने तक का पूरा क़िस्सा उसने हमें बता दिया था। वह हमसे कभी कुछ नहीं छिपाती है। उसने यह भी बताया कि चाय की दुकान पर उसने आपका इंतज़ार किया था। जहाँ आप लोगों की दोबारा मुलाक़ात भी हुई थी। और जानते हो उसने हमें एक बात और भी बताई!”
“क्या?” करण ने आश्चर्य से पूछा।
“यह कि उसकी कार वहाँ ख़राब नहीं हुई थी। उसने जानबूझकर आपसे कार को धक्का लगवाया था!”
“ओsss,” करण का मुँह खुला ही रह गया।
“वह आपकी मदद करना चाहती थी। लेकिन साथ ही वह आपको यह भी दिखाना चाहती थी कि वह मदद के बदले में की गई मदद है!”
“मैंने तो उनकी हेल्प की थी, लेकिन..”
करण की बात पूरी होने से पहले ही प्रताप सिंह बोल उठे, “शायद! तक़दीर के पास उससे बेहतर रास्ता था। क्योंकि जब आप मुझे रास्ते में मिले तब हम एक दूसरे के लिए नितांत अजनबी थे। और कमाल देखो एक अलग ही रास्ते से होकर आप और सायरा फिर आमने-सामने आ खड़े हुए। तकदीरें अपनी मुठ्ठी में क्या छिपाए हुए हैं, यह हम इंसान नहीं जान पाते।
मिस्टर करण! आप वाकई अच्छे इंसान हैं यह मैं भी जनता हूँ। मुझे अपनी बेटी की पसन्द पर कोई आपत्ति नहीं हैं!”
“सर! मैं तो कब से परेशान था कि आपसे कैसे बात शुरू करूँ? कैसे न करूँ? कैसे आपसे बताऊँ कि मुझे सायरा पसन्द है। मैं आपसे उनका हाथ माँगना चाहता था, लेकिन आपसे बात शुरू करने का कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा था। और अब रास्ता खुला तो ऐसा की आपको पहले से ही सबकुछ मालूम है!”
“अब जब सबकुछ साफ़ है, तो बताइये बात को कैसे आगे बढ़ायें?” प्रताप सिंह मुसकुराते हुए बोले।
“मैं समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि कहाँ से बात शुरू करूँ? सबसे पहले मैं घर जाकर अपने माँ-पिताजी को इस बारे में बताता हूँ। उनका आशीर्वाद और इजाज़त की पहले ज़रूरत है?” करण ने कहा।
“हमें अपनी बेटी की पसन्द पर नाज़ है। बेशक आप उन्हें बताईए और उन्हें हमसे मिलाईए। हम ख़ुद आपके माँ-बाबूजी से मिलकर बात कर लेंगे!”
“मैं जल्दी ही आपको उनसे मिलाऊँगा,” करण बोला।
“हम आपको घर छुड़वाने का इंतज़ाम करते हैं!” प्रताप सिंह बोले।
प्रताप सिंह ने करण के कंधे थपथपाये और चले गए। करण का दिल ख़ुशी से झूम उठा था, क्योंकि जो ख़ुशी उसने चाही थी अब वह उसे हासिल हो गई थी। सायरा के साथ को अपनी ज़िंदगी में सोचकर ही करण के चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी।
“अब तुम बताओ! क्या कहता है सायरा का दिल?” ग्रिल के पास खड़े-खड़े ही करण ने अपने दिल से पूछा। लेकिन उसके दिल का कोई ज़वाब नहीं आया। करण ने फिरसे अपने दिल को पुकारा, लेकिन उसका दिल ख़ामोश ही बना रहा।

***

आसमान बादलों से भरा पड़ा था। अभी तक सूरज की एक किरण भी दिखायी नहीं दी थी जिस कारण सर्दी अपने चरम तक पहुँच रही थी। हवेली वाली पहाड़ी पर कोहरे से झाँकते देवदार के दरख़्त अपने वज़ूद का एहसास कराना चाहते थे। पहाड़ी और आसपास के तमाम क्षेत्र में फैले देवदार के दरख़्त ऐसे जान पड़ते थे, जैसे प्रताप सिंह की हवेली के रखवाले चारों ओर मुश्तेदी से खड़े हों।

करण अपने घर की रवानगी के लिए एक़दम तैयार था। उसे छोड़ने का जिम्मा सायरा को इस हिदायत के साथ दिया गया कि वह मोटरकार धीरे चलाएगी। प्रताप सिंह और इन्दुमति खन्ना से विदा लेकर करण कार में जा बैठा। यह सायरा की वही फ़िएट थी, जिसमें कल रात वह अपने पिता को लेने स्टेशन पहुँची थी। कार हवेली से बाहर निकली और घुमावदार सड़क से उतरती हुई झील के पास से गुजरी। बायीं तरफ़ से झील का चक्कर लगाते हुए कार बाहर जाने वाली सड़क पर पहुँच गयी।

हवेली से चलने से अबतक उनके बीच ख़ामोशी पसरी हुई थी जो करण को बहुत ही खल रही थी। जाने क्यों करण को ऐसा लग रहा था कि ख़ामोशी केवल उन दोनों के बीच ही नहीं है, बल्कि उनके दिलों के बीच भी छाई हुई है।

फिर करण ने ही उस ख़ामोशी को तोड़ने का फ़ैसला करते हुए कहा, “मुझे छोड़ने का काम तो ड्राइवर भी कर सकता था, आपने क्यों परेशानी उठाई?”
“मैं कुछ देर और आपके साथ रहना चाहती थी!” सायरा ने मासूमियत के साथ कहा।
करण ने दिल्लगी करते हुए कहा,” देखिए राजकुमारी जी! मैं तो एक परदेसी राहगीर हूँ। और परदेसी से दिल लगाना अच्छी बात नहीं। क्या हो अग़र मैं वापस ही न आया?”
उसने करण को एक नज़र देखा और कहा, “यदि फिरसे मेरी किस्मत ने मुझसे मज़ाक किया, तो शायद मेरा दिल इतना मजबूत न रह पाएगा कि वह धड़क सके!”
“अरे! पागल हो क्या? मैंने तो ऐसे ही मज़ाक किया था, आप तो सच ही मान बैठी!”

करण की बात सुनकर सायरा की आँखों के पोर गीले हो चले थे। वह चुपचाप सामने सड़क पर देखती रही और अपने आपको कार चलाने में व्यस्त दिखाने की कोशिश कर रही थी।

करण ने उसका मूड बदलने के लिए कहा, “अच्छा! राजकुमारी जी, मिस्टर खन्ना ने मुझे बताया कि उस रात आपकी कार बन्द नहीं हुई थी, बल्कि आपने जानबूझकर मुझसे कार को धक्का लगवाया था!”
अपनी आँखों को बड़ी करते हुए उसने करण को देखा। अबकी बार उसके चेहरे पर हल्की मुस्कराहट दिखाई दी।
“जब मैं रेल्वे स्टेशन से बाहर सड़क पर पहुँची, तो देखा वहाँ कोई भी नहीं था। एक़दम सुनसान, न किसी का आना और न ही किसी का जाना। मुझे लगा कि आपको वहाँ सवारी मिलना बहुत ही मुश्किल है। तो क्यों न मैं आपको आगे चाय वाले काका तक छोड़ दूँ। शायद वहाँ आपको कुछ मदद मिल जाए। यही सोचकर मैं वहाँ रुकी हुई थी!”
“ओह! अच्छा-अच्छा, तो फिर आपने मुझे वहाँ तक छोड़ दिया था है न?” करण बनावटी आश्चर्य दिखाते हुए बोला।
उसने न में अपना सिर हिलाते हुए कहा “फिर मेरे दिमाग़ ने कहा कि एक अजनबी को लिफ़्ट देना ठीक नहीं होगा। लेकिन मेरा दिल बिल्कुल साफ़-साफ़ कह रहा था कि आप एक अच्छे, शरीफ और समझदार इंसान हैं!”
“ओहो! मेरी तारीफ़ के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया,” करण ने दाहिना हाथ अपने दिल पर रखते हुए कहा।
“मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ!”
“मुझे मालूम है,”
“क्या मालूम है आपको?”
“यही की आप मज़ाक नहीं कर रही हैं!”
सायरा ने करण को घूरकर देखा तो वह ड़रने का बहाना करते हुए थोड़ा पीछे खिसक गया। सायरा ने मुक्का बनाया और करण के कंधे पर दे मारा। करण ने ऐसे भाव दिखाए जैसे उसे बहुत जोर से लगा हो।
फिर वह सामने सड़क पर देखते हुए बोली, “जिस तरह आपने मेरी कार को धक्का लगाकर चालू कराया वह तारीफ़ वाला काम था। वहाँ मेरी मदद करके आपने फिरसे एक अच्छे इंसान होने का परिचय दिया। वैसे कार को धक्का लगवाना तो एक मज़ाक था बस!”
“जी हाँ मुझे मालूम है, लेकिन आपको यह भी बता दूँ कि आपका मज़ाक थोड़ा भारी पड़ा था मुझपर,”
“मेरी वजह से यदि आपको कोई भी तकलीफ़ हुई हो तो मुझे माफ़ कीजिएगा,”
“ठीक है, किया माफ़! लेकिन आपको याद हो राजकुमारी जी? हम दोबारा फिरसे मिले थे, काका की दुकान पर, याद है?”
“हाँ! याद है,”
“तो फिर मदद करने की मेहरबानी तो आप वहाँ भी कर सकती थीं मुझपर,”
“सच्ची बताऊँ! मेरा मन था कि आपको आगे तक छोड़ दूँ। लेकिन अपने तो झूठे में भी लिफ़्ट के लिए इशारा नहीं किया। बल्कि इशारा तो छोड़िए आपने तो अपना नाम तक भी नहीं बताया था!”
“बिल्कुल सही कहती हैं राजकुमारी जी! क्योंकि आपने तो मुझे अपना नाम-पता पहले ही बता दिया था!”
“अरे! कमाल है! यह तो सरासर इल्ज़ाम है!”
“नहीं राजकुमारी जी! मैं तो आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ!”
“वैसे, मैं तमाम रास्ते आपके बारे में ही सोचती रही थी। और आपको लिफ़्ट न देने का मुझे आगे अफ़सोस हुआ था!” “
“अच्छा जी!”
“वह रात बड़ी ही सुनसान थी! न जाने क्यों सड़क पर किसी का आना-जाना ही नहीं था। मैं सोच रही थी कि आप तो बुद्धू हैं ही, मैं भी आप जैसी ही हो गई। यदि मैं ही आपसे कह देती तो आप सही सलामत आगे पहुँच जाते!”
“अभी आपने क्या कहा?”
“आप सही सलामत आगे पहुँच जाते!”
“नहीं उससे पहले,”
“उससे पहले क्या? अच्छा वो!,” सायरा जोर से हँसी, “वह तो आप सच्ची में हो!”
“मतलब मैं बुद्धू हूँ?”
“हाँ! थोड़े बहुत तो हो....पर चला लूँगी,”
करण हँसते हुए और बोला, “राजकुमारी जी! जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। यदि आप मुझे लिफ़्ट दे देतीं तो शायद हम इस वक़्त साथ न होते!” एक पल रुककर करण बोला, “मुझे कभी यह ख़्याल नहीं था कि जो सज्जन मुझे लिफ़्ट दे रहे हैं, वही मुझे आप तक पहुँचाएंगे!”
“आपको अपने यहाँ देखकर तो मैं चौंक ही गई थी, कि आप डैडी को कैसे जानते हैं?” सायरा बोली, “फिर बाद में एहसास हुआ कि शायद हमारी तक़दीर भी हमें मिलाना ही चाहती थी! वरना, काका की दुकान के बाद हमारा फिरसे मिलना नामुमकिन ही था!”
इन्हीं नोक-झोक के साथ दोनों आगे बढ़े जा रहे थे और बातें करते हुए उन्हें पता ही नहीं चला कि कब वे मुख्य सड़क पर पहुँच गए थे। सामने बायीं तरफ़ किशनगढ़ लिखा वही साइनबोर्ड़ लगा दिखाई दे रहा था।
“सायरा! आप मुझे यही उतार दीजिए, यहाँ से मैं बस ले लूँगा!” करण बोला।

साइनबोर्ड़ से आगे सड़क किनारे सायरा ने कार रोक दी। मुख्य सड़क पर केवल इक्के-दुक्के लोगों की ही आवाजाही थी। वहाँ कोई टैक्सी या बस दिखाई नहीं पड़ रही थी। तभी जबरदस्त आवाज़ के साथ आसमानी बिजली ऐसी गरजी कि कार के शीशे भी थर्रा उठे। एक पल को तो वे दोनों सहम ही गए। आगे झुककर दोनों ने एक साथ आसमान में देखा। चारों ओर घुमड़-घुमड़कर काले बादल गोल घूमते हुए गहराने लगे थे। उन बादलों में लगातार बिजली गरज रही थी। किसी भी क्षण भयंकर बारिश होने के आसार नज़र आ रहे थे।

“आपसे दूर जाने का दिल तो नहीं है मग़र क्या करूँ जाना तो पड़ेगा ही!” करण ने सायरा का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा।
“चलिए मैं आपको गाँव तक ही छोड़ देती हूँ, थोड़ी ही देर की तो बात है!” सायरा बोली।
“नहीं! आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, यहाँ से आप वापस जाईए!” करण बोला।
“जी नहीं! मैं आपके साथ गाँव तक चल रही हूँ। इस बहाने हम दोनों थोड़ा समय और साथ रह पाएंगे!” सायरा ने ज़िद की।
सायरा ने बिना कुछ कहे-सुने कार में पहला गियर लगा दिया। अब कार मुख्य सड़क पर करण के गाँव के लिए दौड़ पड़ी। अभी वे दोनों कुछ किलोमीटर दूर ही चले होंगे कि सामने एक पहाड़ी रास्ते के बीचों-बीच खड़ी थी। उस पहाड़ी में एक सुरंग थी और सुरंग से ठीक पहले सड़क पर खड़ा एक पुलिसवाला उन्हें रुकने का इशारा कर रहा था। सायरा ने उस पुलिसवाले से थोड़ा पहले कार रोक ली।
“आगे रास्ता बन्द है, मोटरकार या बड़े वाहन को सुरंग के रास्ते जाने की इजाज़त नहीं है!” उस पुलिसवाले ने कहा।
“क्यों? क्या हुआ है?” सायरा ने उससे पूछा।
“कोहरे की वजह से सुरंग के अन्दर एक मोटरकार पलट गई थी!” उसने बताया।
“ओह! यह तो बुरा हुआ!” करण ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा।
“ख़ुशकिस्मती से किसी को गंभीर चोटें नहीं आई हैं। उन्हें हस्पताल पहुँचा दिया गया!” पुलिसवाले ने बताया।
“लेकिन हमारा उस पार जाना जरूरी है!” करण बोला।
“तो आप उस पुराने रास्ते से ही जाईए!” पुलिसवाले ने मुख्य सड़क से दायीं ओर जाते हुए उस वर्षों पुरानी सड़क की तरफ़ इशारा किया।
“यह तो काफ़ी पुराना रास्ता है और ख़राब भी है!” करण बोला।
“अब मजबूरी है तो क्या करें? सभी को उसी रास्ते से जाना पड़ रहा है!” पुलिसवाला बोला।

सुरंग के दूसरी ओर थोड़ी दूरी पर ही एक छोटा बस स्टॉप है, करण यह जानता था। उसके गाँव आने-जाने वाली बस हमेशा वहाँ रुकती थी। पहाड़ी का चक्कर लगाकर उस लम्बे और पुराने हो चुके रास्ते से जाने का कोई फ़ायदा नहीं था। समय तो ज़्यादा लगता ही और सड़क भी ठीक-ठाक होगी या नहीं, इसका भी कोई भरोसा नहीं था। इसलिए करण ने सुरंग के रास्ते पैदल जाकर बस लेने का फ़ैसला किया।

“पैदल तो टनल पार कर सकता हूँ?” करण ने पूछा।
“यदि आप पैदल जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं,” वह पुलिसवाला आगे बढ़ते हुए बोला, “लेकिन कार से तो आपको उस पुराने रास्ते से ही जाना पड़ेगा!”
“पैदल से क्या मतलब है आपका?” सायरा करण से बोली।
“देखिए! यह रास्ता ज़्यादा बड़ा नहीं है। यदि उस पुराने रास्ते से जाते हैं तो समय ज़्यादा लगेगा!” करण ने चिंतित शब्दों में कहा, “और यदि आपकी वापसी तक भी यह रास्ता नहीं खुला तो? आपको उस पुरानी सड़क से ही घूमकर आना पड़ेगा। इससे आपको घर पहुँचने में बहुत देर होगी। और मौसम का हाल तो आप देख ही रही हैं!”

करण यह कह ही रहा था कि तभी फिरसे जोरों की बिजली गरजी। वह बिजली उनके सामने ठीक उस सुरंग के ऊपर चमकी थी। बिजली की चमक से उनकी आँखे चुँधिया गईं। वह आवाज़ इतनी तेज़ थी कि दोनों के कानों में कितनी ही देर तक सीटियाँ-सी बजती रहीं।

“सायरा! मैं नहीं चाहता आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी हो!” करण बोला।
“आपका जाना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है!” सायरा ने कहा।
“मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है! लेकिन भरोसा रखो, हम जल्दी ही मिल रहे हैं,” करण ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।
“मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ, बस इस बात को मत भूल जाना!” वह बोली।
“मेरे लिए यह सब भूलने वाली बातें नहीं हैं। बल्कि आपको यह नहीं भूलना है कि अब आप भी किसी की अमानत हैं!” करण ने मौसम को देखते हुए कहा, “अब मुझे चलना चाहिए और आप भी जाइए, मौसम बहुत ज़्यादा ख़राब होता जा रहा है!”
सायरा ने कोई ज़वाब नहीं दिया, वह उदास दिखाई पड़ रही थी। करण उस कार से बाहर निकला और बैग लेकर ड्राइविंग सीट पर पहुँचा।
“क्या अब मुझे इजाजत है राजकुमारी जी?” करण ने सायरा से पूछा।
“यदि फ़ैसला कर ही लिया है तो अब मुझसे क्या पूछते हैं? मैं भला कौन हुई आपको रोकने वाली?” वह नाराज़गी जताते हुए बोली।
करण ने उसके हाथ पर थपथपी देते हुए कहा, “मैं जल्दी ही आपके ऑर्चर्ड घूमने आ रहा हूँ। सामने टनल की ओर एक नज़र देखकर करण बोला, "अब थोड़ा हँस भी दीजिए न! जानती हो? मैंने सुना है कि बिछुड़ते वक़्त यदि ख़ुशी और हँसी के साथ विदा होते हैं, तो मुलाक़ात जल्दी होती है!”
सायरा ने अपने होंठों को भींचकर न में सिर हिलाते हुए करण का हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखों से आँसू बह निकले जो करण के कदमों को रोक रहे थे।
“सायरा! ये आँसू नहीं बेशकीमती मोती हैं। इन्हें ऐसे ज़ाया न करें और रोने वाली क्या बात है? हम दोबारा जल्दी ही मिल रहे हैं। बस मैं यूँ गया और यूँ आया!” करण ने उसके आँसुओ को पौंछते हुए कहा।

उसने एक गहरी साँस ली और धीरे से मुस्करायी। करण वापस पलटा और सामने टनल की ओर चल पड़ा। सायरा झटसे कार से निकली और जाकर करण से लिपट गई। बदले में करण ने भी उसे प्यार से अपनी बाहों में भर लिया।

यह पल ऐसा था मानों वक़्त थम-सा गया हो! हर चीज़ अपनी जगह रुक गई थी! हवायें चलना भूल गई! बादल बहते हुए थम गए और बिजली जैसे बादलों में ही जमकर रह गई थी। कितने ही पलों तक दोनों एक दूसरे में सिमटे रहे। इन पलों में दोनों दिलों को चैन मिल रहा था। दोनों दिल धक-धक करके आज पहली बार एक दूसरे के इतने करीब होकर बातें कर रहे थे।

“राजकुमारी जी! इससे पहले कि वह पुलिसवाला मेरे पैदल जाने पर भी पाबंदी लगा दे," करण बोला, "मुझे चलना चाहिए!”

“जा तो रहे हो, लेकिन मेरे इंतज़ार का इम्तिहान मत लेना, प्लीज़!” सायरा ने अपने आँसुओं पर काबू करते हुए कहा।

करण एक गहरी मुस्कराहट देते हुए वापस सुरंग की तरफ़ बढ़ गया। सायरा की रेशमी जुल्फों की भीनी ख़ुशबू करण को अभी तक भी अपने भीतर रची-बसी महसूस हो रही थी। उसने पलट कर देखा, सायरा अपनी जगह पर खड़ी उसे ही देख रही थी। जाने क्यूँ उससे बिछड़ते हुए करण को कुछ अज़ीब-सा महसूस हो रहा था। जैसे वह बहुत लंबे समय के लिए उससे बिछड़ने जा रहा है। हालाँकि वह ख़ुद भी उससे दूर नहीं जाना चाहता था, लेकिन फिलहाल तो उसे अपने घर पहुँचना ही था। करण ने हाथ उठाकर सायर को अलविदा कहा और सुरंग में प्रवेश कर गया।

सुरंग के अन्दर बहुत ज़्यादा कोहरा था, इसलिए वह सुरंग की दीवार के सहारे-सहारे अपने क़दम बढ़ाता जा रहा था। करण को वहाँ कोई पलटी हुई कार दिखाई नहीं दी। लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद सुरंग के दूसरे छौर से मन्द रोशनी झलक रही थी। करण ने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ केवल अँधकार था। तेज़ कदमों से चलता हुआ वह सुरंग को जल्दी से पार करना चाहता था। जैसे-जैसे उसके क़दम आगे बढ़ते जा रहे थे, सुरंग के उस पार रोशनी बढ़ती जा रही थी।

सुरंग के दूसरे छोर तक पहुँचते-पहुँचते मौसम एक़दम साफ़ और सुहाना हो चला था। हल्की सुनहरी खिली धूप गर्माहट का एहसास करा रही थी। थोड़ी ही दूरी पर करण को वह बस स्टॉप दिखाई दिया, जहाँ एक बस खड़ी थी। करण जाकर उस बस में चढ़ गया। अधिकांश सीटें खाली ही थीं फिर टिकट लेकर उसने ड्राइवर के पीछे से दूसरी सीट ले ली।

रामगढ़ स्टेशन से यहाँ तक, यह पहली ऐसी जगह थी, जहाँ पिछले तीन वर्षों में भी कुछ नहीं बदला था। स्टैन्ड के पास वही पीपल का पेड़ था, सामने वही चाय की दुकान, जहाँ से अक्सर वह एक कुल्हड़ चाय ले लेता था। तभी उसकी नज़र अपनी घड़ी पर गई तो वह एक़दम चौंक गया। यह क्या? उसकी घड़ी तो ख़ुद ब ख़ुद चल पड़ी थी और वह 7 बजकर 5 मिनट दिखा रही थी।

“यह घड़ी भी अज़ीब है! मन किया तो बन्द हो गई और मन किया तो चल पड़ी,” उसने सोचा।

पीछे बैठे एक सज्जन से उसने समय पूछकर अपनी घड़ी को 12 बजकर 55 मिनट पर सेट कर लिया। कुछेक और यात्री बस में सवार हो गए थे। लेकिन ड्राइवर अपनी सीट पर अभी भी नहीं पहुँचा था। वह अपनी सीट पर बैठा बस चलने का इंतज़ार करने लगा।

बाहर सुहाने मौसम को देखकर ऐसा लग रहा था, मानों कितने ही दिनों के बाद आज ऐसी खिली हुई धूप निकली हो। एक़दम साफ़ नीला आसमान बहुत ही सुंदर लग रहा था। अथाह फैले नीले आकाश में कतार से तैरते सफ़ेद पंछियों के झुँड़, जैसे नौका विहार कर रहे हों। दरख़्तों की हरी-हरी स्वच्छ पत्तियों पर सूरज की किरणें चमक रही थी। कोयल की कुहू-कुहू, और पक्षीयों की चहचहाती मधुर आवाज़ कानों में रस घोल रही थी। ठण्डी सुगंधित बहती हवा, प्रकृति का मधुर गीत गुनगुनाती हुई कानों को एक सुखद अनुभूति दे रही थी।

थोड़ी देर में ही ड्राइवर साहब ने अपनी सीट संभाली और दो-तीन बार हॉर्न बजाया। बाहर खड़े एकाध मुसाफ़िर भी झट से बस में चढ़ गए। यात्रियों को लेकर बस धीरे-धीरे आगे बढ़ चली। करण ने सीट पर अपना सिर टेक लिया और आँखें बन्द करके ज़िंदगी के हसीन सपने लिए अपने घर की ओर चल पड़ा।
***
to be continued. . . . .

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