...

12 views

पहचान पर कालिख
मैं भी कभी कली थी
फूलों के बाग में पली थी
सबकी राजदुलारी थी
मां के दिल की धड़कन थी अपने माली की कली थी
एक रात काली रात की घड़ी थी मैं अनजान बेखबर फूलों के साथ खड़ी थी
आवारा भंवरो ने आकर अपने पैरों तले कुचल दिया
मेरे आंसू मेरा दर्द मेरी हिम्मत सभी ने साथ छोड़ दिया
इतने में भी जी न भरा गर्त में जा कर छोड़ दिया
गर्त में रहते रहते पहचान भी गर्त जैसी हो गई
नाम वैश्या दे दिया इसी समाज के लोगों ने
बदनाम गली की रहने वाली में
मेरे आंगन की मिट्टी लेकर शक्ति का निर्माण करें
हर व्यक्ति मूरत को लेकर उसका पूजा-पाठ सम्मान करें
मुझे देखते ही लोग मेरा अपमान करें
क्योंकि पहचान मेरी वैश्या है
इसलिए लोग मेरा तिरस्कार करें
रूह मेरी पाख है
लोग कहते मुझे नापाक हैं
मेरे दिल को खिलौना समझ कर हर कोई खेल जाता है
मेरा भी स्वाभिमान है
लेकिन हर कोई पैर तले रौंद के जाता है ।।

© All Rights Reserved