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अंकल, चाचा जैसे नही

अधिकांश चाचा लोगों का, घर में तो नही, लेकिन, घर के बाहर एक वजूद होता है। लड़ाई झगड़े में स्थिति जब अपने से बेकाबू हो जाती है तब वे मामले में 'एंट्री' करते हैं। वे 'बहुत कुछ करके छोड़ चुके' होते हैं। वे गलियों और चौराहों के मामलों के 'भूतपूर्व एक्सपर्ट ' होते हैं। स्कूल के बुलावे पर फर्जी गार्जियन के रूप में वही जाते हैं।

बड़े लड़कों से होने वाली लड़ाइयों में चाचा के आते ही बड़े लड़के गायब हो जाते हैं। चाचा अक्सर अराजक से होते हैं। पढ़ाई में पिछड़ गए होते हैं ।

हम लोगों के बचपने में पढ़ाई छोड़ कर घूमने वाले और घर के लिए समस्या बने लोग मुहल्ले के 'आदर्श चाचा' होते थे और पूरी शिद्दत से सभी के लिए चाचा धर्म निभाते भी थे। सड़को और चौराहों पर किसी भी प्रकार की अनहोनी के लिए वे गारंटी होते थे। वे मोहल्ले के लड़कों को गाइड (पढ़ाई और कैरियर को छोड़कर) करते थे।

चाचा संकटमोचक की तरह हीरो के रूप में अवतरित होते हैं। वे पिता के सामने झूठी गवाही देकर बचाव करते हैं। स्वयं खतरे में पड़ कर पिता के क्रोध से बचाते भी हैं।
चाचा हमें बचपन में ही, वो सब सिखा देते हैं जो आगे के जीवन में समाज में बने रहने के लिए आवश्यक है। वे सभ्यता की सीमा तोड़ कर के आक्रमण करना भी सिखाते हैं। चाचा यह भी सिखाते हैं कि घर के भीतर बने हुए मूल्य और घर के भीतर का अनुशासन, बाहर बहुत मायने नहीं रखता। क्योंकि घर के बाहर की दुनिया अलग है। वह कठिन है। वह स्वार्थ और आक्रामकता से भरी पड़ी है।

अक्सर घर में चुप रहने वाले , बड़ों की कदर करने वाले , जरा जरा सी बात में डरने वाले चाचा, घर के बाहर के संघर्षों में, सीमाओं को नहीं मानते।

उनकी अपनी गोल होती है। उनके अपने लोग होते हैं। और उनके अपने लोग जरूरी मौकों पर काम आते हैं। उनके लोग बर्थडे और पार्टियों मे नही आते। लेकिन वक्त जरूरत पर पता नहीं कहां से आ जाते हैं। उत्सवों और समारोहों के समय फालतू माने जाने वाली चाचा की टीम ही , किसी के बीमार होने पर रात रात जाग कर अस्पताल में ड्यूटी देती है। चुपचाप काम करती है। कभी कभी आए हुए अपराधिक खतरों में अति सक्रिय होकर घर को सकून की गारंटी देती है।

अब चाचा की जगह पर अंकल आ रहे हैं। अंकल लोग सुख सुविधाओं को प्रदान करते हैं। अंकल बाजार घुमाते हैं। अंकल उदार होते हैं । अंकल हंसमुख होते हैं।
अंकल स्मार्ट होते हैं। अंकल बने बनाए परिप्रेक्ष्य में जमते हैं। बने बनाए मौकों पर खुशियों को बढ़ाते हैं।

लेकिन ज्यादातर अंकल दुख, पीड़ा और कष्ट के समय गायब हो जाते हैं। ऐसा नहीं कि वे सहयोग नहीं देना चाहते हैं। दरअसल अंकल में दुख पीड़ा कष्ट सहने की क्षमता नहीं है। वे स्वयं में नर्वस हो जाते हैं । परेशान हो जाते हैं। वे अपने सपनों को धरातल पर लाने की कोशिश में बहुत कमजोर हो चुके हैं। इसीलिए पलायन कर जाते हैं।

ऐसा अंकल के साथ ही नहीं है बल्कि अन्य रिश्तेदारों व मित्रों के साथ भी ऐसा है। ऐसा नहीं कि वे महा स्वार्थी हो गए हैं या एहसान फरामोश हो गए हैं या वे बहुत व्यस्त हो गए हैं या उन्हें दूसरों से मतलब नहीं है।

नहीं ,उन्हें मतलब है। उन्हें गहरी सहानुभूति भी है । और पहले की ही तरह उतनी ही शिद्दत से भावनाओं से जुड़े भी हैं।
अब ज्यादतर लोगों में शारीरिक व मानसिक, कष्ट, पीड़ा, तकलीफ सहने की क्षमता कम हो रही है। इसीलिए हम दूसरों के संकटों और चुनौतियों के समय नदारद हो जाते हैं और यह परंपरागत रिश्तो में भी दिख रहा है।
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