ऐ मां मेरी दर्द हैं बहुत,उसे मिटाओ नाजाती धर्म मजहब में समन्वय बैठाओ ना
ऐ मां मेरी दर्द हैं बहुत,उसे मिटाओ ना
जाती धर्म मजहब में समन्वय बैठाओ ना
भेदभाव की नीति से हट कर गुल खिलाओ ना
इस नफ़रत की दीवार को मिटाओ ना
प्यारे प्यारे नन्हे मुन्ने को,आग में झूलसाओ ना
मीझ गई है चिराग जिसकी, उसे जलाओ ना
बंद आंखें की पट्टी खोल कर दिखाओं ना
मानव है हम मानव धर्म का पाठ पढ़ाओ ना
नफ़रत की दीवार को गिरा दे उस ज्योति को फैसलाओ ना
बंधे ना रहे हम सम्प्रदाय बहुल में, वह राह दिखाओ ना
हम सब पुत्र है तेरी हे मां
तड़प रहे भाई को, भाई से मिलाओ ना
एक जगह रहें नफरत ना हो, किसी को किसी से
वह प्रेम ज्योति को मेरी निखारो ना
भ्रम जाल में फंसे रहे बहुत दिनों दिन
अब इस गंदगी से निकाल लाओ ना
स्नेह हों आपस में हमरी,एक दुसरे के लिए विबल हो उठे
ऐसी प्रेम की शक्ति हमारी, बरसाओ ना
मोक्ष की लालसा देकर,ऐसा वैसा में फंसाओ ना
लड़ कट मर मिट जाएं ऐसा पाठ पढ़ाओ ना
उठते बैठते गुणगान करें तुम्हारी माता
हमारी भाव ऐसा बनाओं ना।।
© Sandeep Kumar
जाती धर्म मजहब में समन्वय बैठाओ ना
भेदभाव की नीति से हट कर गुल खिलाओ ना
इस नफ़रत की दीवार को मिटाओ ना
प्यारे प्यारे नन्हे मुन्ने को,आग में झूलसाओ ना
मीझ गई है चिराग जिसकी, उसे जलाओ ना
बंद आंखें की पट्टी खोल कर दिखाओं ना
मानव है हम मानव धर्म का पाठ पढ़ाओ ना
नफ़रत की दीवार को गिरा दे उस ज्योति को फैसलाओ ना
बंधे ना रहे हम सम्प्रदाय बहुल में, वह राह दिखाओ ना
हम सब पुत्र है तेरी हे मां
तड़प रहे भाई को, भाई से मिलाओ ना
एक जगह रहें नफरत ना हो, किसी को किसी से
वह प्रेम ज्योति को मेरी निखारो ना
भ्रम जाल में फंसे रहे बहुत दिनों दिन
अब इस गंदगी से निकाल लाओ ना
स्नेह हों आपस में हमरी,एक दुसरे के लिए विबल हो उठे
ऐसी प्रेम की शक्ति हमारी, बरसाओ ना
मोक्ष की लालसा देकर,ऐसा वैसा में फंसाओ ना
लड़ कट मर मिट जाएं ऐसा पाठ पढ़ाओ ना
उठते बैठते गुणगान करें तुम्हारी माता
हमारी भाव ऐसा बनाओं ना।।
© Sandeep Kumar